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________________ आगम सूत्र १९, उपांगसूत्र-८, निरयावलिका' अध्ययन / सूत्र कृष्णाचतुर्दशी को उत्पन्न, लोक-लाज से रहित, निर्लज्ज कूणिक कुमार हाथ में कुल्हाड़ी लेकर इधर आ रहा है। न मालूम मुझे किस कुमौत से मारे ! इस विचार से उसने भीत, त्रस्त, भयग्रस्त, उद्विग्न और भयाक्रान्त होकर ताल विष को मुख में डाल दिया । तदनन्तर तालपुट विष को मुख में डालने और मुहूर्त्तान्तर के बाद कुछ क्षणों में उस विष के व्याप्त होने पर श्रेणिक राजा निष्प्राण, निश्चेष्ट, निर्जीव हो गया । इसके बाद वह कूणिक कुमार जहाँ कारावास था, वहाँ पहुँचा । उसने श्रेणिक राजा को निष्प्राण, निश्चेष्ट, निर्जीव देखा। तब वह दुस्सह, दुर्द्धर्ष पितृशोक से बिलबिलाता हुआ कुल्हाड़ी से काटे चम्पक वृक्ष की तरह धड़ाम से पछाड़ खाकर पृथ्वी पर गिर पड़ा । कुछ क्षणों पश्चात् कूणिक कुमार आश्वस्त सा हुआ और रोते हुए, आक्रंदन, शोक एवं विलाप करते हुए कहने लगा-अहो ! मुझ अधन्य, पुण्यहीन, पापी, अभागे ने बूरा किया - जो देवतारूप, अत्यन्त स्नेहानुराग-युक्त अपने पिता श्रेणिक राजा को कारागार में डाला। मेरे कारण ही श्रेणिक राजा कालगत हुए हैं । तदनन्तर ऐश्वर्यशाली पुरुषों, तलवर राज्यमान्य पुरुषों, मांडलिक, जागीरदारों, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापतियों, मंत्री, गणक, द्वारपाल, अमात्य, चेट, पीठ-मर्दक, नागरिक, व्यवसायी, दूत, संधिपाल से संपरिवृत होकर रुदन, आक्रन्दन, शोक ओर विलाप करते हुए महान् ऋद्धि, सत्कार एवं अभ्युदय के साथ श्रेणिक राजा अग्निसंस्कार किया । तत्पश्चात् वह कूणिक कुमार इस महान मनोगत मानसिक दुःख से अतीव दुःखी होकर किसी समय अन्तःपुर परिवार को लेकर धन-संपत्ति आदि गार्हस्थिक उपकरणों के साथ राजगृह से निकला और जहाँ चंपानगरी थी, वहाँ आया वहाँ परम्परागत भोगों को भोगते हुए कुछ समय के बाद शोक संताप से रहित हो गया सूत्र १६ तत्पश्चात् उस कूणिक राजाने किसी दिन काल आदि दस राजकुमारों को बुलाया - आमंत्रित किया और राज्य, राष्ट्र बल-सेना, वाहन रथ आदि, कोश, धन-संपत्ति, धान्य-भंडार, अंतःपुर और जनपद-देश के ग्यारह भाग किये। भाग कर के वे सभी स्वयं अपनी-अपनी राजश्री का भोग करते हुए प्रजा का पालन करते हुए समय व्यतीत करने लगे। सूत्र - १७ उस चंपानगरीमें श्रेणिक राजा का पुत्र, चेलना देवी का अंगज कूणिक राजा का कनिष्ठ सहोदर भ्राता वेहल्ल राजकुमार था । वह सुकुमार यावत् रूप-सौन्दर्यशाली था । अपने जीवित रहते श्रेणिक राजा ने पहले ही वेहल्लकुमार को सेचनक नामक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार दिया था। वेहल्लकुमार अन्तःपुर परिवार के साथ सेचनक गंधहस्ती पर आरूढ होकर चंपानगरी के बीचोंबीच होकर निकलता और स्नान करने के लिए वारंवार गंगा महानदी में उतरता । उस समय वह सेचनक गंधहस्ती रानियों को सूँढ़ से पकड़ता, पकड़ कर किसी को पीठ पर बिठलाता, किसी को कंधे पर बैठाता, किसी को गंडस्थल पर रखता, किसी को मस्तक पर बैठाता, दंत- मूसलों पर बैठाता, किसी को सूँढ़ में लेकर झुलाता, किसी को दाँतों के बीच लेता, किसी को फुहारों से नहलाता और किसी-किसी को अनेक प्रकार की क्रीडाओं से क्रीडित करता था । तब चंपानगरी के शृंगाटकों, त्रिकों, चतुष्कों, चत्वरों, महापथों और पथों में बहुत से लोग आपस में एकदूसरे से इस प्रकार कहते, बोलते, बतलाते और प्ररूपित करते कि - देवानुप्रियों ! अन्तःपुर परिवार को साथ लेकर वेहल्ल कुमार सेचनक गंधहस्ती के द्वारा अनेक प्रकार की क्रीडाएं करता है। वास्तव में वेहल्लकुमार ही राजलक्ष्मी का सुन्दर फल अनुभव कर रहा है। कूणिक राजा राजश्री का उपभोग नहीं करता। तब पद्मावती देवी को प्रजाजनों के कथन को सूनकर यह संकल्प यावत् विचार समुत्पन्न हुआ - निश्चय ही वेहल्लकुमार सेचनक गंधहस्ती के द्वारा यावत् अनेक प्रकार की क्रीडाएं करता है। अत एव सचमुच में राजश्री का फल भोग रहा है, कूणिक राजा नहीं । हमारा यह राज्य यावत् जनपद किस काम का यदि हमारे पास सेचनक गंधहस्ती न हो। पद्मावती ने इस प्रकार का विचार किया और कूणिक राजा के पास आकर दोनों हाथ जोड़, Page 11 मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (निरयावलिका) आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद"
SR No.034686
Book TitleAgam 19 Nirayavalika Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 19, & agam_nirayavalika
File Size2 MB
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