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________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' वक्षस्कार/सूत्र जानना । तत्पश्चात् एक समय राजा भरत ने सेनापतिरत्न सुषेण को बुलाकर कहा-जाओ, खण्डप्रपात गुफा के उत्तरी द्वार के कपाट उद्घाटित करो । शेष कथन तमिस्रा गुफा के समान है। फिर राजा भरत उत्तरी द्वार से गया । सघन अन्धकार को चीर कर जैसे चन्द्रमा आगे बढ़ता है, उसी तरह खण्डप्रपात गुफा में प्रविष्ट हुआ, मण्डलों का आलेखन किया । खण्डप्रपात गुफा के ठीक बीच के भाग में उन्मग्न जला तथा निमग्नजला नामक दो बड़ी नदियाँ नीकलती हैं । इनका वर्णन पूर्ववत् है । केवल इतना अन्तर है, ये नदियाँ खण्डप्रपात गुफा के पश्चिमी भाग से निकलती हुई, आगे बढ़ती हुई पूर्वी भाग में गंगा महानदी में मिल जाती हैं । शेष वर्णन पूर्ववत् । केवल इतना अन्तर है, पुल गंगा के पश्चिमी किनारे पर बनाया । तत्पश्चात् खण्डप्रपात गुफा के दक्षिणी द्वार के कपाट क्रौञ्चपक्षी की ज्यों जोर से आवाज करते हुए सरसराहट के साथ स्वयमेव अपने स्थान से सरक गये, चक्ररत्न द्वारा निर्देशित मार्ग का अनुसरण करता हआ, राजा भरत निबिड अन्धकार को चीर कर आगे बढ़ते हुए चन्द्रमा की ज्यों खण्डप्रपात गुफा के दक्षिणी द्वार से निकला। सूत्र- १०५-१०६ तत्पश्चात्-गुफा से निकलने के बाद राजा भरत ने गंगा महानदी के पश्चिमी तट पर बारह योजन लम्बा, नौ योजन चौड़ा, श्रेष्ठ-नगर-सदृश-सैन्यशिबिर स्थापित किया । शेष कथन मागध देव समान है । फिर राजा ने नौ निधिरत्नों को-उद्दिष्ट कर तेला किया । राजा भरत नौ निधियों का मन में चिन्तन करता हआ पौषधशाला में अवस्थित रहा । नौ निधियाँ अपने अधिष्ठातृ-देवों के साथ वहाँ राजा भरत के समक्ष उपस्थित हुईं। वे निधियाँ अपरिमित-लाल, नीले, पीले, हरे, सफेद आदि अनेक वर्गों के रत्नों से युक्त थीं, ध्रुव, अक्षय तथा अव्यय-थीं, लोकविश्रुत थीं। वे इस प्रकार हैं- नैसर्प, पाण्डुक, पिंगलक, सर्वरत्न, महापद्म, काल, महाकाल, माणवक तथा शंखनिधि । सूत्र-१०७ नैसर्प निधि-ग्राम, आकर, नगर, पट्टन, द्रोणमुख, मडम्ब, स्कन्धावार, आपण तथा भवन-इनके स्थापनकी विशेषता होती है। सूत्र-१०८ पाण्डुक निधि-गिने जाने योग्य, मापे जानेवाले धान्य आदि, तोले जानेवाले चीनी, गुड़ आदि, कमल जाति के उत्तम चावल आदि धान्यों के बीजों को उत्पन्न करने में समर्थ होती हैं। सूत्र-१०९ पिंगलक निधि-पुरुषों, नारियों, घोड़ों तथा हाथियों के आभूषणों को उत्पन्न करने में समर्थ होती है। सूत्र-११० सर्वरत्न निधि-चक्रवर्ती के चौदह उत्तम रत्नों को उत्पन्न करती है । उनमें चक्ररत्न आदि सात एकेन्द्रिय होते हैं। सेनापतिरत्न आदि सात पंचेन्द्रिय होते हैं। सूत्र-१११ महापद्म निधि-सब प्रकार के वस्त्रों को उत्पन्न करती है । वस्त्रों के रंगने, धोने आदि समग्र सज्जा के निष्पादन में समर्थ होती है। सूत्र-११२ काल निधि-समस्त ज्योतिषशास्त्र के ज्ञान, तीर्थंकर, चक्रवर्ती तथा बलदेव-वासुदेव-वंश में जो शुभ, अशुभ घटित हुआ, होगा, हो रहा है, उन सब के ज्ञान, सौ प्रकार के शिल्पों के ज्ञान, उत्तम, मध्यम तथा अधम कर्मों के ज्ञान को उत्पन्न करने में समर्थ होती है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 43
SR No.034685
Book TitleAgam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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