________________
आगम सूत्र १६, उपांगसूत्र-५, 'सूर्यप्रज्ञप्ति'
प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र विशाखा और दो उत्तराषाढ़ा।
सूर्य के साथ चार अहोरात्र एवं छ मुहूर्त से योग करनेवाले नक्षत्र दो अभिजीत हैं; बारह नक्षत्र सूर्य के साथ छ अहोरात्र एवं इक्कीस मुहूर्त से योग करते हैं-दो शतभिषा, दो भरणी, दो आर्द्रा, दो अश्लेषा, दो स्वाति और दो ज्येष्ठा । तीस नक्षत्र सूर्य के साथ तेरह अहोरात्र एवं बारह मुहूर्त से योग करते हैं-दो श्रवण यावत् दो पूर्वाषाढ़ा; बारह नक्षत्र सूर्य से बीस अहोरात्र एवं तीन मुहूर्त से योग करते हैं । दो उत्तरा भाद्रपद यावत् दो उत्तराषाढ़ा । सूत्र-८८
हे भगवन् ! सीमाविष्कम्भ किस प्रकार से है ? इन छप्पन नक्षत्रों में दो अभिजीत नक्षत्र ऐसे हैं जिसका सीमाविष्कम्भ ६३० भाग एवं त्रीस सडसट्ठांश भाग है; १२ नक्षत्र का १००५ एवं त्रीस सडसट्ठांश भाग सीमा विष्कम्भ है-दो शतभिषा यावत् दो ज्येष्ठा; तीस नक्षत्र का सीमाविष्कम्भ २०१० एवं तीस सडसट्ठांश भाग है-दो श्रवण यावत् दो पूर्वाषाढ़ा, बारह नक्षत्र ३०१५ एवं तीस सडसट्ठांश भाग सीमा विष्कम्भ से हैं-दो उत्तरा भाद्रपदा यावत् दो उत्तराषाढ़ा सूत्र-८९
इन छप्पन नक्षत्रों में ऐसे कोई नक्षत्र नहीं है जो सदा प्रातःकाल में चन्द्र से योग करके रहते हैं | सदा सायंकाल और सदा उभयकाल चन्द्र से योग करके रहनेवाला भी कोई नक्षत्र नहीं है । केवल दो अभिजीत नक्षत्र ऐसे हैं जो चुंवालीसवी-चुंवालीसवी अमावास्या में निश्चितरूप से प्रातःकाल में चन्द्र से योग करते हैं, पूर्णिमा में नहीं करते । सूत्र-९०
निश्चितरूप से बासठ पूर्णिमा एवं बासठ अमावास्याएं इन पाँच संवत्सरवाले युग में होती है । जिस देश में अर्थात् मंडल में चन्द्र सर्वान्तिम बांसठवी पूर्णिमा का योग करता है, उस पूर्णिमा स्थान से अनन्तर मंडल का १२४ भाग करके उसके बतीसवें भाग में वह चन्द्र पहली पूर्णिमा का योग करता है, वह पूर्णिमावाले चंद्रमंडल का १२४ भाग करके उसके बतीसवे भाग प्रदेश में यह दूसरी पूर्णिमा का चन्द्र योग करती है, इसी अभिलाप से इस संवत्सर की तीसरी पूर्णिमा को भी जानना । जिस प्रदेश चंद्र तीसरी पूर्णिमा का योग समाप्त करता है, उस पूर्णिमा स्थान से उस मंडल को १२४ भाग करके २२८ वें भाग में यह चन्द्र बारहवीं पूर्णिमा का योग करता है । इसी अभिलाप से उन-उन पूर्णिमा स्थान में एक-एक मंडल के १२४-१२४ भाग करके बत्तीसवें-बत्तीसवें भाग में इस संवत्सर की आगे-आगे की पूर्णिमा के साथ चन्द्र योग करता है । इसी जंबूद्वीप में पूर्व-पश्चिम लम्बी और उत्तर-दक्षिण विस्तार-वाली जीवारूप मंडल का १२४ भाग करके दक्षिण विभाग के चतुर्थांश मंडल के सत्ताईस भाग ग्रहण करके, अट्ठाईसवे भाग को बीससे विभक्त करके अट्ठारहवे भाग को ग्रहण करके तीन भाग एवं दो कला से पश्चास्थित चउब्भाग मंडल को प्राप्त किए बिना यह चन्द्र अन्तिम बावनवीं पूर्णिमा के साथ योग करता है। सूत्र - ९१
___ इस पंचसंवत्सरात्मक युग में प्रथम पूर्णिमा के साथ सूर्य किस मंडलप्रदेश में रहकर योग करता है ? जिस देश में सूर्य सर्वान्तिम बासठवीं पूर्णिमा के साथ योग करता है उस मंडल के १२४ भाग करके चोरानवे भाग को ग्रहण करके यह सूर्य प्रथम पूर्णिमा से योग करता है । इसी अभिलाप से पूर्ववत्-इस संवत्सर की दूसरी और तीसरी पूर्णिमा से भी योग करता है । इसी तरह जिस मंडल प्रदेश में यह सूर्य तीसरी पूर्णिमा को पूर्ण करता है उस पूर्णिमा स्थान के मंडल को १२४ भाग करके ८४६वा भाग ग्रहण करके यह सूर्य बारहवीं पूर्णिमा के साथ योग करता है । इसी अभिलाप से वह सूर्य उन उन मंडल के १२४ भाग करके ९४वे-९४वे भाग को ग्रहण करके उन-उन प्रदेश में आगे-आगे की पूर्णिमा से योग करता है । चन्द्र के समान अभिलाप से बावनवीं पूर्णिमा के गणित को समझ लेना। सूत्र-९२
इस पंच संवत्सरात्मक युग में चन्द्र का प्रथम अमावास्या के साथ योग बताते हैं जिस देश में अन्तिम बावनवीं अमावास्या के साथ चन्द्र योग करके पूर्ण करता है, उस देश-मंडल के १२४ भाग करके उसके बत्तीसवें भाग में प्रथम अमावास्या के साथ चंद्र योग करता है, चन्द्र का पूर्णिमा के साथ योग जिस अभिलाप से बताए हैं उसी अभिलाप से
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (सूर्यप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 31