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________________ आगम सूत्र १९, उपांगसूत्र-८, 'निरयावलिका' अध्ययन/सूत्र इस प्रकार उस बालक के माता-पिता ने उसका 'कूणिक' यह नामकरण किया । तत्पश्चात् उस बालक का जन्मोत्सव आदि मनाया गया । यावत् मेघ-कुमार के समान राजप्रासाद में आमोद-प्रमोदपूर्वक समय व्यतीत करने लगा । माता-पिता ने आठ-आठ वस्तुएं प्रीतिदान में प्रदान की। सूत्र-१४ तत्पश्चात् उस कुमार कूणिक को किसी समय मध्यरात्रिमें यावत् ऐसा विचार आया कि श्रेणिक राजा के विघ्न के कारण मैं स्वयं राज्यशासन और राज्यवैभव का उपभोग नहीं कर पाता हूँ, अतएव श्रेणिक राजा को बेड़ी में डाल देना और महान राज्याभिषेक से अपना अभिषेक कर लेना मेरे लिए श्रेयस्कर होगा । उसने इस प्रकार का संकल्प किया और श्रेणिक राजा के अन्तर, छिद्र और विरह की ताक के रहता हुआ समय-यापन करने लगा। तत्पश्चात् श्रेणिक राजा के अवसरों यावत् मर्मों को जान न सकने के कारण कूणिक कुमार ने एक दिन काल आदि दस राजकुमारों को अपने घर आमंत्रित किया और उनको अपने विचार बताए-श्रेणिक राजा के कारण हम स्वयं राजश्री का उपभोग और राज्य का पालन नहीं कर पा रहे हैं । इसलिए हे देवानुप्रियों ! हमारे लिए श्रेयस्कर यह होगा कि श्रेणिक राजा को बेड़ी में डालकर और राज्य, राष्ट्र, बल, वाहन, कोष, धान्यभंडार और जनपद को ग्यारह भागों में बाँट करके हम लोग स्वयं राजश्री का उपभोग करें और राज्य का पालन करें । कूणिक का कथन सूनकर उन काल आदि दस राजपुत्रों ने उस के इस विचार को विनयपूर्वक स्वीकार किया। कूणिक कुमार ने किसी समय श्रेणिक राजा के अंदरूनी रहस्यों को जाना और श्रेणिक राजा को बेड़ी से बाँध दिया । महान राज्याभिषेक से अपना अभिषेक कराया, जिससे वह कूणिक कुमार स्वयं राजा बन गया। सूत्र - १५ किसी दिन कूणिक राजा स्नान कर के, बलिकर्म कर के, विघ्नविनाशक उपाय कर, मंगल एवं प्रायश्चित्त कर और फिर अवसर के अनुकूल शुद्ध मांगलिक वस्त्रों को पहनकर, सर्व अलंकारों से अलंकृत होकर चेलना देवी के चरणवंदनार्थ पहुँचा । उस समय कूणिक राजा ने चेलना देवी को उदासीन यावत् चिन्ताग्रस्त देखा । चेलना देवी से पूछा-माता ! ऐसी क्या बात है कि तुम्हारे चित्त में संतोष, उत्साह, हर्ष और आनन्द नहीं है कि मैं स्वयं राज्यश्री का उपभोग करते हुए यावत् समय बिता रहा हूँ ? तब चेलना देवी ने कूणिक राजा से कहा-हे पुत्र ! मुझे तुष्टि, उत्साह, हर्ष अथवा आनन्द कैसे हो सकता है, जबकि तुमने देवतास्वरूप, गुरुजन जैसे, अत्यन्त स्नेहानुराग युक्त पिता श्रेणिक राजा को बन्धन में डालकर अपना निज का महान् राज्याभिषेक से अभिषेक कराया है । तब कूणिक राजा ने चेलना देवी से कहा-माताजी ! श्रेणिक राजा तो मेरा घात करने के इच्छुक थे । हे अम्मा ! श्रेणिक राजा तो मुझे मार डालना चाहते थे, बाँधना चाहते थे और निर्वासित कर देना चाहते थे । तो फिर हे माता ! यह कैसे मान लिया जाए की श्रेणिक राजा मेरे प्रति अतीव स्नेहानुराग वाले थे? यह सूनकर चेलना देवी ने कूणिक कुमार से कहा हे पुत्र ! जब तुम्हें मेरे गर्भ में आने पर तीन मास हुए तो मुझे इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हआ कि-वे माताएं धन्य हैं, यावत् अंगपरिचारिकाओं से मैंने तुम्हें उकरड़े में फिकवा दिया, आदि-आदि, यावत् जब भी तुम वेदना से पीड़ित होते और जोर-जोर से रोते तब श्रेणिक राजा तुम्हारी अंगुली मुख में लेते और मवाद चूसते । तब तुम चूप-शांत हो जाते, इत्यादि सब वृत्तान्त चेलना ने कूणिक को सूनाया । इसी कारण हे पुत्र ! मैंने कहा कि श्रेणिक राजा तुम्हारे प्रति अत्यन्त स्नेहानुराग से युक्त हैं। कूणिक राजा ने चेलना रानी से इस पूर्ववृत्तान्त को सूनकर और ध्यान में लेकर चेलना देवी से कहा-माता ! मैंने बूरा किया जो देवतास्वरूप, गुरुजन जैसे अत्यन्त स्नेहानुराग से अनुरक्त अपने पिता श्रेणिक राजा को बेड़ियों से बाँधा । अब मैं जाता हूँ और स्वयं ही श्रेणिक राजा की बेड़ियों को काटता हूँ, ऐसा कहकर कुल्हाड़ी हाथ में ले जहाँ कारागृह था, उस ओर चलने के लिए उद्यत हुआ । श्रेणिक राजा ने हाथ में कुल्हाड़ी लिए कूणिक कुमार को अपनी ओर आते देखा । मन ही मन विचार किया-यह मेरा बूरा चाहने वाला, यावत् कुलक्षण, अभागा मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (निरयावलिका)" आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 10
SR No.034686
Book TitleAgam 19 Nirayavalika Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 19, & agam_nirayavalika
File Size2 MB
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