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________________ आगम सूत्र १६, उपांगसूत्र-५, 'सूर्यप्रज्ञप्ति' प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र सूत्र-२०८ यह पूर्वकथित प्रकार से प्रकृतार्थ ऐसे एवं अभव्यजनो के हृदय से दुर्लभ ऐसी भगवती ज्योतिषराज प्रज्ञप्ति का किर्तन किया है। सूत्र - २०९ ___ इसको ग्रहण करके जड-गौरवयुक्त-मानी-प्रत्यनीक-अबहुश्रुत को यह प्रज्ञप्ति का ज्ञान देना नहीं चाहिए, इससे विपरीतजनों को यथा-सरल यावत् श्रुतवान् को देना चाहिए। सूत्र - २१० श्रद्धा-धृति-धैर्य-उत्साह-उत्थान-बल-वीर्य-पराक्रम से युक्त होकर इसकी शिक्षा प्राप्त करनेवाले भी अयोग्य हो तो उनको इस प्रज्ञप्ति की प्ररूपणा नहीं करनी चाहिए । यथासूत्र - २११ जो प्रवचन, कुल, गण या संघ से बाहर निकाले गए हो, ज्ञान-विनय से हीन हो, अरिहंत-गणधर और स्थवीर की मर्यादा से रहित हो-(ऐसे को यह प्रज्ञप्ति नहीं देना ।) सूत्र- २१२ धैर्य-उत्थान-उत्साह-कर्म-बल-वीर्य से ज्ञान प्राप्त करना चाहिए । इनको नियम से आत्मा में धारण करना। अविनीत को कभी ये ज्ञान मत देना। सूत्र-२१३ जन्म-मृत्यु-क्लेश दोष से रहित भगवंत महावीर के सुख देनेवाले चरण कमल में विनय से नम्र हआ मैं वन्दना करता हूँ। सूत्र-२१४ ये संग्रहणी गाथाएं हैं। (१६) सूर्यप्रज्ञप्ति-उपांगसूत्र-५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (सूर्यप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 50
SR No.034683
Book TitleAgam 16 Suryapragnati Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 16, & agam_suryapragnapti
File Size2 MB
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