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________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' वक्षस्कार/सूत्र सूत्र-११३ महाकाल निधि-विविध प्रकार के लोह, रजत, स्वर्ण, मणि, मोती, स्फटिक तथा प्रवाल आदि के आकारों को उत्पन्न करने की विशेषतायुक्त होती है। सूत्र - ११४ माणवक निधि-योद्धाओं, आवरणों, प्रहरणों, सब प्रकार की युद्ध-नीति के तथा साम, दाम, दण्ड एवं भेद मूलक राजनीति के उद्भव की विशेषता युक्त होती है। सूत्र-११५ शंख निधि-नत्य-विधि, नाटक-विधि-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-के प्रतिपादक काव्यों की अथवा गद्य, पद्य, गेय, चौर्ण-काव्यों की उत्पत्ति एवं सब प्रकार के वाद्यों को उत्पन्न करने की विशेषतायुक्त होती है। सूत्र - ११६ उनमें से प्रत्येक निधि का अवस्थान आठ-आठ चक्रों के ऊपर होता है-जहाँ-जहाँ ये ले जाई जाती हैं, वहाँ-वहाँ ये आठ चक्रों पर प्रतिष्ठित होकर जाती हैं। उनकी ऊंचाई आठ-आठ योजन की, चौड़ाई नौ-नौ योजन की तथा लम्बाई बारह-बारह योजन की होती है। उनका आकार मंजूषा-पेटी जैसा होता है । गंगा जहाँ समुद्र में मिलती है, वहाँ उनका निवास है। सूत्र-११७ उन के कपाट वैडूर्य मणिमय होते हैं । वे स्वर्ण-घटित होती हैं । विविध प्रकार के रत्नों से परिपूर्ण होती हैं। उन पर चन्द्र, सूर्य तथा चक्र के आकार के चिह्न होते हैं। उन के द्वारों की रचना अनुसम-अविषम होती है। सूत्र- ११८-११९ निधियों के नामों के सदृश नामयुक्त देवों की स्थिति एक पल्योपम होती है । उन देवों के आवास अक्रयणीय-होते हैं-उन पर आधिपत्य प्राप्त नहीं कर सकता । प्रचुर धन-रत्न-संचय युक्त ये नौ निधियाँ भरतक्षेत्र के छहों खण्डों को विजय करने वाले चक्रवर्ती राजाओं के वंशगत होती हैं। सूत्र-१२० राजा भरत तेले की तपस्या के परिपूर्ण हो जाने पर पौषधशाला से बाहर निकला, स्नानघर में प्रविष्ट हुआ। स्नान आदि सम्पन्न कर उसने श्रेणि-प्रश्रेणि-जनों को बुलाया, नौ निधियों को साध लेने के उपलक्ष्य में । अष्टदिवसीय महोत्सव के सम्पन्न हो जाने पर राजा भरत ने सेनापति सुषेण को बुलाया । उससे कहा-जाओ, गंगा महानदी के पूर्व में अवस्थित, भरतक्षेत्र के कोणस्थित दूसरे प्रदेश को, जो पश्चिम दिशा में गंगा से, पूर्व एवं दक्षिण दिशा में समुद्रों से और उत्तर दिशा में वैताढ्य पर्वत से मर्यादित हैं तथा वहाँ के अवान्तरक्षेत्रीय समविषम कोणस्थ प्रदेशों को अधिकृत करो । शेष वर्णन पूर्ववत् । सेनापति सुषेणने उन क्षेत्रों को अधिकृत कर राजा भरत को उस से अवगत कराया । राजा भरत ने उसे सत्कृत, सम्मानित कर बिदा किया । तत्पश्चात् वह दिव्य चक्ररत्न शस्त्रागार से बाहर निकला । यावत् वह एक सहस्र योद्धाओं से संपरिवृत्त थाघिरा था । दिव्य नैऋत्य कोण में विनीता राजधानी की ओर प्रयाण किया । राजा भरत ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा-आभिषेक्य हस्तिरत्न को तैयार करो । मेरे आदेशानुरूप यह सब संपादित कर मुझे सूचित करो। सूत्र-१२१ राजा भरत ने इस प्रकार राज्य अर्जित किया- | शत्रुओं को जीता । उसके यहाँ समग्र रत्न उद्भूत हुए । नौ निधियाँ प्राप्त हुईं । खजाना समृद्ध था-। बत्तीस हजार राजाओं से अनुगत था । साठ हजार वर्षों में समस्त भरतक्षेत्र को साध लिया । तदनन्तर राजा भरत ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा-'देवानुप्रियों ! शीघ्र ही मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 44
SR No.034685
Book TitleAgam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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