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________________ आगम सूत्र १६, उपांगसूत्र-५, 'सूर्यप्रज्ञप्ति' प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र सूत्र - १६९,१७० चंद्र, सूर्य, ग्रहगण अनवस्थित योगवाले हैं और ये सब मेरुपर्वत को प्रदक्षिणावर्त से भ्रमण करते हैं । नक्षत्र और तारागण अवस्थित मंडलवाले हैं, वे भी प्रदक्षिणावर्त से मेरुपर्वत का भ्रमण करते हैं । सूत्र - १७१ सूर्य और चंद्र का ऊर्ध्व या अधो में संक्रमण नहीं होता, वे मंडल में सर्वाभ्यन्तर-सर्वबाह्य और तीर्छा संक्रमण करते हैं। सूत्र-१७२ सूर्य, चंद्र, नक्षत्र और महाग्रह के भ्रमण विशेष से मनुष्य के सुख-दुःख होते हैं । सूत्र - १७३ सूर्य-चंद्र के सर्वबाह्य मंडल से सर्वाभ्यन्तर मंडल में प्रवेश के समय नित्य तापक्षेत्र की वृद्धि होती है और उनके निष्क्रमण से क्रमश: तापक्षेत्र में हानि होती है। सूत्र-१७४ सूर्य-चंद्र का तापक्षेत्र मार्ग कलंबपुष्प के समान है, अंदर से संकुचित और बाहर से विस्तृत होता है। सूत्र - १७५-१७९ चंद्र की वृद्धि और हानि कैसे होती है ? चंद्र किस अनुभाव से कृष्ण या प्रकाशवाला होता है ? कृष्णराहु का विमान अविरहित-नित्य चंद्र के साथ होता है, वह चंद्र विमान से चार अंगुल नीचे विचरण करता है । शुक्लपक्ष में जब चंद्र की वृद्धि होती है, तब एक एक दिवस में बासठ-बासठ भाग प्रमाण से चंद्र उसका क्षय करता है । पन्द्रह भाग से पन्द्रहवे दिन में चंद्र उसका वरण करता है और पन्द्रह भाग से पुनः उसका अवक्रम होता है। इस तरह चंद्र की वृद्धि एवं हानि होती है, इसी अनुभाव से चंद्र काला या प्रकाशवान होता है। सूत्र-१८०,१८१ मनुष्यक्षेत्र के अन्दर उत्पन्न हुए चंद्र-सूर्य-ग्रहगणादि पंचविध ज्योतिष्क भ्रमणशील होते हैं । मनुष्य क्षेत्र के बाहिर के चंद्र-सूर्य-ग्रह-नक्षत्र तारागण भ्रमणशील नहीं होते, वे अवस्थित होते हैं। सूत्र - १८२-१८४ इस प्रकार जंबूद्वीप में दो चंद्र, दो सूर्य उनसे दुगुने चार-चार चंद्र-सूर्य लवणसमुद्र में, उनसे तीगुने चंद्र-सूर्य घातकीघण्ड में हैं । जंबूद्वीप में दो, लवणसमुद्र में चार और घातकीखण्ड में बारह चंद्र होते हैं । घातकीखण्ड से आगेआगे चंद्र का प्रमाण तीनगुना एवं पूर्व के चंद्र को मिलाकर होता है । (जैसे कि-कालोदसमुद्र है, घातकीखण्ड के बारह चंद्र को तीनगुना करने से ३६ हुए उनमें पूर्व के लवणसमुद्र के चार और जंबूद्वीप के दो चंद्र मिलाकर बयालीस हुए)। सूत्र - १८५ ___यदि नक्षत्र, ग्रह और तारागण का प्रमाण जानना है तो उस चंद्र से गुणित करने से वे भी प्राप्त हो सकते हैं। सूत्र - १८६ ___ मनुष्य क्षेत्र के बाहिर चंद्र-सूर्य अवस्थित प्रकाशवाले होते हैं, चंद्र अभिजीत नक्षत्र से और सूर्य पुष्य नक्षत्र से युक्त रहता है। सूत्र-१८७-१८९ चंद्र से सूर्य और सूर्य से चंद्र का अन्तर ५०००० योजन है। सूर्य से सूर्य और चंद्र से चंद्र का अन्तर मनुष्य क्षेत्र के बाहर एक लाख योजन का होता है । मनुष्यलोक के बाहर चंद्र-सूर्य से एवं सूर्य-चंद्र से अन्तरित होता है, उनकी लेश्या आश्चर्यकारी-शुभ और मन्द होती है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (सूर्यप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 46
SR No.034683
Book TitleAgam 16 Suryapragnati Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 16, & agam_suryapragnapti
File Size2 MB
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