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आगम सूत्र १६, उपांगसूत्र-५, 'सूर्यप्रज्ञप्ति'
प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र अमावास्या के योग को समझ लेना...यावत्... जिस देश में चंद्र अन्तिम पूर्णिमा के साथ योग करता है उसी देश में वह-वह पूर्णिमा स्थानरूप मंडल के १२४ भाग करके सोलह भाग को छोड़कर यह चन्द्र बासठवीं अमावास्या के साथ योग करता है। सूत्र - ९३
अब सूर्य का अमावास्या के साथ योग बताते हैं जिस मंडल प्रदेश में सूर्य अन्तिम बासठवीं अमावास्या के साथ योग करता है, उस अमावास्या स्थानरूप मंडल को १२४ भाग करके ९४वे भाग ग्रहण करके यह सूर्य इस संवत्सर की प्रथम अमावास्या के साथ योग करता है, इस प्रकार जैसे सूर्य का पूर्णिमा के साथ योग बताया था, उसीके समान अमावास्या को भी समझ लेना... यावत्... अन्तिम बावनवीं अमावास्या के बारे में कहते हैं कि जिस मंडलप्रदेश में सूर्य अन्तिम बासठवीं पूर्णिमा को पूर्ण करता है, उस पूर्णिमास्थान मंडल के १२४ भाग करके ४७ भाग छोड़कर यह सूर्य अन्तिम बासठवी अमावास्या के साथ योग करता है । सूत्र - ९४
इस पंच संवत्सरात्मक युग में प्रथम पूर्णिमा में चंद्र किस नक्षत्र से योग करता है ? घनिष्ठा नक्षत्र से योग करता है, घनिष्ठा नक्षत्र के तीन मुहूर्त पूर्ण एवं एक मुहूर्त के उन्नीस बासट्ठांश भाग तथा बासठवें भाग को सडसठ से विभक्त करके जो पैंसठ चूर्णिका भाग शेष रहता है, उस समय में चंद्र प्रथम पूर्णिमा को समाप्त करता है । सूर्य पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के अट्ठाईस मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के अडतीस बासट्ठांश भाग तथा बासठवें भाग के सडसठ भाग करके बत्तीस चूर्णिका भाग शेष रहने पर सूर्य प्रथम पूर्णिमा को समाप्त करता है।
दूसरी पूर्णिमा-उत्तरा प्रौष्ठपदा के सत्ताईस मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के चौद बासट्ठांश भाग तथा बासठवें भाग को सडसठ से विभक्त करके जो बासठ चूर्णिका भाग शेष रहता है तब चंद्र दूसरी पूर्णिमा को समाप्त करता है और चित्रा नक्षत्र के एक मुहूर्त के अट्ठाईस बासठांस भाग तथा बासठवें भाग को सडसठ से विभक्त करके तीस चूर्णिका शेष रहता है तब सूर्य दूसरी पूर्णिमा को समाप्त करता है।
तीसरी पूर्णिमा-उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के छब्बीस मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के छब्बीस बासट्ठांश भाग तथा बासठ भाग को सडसठ से विभक्त करके जो चोप्पन चूर्णिका भाग शेष रहता है तब चंद्र तीसरी पूर्णिमा को समाप्त करता है । पुनर्वसु नक्षत्र के सोलह मुहूर्त और एक मुहूर्त के आठ बासठांश भाग तथा बासठ भाग को सडसठ से विभक्त करके बीस चूर्णिका भाग शेष रहता है तब सूर्य तीसरी पूर्णिमा को पूर्ण करता है । चंद्र उत्तराषाढ़ा के चरम समय में बासठवीं पूर्णिमा को समाप्त करता है और सूर्य पुष्य नक्षत्र के उन्नीस मुहूर्त और एक मुहूर्त के तेयालीस बासट्ठांश भाग तथा बासठवें भाग को सडसठ से विभक्त करके तेतीस चूर्णिका भाग शेष रहने पर बासठवीं पूर्णिमा को समाप्त करता है। सूत्र-९५
इस पंच संवत्सरात्मक युग में प्रथम अमावास्या में चंद्र अश्लेषा नक्षत्र से योग करता है । आश्लेषा नक्षत्र का एक मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के चालीश बासट्ठांश भाग मुहूर्त तथा बासठवें भाग को सडसठ से विभक्त करके बासठ चूर्णिका भाग शेष रहने पर चन्द्र प्रथम अमावास्या को समाप्त करता है, अश्लेषा नक्षत्र के ही साथ चन्द्र के समान गणित से सूर्य प्रथम अमावास्या को समाप्त करता है । अन्तिम अमावास्या को चंद्र और सूर्य पुनर्वसु नक्षत्र से योग करके समाप्त करते हैं । उस समय पुनर्वसु नक्षत्र के बाईस मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के बयालीस बासट्ठांश भाग शेष रहता है। सूत्र - ९६
जिस नक्षत्र के साथ चन्द्र जिस देश में योग करता है वही ८१९ मुहूर्त तथा एक मुहूर्त के चौबीस बासट्ठांश भाग तथा बासठवें भाग को सडसठ से विभक्त करके बासठ चूर्णिका भाग को ग्रहण करके पुनः वही चंद्र अन्य जिस प्रदेश में सदृश नक्षत्र के साथ योग करता है, विवक्षित दिन में चन्द्र जिस नक्षत्र से जिस प्रदेश में योग करता है वह १६३८ मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के उनचास बासठांश भाग तथा बांसठवे भाग को सडसठ से विभक्त करके पैंसठ चूर्णिका
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (सूर्यप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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