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आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र ७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति
सूत्र - १९४
भगवन् ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में मन्दर पर्वत कहाँ है ? गौतम ! उत्तरकुरु के दक्षिण में, देवकुरु के उत्तर में, पूर्व विदेह के पश्चिम में और पश्चिम विदेह के पूर्व में है । वह ९९००० योजन ऊंचा है, १००० जमीन में गहरा है । वह मूल में १००९० -१०/१९ योजन तथा भूमितल पर १०००० योजन चौड़ा है। उसके बाद वह चौड़ाई की मात्रा में क्रमशः घटता-घटता ऊपर के तल पर १००० योजन चौड़ा रह जाता है । उसकी परिधि मूल में ३१९१० -३ / १९ योजन, भूमितल पर ३१६२३ योजन तथा ऊपरी तल पर कुछ अधिक ३१६२ योजन है। वह मूल में विस्तीर्ण-मध्य में संक्षिप्त-तथा ऊपर पतला है । उसका आकार गाय की पूँछ के आकार जैसा है । वह सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है, सुकोमल है। वह एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक वनखण्ड द्वारा चारों ओर से घिरा हुआ है । भगवन्! मन्दर पर्वत पर कितने वन हैं ? गीतम चार भद्रशालवन, नन्दनवन, सौमनसवन तथा पंडक ! वन । भद्रशालवन कहाँ है ? गौतम! मन्दर पर्वत पर उसके भूमिभाग पर है। वह पूर्व-पश्चिम लम्बा एवं उत्तरदक्षिण चौड़ा है। वह सौमनस, विद्युत्प्रभ, गन्धमादन तथा माल्यवान नामक वक्षस्कार पर्वतों द्वारा शीता तथा शीतोदा नामक महानदियों द्वारा आठ भागों में विभक्त है । वह मन्दर पर्वत के पूर्व-पश्चिम बाईस-बाईस हजार योजन लम्बा है, उत्तर-दक्षिण अढ़ाई सौ-अढ़ाई सौ योजन चौड़ा है ।
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वह एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक वन-खण्ड द्वारा चारों ओर से घिरा हुआ है । वह काले, नीले पत्तों से आच्छन्न है, वैसी आभा से युक्त है। देव देवियाँ वहाँ आश्रय लेते हैं, विश्राम लेते हैं-मन्दर पर्वत के पूर्व में भद्रशालवन में पचास योजन जाने पर एक विशाल सिद्धायतन आता है । वह पचास योजन लम्बा है, पच्चीस योजन चौड़ा है तथा छत्तीस योजन ऊंचा है । वह सैकड़ों खंभों पर टिका है। उस सिद्धायतन की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं। वे द्वार आठ योजन ऊंचे तथा चार योजन चौड़े हैं। उनके प्रवेश मार्ग भी उतने ही हैं। उनके शिखर श्वेत हैं, उत्तम स्वर्ण निर्मित हैं। उसके बीचोंबीच एक विशाल मणिपीठिका है। वह आठ योजन लम्बी-चौड़ी है, चार योजन मोटी है, सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है, उज्ज्वल है। उस मणिपीठिका के ऊपर देवच्छन्दक है । वह आठ योजन लम्बा-चौड़ा है । वह कुछ अधिक आठ योजन ऊंचा है । जिनप्रतिमा, देवच्छन्दक, धूपदान आदि का वर्णन पूर्ववत् है । मन्दर पर्वत के दक्षिण में भद्रशाल वन में पचास योजन जाने पर वहाँ उसकी चारों दिशाओं में चार सिद्धायतन हैं।
सूत्र- १९५
वक्षस्कार / सूत्र
मन्दर पर्वत के - ईशान कोण में भद्रशाल वन में पचास योजन जाने पर पद्मा, पद्मप्रभा, कुमुदा तथा कुमुदप्रभा नामक चार पुष्करिणियाँ आती हैं। वे पचास योजन लम्बी, पच्चीस योजन चौड़ी तथा दश योजन जमीन में गहरी है। उन पुष्करिणियों के बीच में देवराज ईशानेन्द्र का उत्तम प्रासाद है वह पाँच सौ योजन ऊंचा और अढ़ाई सौ योजन चौड़ा है। मन्दर पर्वत के आग्नेय कोण में उत्पलगुल्मा, नलिना, उत्पला तथा उत्पलो-ज्ज्वला नामक पुष्करिणियाँ हैं। उनके बीच में उत्तम प्रासाद हैं। देवराज शक्रेन्द्र वहाँ सपरिवार रहता है। मन्दर पर्वत केनैर्ऋत्य कोण में भृंगा, भृंगनिभा, अंजना एवं अंजनप्रभा नामक पुष्करिणियाँ हैं । शक्रेन्द्र वहाँ का अधिष्ठातृ देव है । मन्दर पर्वत के-ईशान कोण में श्रीकान्ता, श्रीचन्द्रा, श्रीमहिता तथा श्रीनिलया नामक पुष्करिणियाँ हैं । बीच में उत्तम प्रासाद हैं। वहाँ ईशानेन्द्र देव निवास करता है। भगवन् ! मन्दर पर्वत पर भद्रशाल वन में दिशाहस्तिकूटकितने हैं ? गौतम ! आठ
पद्मोत्तर, नीलवान्, सुहस्ती, अंजनगिरि, कुमुद, पलाश, अवतंस तथा रोचनागिरि ।
सूत्र- १९६
भगवन् ! पद्मोत्तर नामक दिग्हस्तिकूट कहाँ है ? गौतम मन्दर पर्वत के ईशान कोण में तथा पूर्व दिग्गत शीता महानदी के उत्तर में है। वह ५०० योजन ऊंचा तथा ५०० कोश जमीन में गहरा है। उसकी चौड़ाई तथा
मुनि दीपरत्नसागर कृत्" (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र हिन्द- अनुवाद"
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