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आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति'
वक्षस्कार/सूत्र सूत्र-१८६
हरिकूट के अतिरिक्त सभी कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे हैं । हरिकूट हरिस्सहकूट सदृश है । दक्षिण में इसकी राजधानी है । कनककूट तथा सौवत्सिककूट में वारिषेणा एवं बलाहका नामक दो दिक्कुमारियाँ निवास करती हैं । बाकी के कूटों में कूट-सदृश नामयुक्त देवता निवास करते हैं । उनकी राजधानियाँ मेरु के दक्षिण में है । वह विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम ! विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत विद्युत की ज्यों-सब ओर से अवभासित होता है, उद्योतित होता है, प्रभासित होता है-बिजली की ज्यों चमकता है । वहाँ पल्योपमपरिमित आयुष्य-स्थिति युक्त विद्युत्प्रभ देव निवास करता है, अथवा उसका यह नाम नित्य है। सूत्र- १८७, १८८
___पक्ष्म विजय हे, अश्वपुरी राजधानी है, अंकावती वक्षस्कार पर्वत है । सुपक्ष्म विजय है, सिंहपुरी राजधानी है, क्षीरोदा महानदी है । महापक्ष्म विजय है, महापुरी राजधानी है, पक्ष्मावती वक्षस्कार पर्वत है । पक्ष्मकावती विजय है, विजयपुरी राजधानी है, शीतस्रोता महानदी है । शंख विजय है, अपराजिता राजधानी है, आशीविष वक्षस्कार पर्वत है । कुमुद विजय है, अरजा राजधानी है, अन्तर्वाहिनी महानदी है । नलिन विजय है, अशोका राजधानी है, सुखावह वक्षस्कार पर्वत है । नलिनावती विजय है, वीताशोका राजधानी है । दाक्षिणात्य शीतोदामुख वनखण्ड के समान उत्तरी शीतोदामुख वनखण्ड है । उत्तरी शीतोदामुख वनखण्ड में वप्र विजय है, विजया राजधानी हे, चन्द्र वक्षस्कार पर्वत है । सुवप्र विजय है, वैजयन्ती राजधानी है, ऊर्मिमालिनी नदी है । महावप्र विजय है, जयन्ती राजधानी है, सूर वक्षस्कार पर्वत है । वप्रावती विजय है, अपराजिता राजधानी है, फेनमालिनी नदी है । वल्गु विजय है, चक्रपुरी राजधानी है, नाग वक्षस्कार पर्वत है । सुवल्गु विजय है, खड्गपुरी राजधानी है, गम्भीरमालिनी अन्तरनदी है । गन्धिल विजय है, अवध्या राजधानी है, देव वक्षस्कार पर्वत है । गन्धिलावती विजय है, अयोध्या राजधानी है। इसी प्रकार मन्दर पर्वत के दक्षिणी पार्श्व का-कथन कर लेना । वहाँ शीतोदा नदी के दक्षिणी तट पर ये विजय हैं- पक्ष्म, सुपक्ष्म, महापक्ष्म, पक्ष्मकावती, शंख, कुमुद, नलिन तथा नलिनावती। सूत्र-१८९
__राजधानियाँ इस प्रकार हैं-अश्वपुरी, सिंहपुरी, महापुरी, विजयपुरी, अपराजिता, अरजा, अशोका तथा वीतशोका। सूत्र- १९०,१९१
वक्षस्कार पर्वत इस प्रकार हैं-अंक, पक्ष्म, आशीविष तथा सुखावह । इस क्रमानुरूप कूट सदृश नामयुक्त दो-दो विजय, दिशा-विदिशाएं, शीतोदा का दक्षिणवर्ती मुखवन तथा उत्तरवर्ती मुखवन-ये सब समझ लेना । शीतोदा के उत्तरी पार्श्व में ये विजय हैं
वप्र, सुवप्र, महावप्र, वप्रावती, वल्गु, सुवल्ग, गन्धिल तथा गन्धिलावती । सूत्र - १९२
राजधानियाँ इस प्रकार-विजया, वैजयन्ती, जयन्ती, अपराजिता, चक्रपुरी, खड्गपुरी, अवध्या तथा अयोध्या।
सूत्र-१९३
वक्षस्कार पर्वत इस प्रकार हैं-चन्द्र पर्वत, सूर पर्वत, नाग पर्वत तथा देव पर्वत । क्षीरोदा तथा शीतस्रोता नामक नदियाँ शीतोदा महानदी के दक्षिणी तट पर अन्तरवाहिनी नदियाँ हैं । ऊर्मिमालिनी, फेनमालिनी तथा गम्भीर मालिनी शीतोदा महानदी के उत्तर दिग्वर्ती विजयों की अन्तरवाहिनी नदियाँ हैं । इस क्रम में दो-दो कूट-अपनेअपने विजय के अनुरूप कथनीय हैं । वे अवस्थित हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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