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________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' वक्षस्कार/सूत्र भरत, इलादेवी, गंगादेवी, श्री, रोहितांशा, सिन्धुदेवी, सुरादेवी, हैमवत तथा वैश्रवणकूट । भगवन् ! चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत पर सिद्धायतनकूट कहाँ है ? गौतम ! पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, चुल्ल हिमवानकूट के पूर्व में है। वह पाँच सौ योजन ऊंचा है । मूल में पाँच सौ योजन, मध्य में ३७५ योजन तथा ऊपर २५० योजन विस्तीर्ण है। मूल में उसकी परिधि कुछ अधिक १५८१ योजन, मध्य में कुछ कम ११८६ योजन तथा ऊपर कुछ कम ७९१ योजन है । मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त एवं ऊपर तनुक है । उसका आकार गाय की ऊर्वीकृत पूँछ के आकार जैसा है । वह सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है । वह एक पद्मवरवेदिका तथा एक वनखण्ड द्वारा सब ओर से घिरा हुआ है । सिद्धायतनकूट के ऊपर एक बहुत समतल तथा रमणीय भूमिभाग है । उस भूमिभाग के ठीक बीच में एक विशाल सिद्धायतन है । वह पचास योजन लम्बा, पच्चीस योजन चौड़ा और छत्तीस योजन ऊंचा है । उससे सम्बद्ध जिनप्रतिमा पर्यन्त का वर्णन पूर्ववत् है। भगवन् ! चुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत पर चुल्लहिमवान् नामक कूट कहाँ है ? गौतम ! भरतकूट के पूर्व में, सिद्धायतनकूट के पश्चिम में चुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत पर चुल्लहिमवान् नामक कूट है । सिद्धायतनकूट की ऊंचाई, विस्तार तथा घेरा जितना है, उतना ही उसका है । उस कूट पर एक बहुत ही समतल एवं रमणीय भूमिभाग है। उसके ठीक बीच में एक बहुत बड़ा उत्तम प्रासाद है । वह ६२११ योजन ऊंचा है । ३१ योजन १ कोस चौड़ा है। वह बहुत ऊंचा उठा हुआ है । अत्यन्त धवल प्रभापुंज लिये रहने से वह हँसता हुआ-सा प्रतीत होता है । उस पर अनेक प्रकार की मणियाँ तथा रत्न जड़े हुए हैं। अपने पर लगी, पवन से हिलती, फहराती विजयसूचक ध्वजाओं, पताकाओं, छत्रों तथा अतिछत्रों से वह बड़ा सुहावना लगता है। उसके शिखर बहुत ऊंचे हैं, जालियों में जड़े रत्नसमूह हैं, स्तूपिकाएं, मणियों एवं रत्नों से निर्मित हैं । उस पर विकसित शतपत्र, पुण्डरीक, तिलक, रत्न तथा अर्धचन्द्र के चित्र अंकित हैं । अनेक मणिनिर्मित मालाओं से वह अलंकृत है । भीतर-बाहर वज्ररत्नमय, तपनीयस्वर्णमय, चिकनी, रुचिर बालुका से आच्छादित है । उसका स्पर्श सुखप्रद है, रूप सश्रीक है । वह आनन्दप्रद, यावत् प्रतिरूप है । उस उत्तम प्रासाद के भीतर बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग है। भगवन् ! वह चुल्ल हिमवान् कूट क्यों कहलाता है ? गौतम ! परम ऋद्धिशाली चुल्ल हिमवान् नामक देव वहाँ निवास करता है, इसलिए । भगवन् ! चुल्ल हिमवान् गिरिकुमार देव की चुल्लहिमवन्ता नामक राजधानी कहाँ है ? गौतम ! चुल्लहिमवानकूट के दक्षिण में तिर्यक लोक में असंख्य द्वीपों, समुद्रों को पार कर अन्य जम्बूद्वीप में दक्षिण में १२००० योजन पार करने पर है । उनका आयाम-विस्तार १२००० योजन है । वर्णन विजय-राजधानी सदश जानना । बाकी के कूटों का आयाम-विस्तार, परिधि, प्रासाद, देव, सिंहासन, तत्सम्बद्ध सामग्री, देवों एवं देवियों की राजधानियों आदि का वर्णन पूर्वानुरूप है। इन कूटों में से चुल्लहिमवान, भरत, हैमवत तथा वैश्रवण कूटों में देव निवास करते हैं और उनके अतिरिक्त अन्य कूटों में देवियाँ निवास करती हैं । भगवन् ! वह पर्वत चुल्लहिमवर्षाधर क्यों कहलाता है ? गौतम ! महाहिमवान वर्षधर पर्वत की अपेक्षा चुल्लहिमवान वर्षधर पर्वत आयाम-आदि में कम है । इसके अतिरिक्त वहाँ परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपम आयुष्ययुक्त चुल्लहिमवान् नामक देव निवास करता है, अथवा चुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत-नाम शाश्वत है, जो न कभी नष्ट हआ, न कभी नष्ट होगा। सूत्र-१३१ भगवन् ! जम्बूद्वीपमें हैमवत क्षेत्र कहाँ है ? महाहिमवान् वर्षधरपर्वत के दक्षिण में, चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में है । वह पूर्व-पश्चिम लम्बा उत्तरदक्षिण चौड़ा, पलंग आकारमें अवस्थित है । दो ओर से लवणसमुद्र का स्पर्श करता है, २१०-५/१९ योजन चौड़ा है । बाहा पूर्व-पश्चिम ६७५५-३/१९ योजन लम्बी है । उत्तरदिशा में उसकी जीवा पूर्व तथा पश्चिम दोनों ओर लवणसमुद्र का स्पर्श करती है । उसकी लम्बाई कुछ कम ३७६७४ -१६/१९ योजन है । दक्षिण में उसका धनुपृष्ठ परिधि की अपेक्षा से ६८७४-१०/१९ योजन है । भगवन् ! हैमवत क्षेत्र का आकार, भाव, प्रत्यवतार-कैसी है ? गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल एवं रमणीय है। उसका स्वरूप आदि सुषम-दुःषमा काल के सदृश है।। मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 53
SR No.034685
Book TitleAgam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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