________________
आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश/सूत्र कायिक तक कहना । इसी प्रकार द्वीन्द्रियों के अवग्रह में समझना । विशेष यह कि द्वीन्द्रियों के व्यंजनावग्रह तथा अर्थावग्रह दो प्रकार के हैं । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में भी समझना । विशेष यह है कि इन्द्रिय की परिवृद्धि होने से एक-एक व्यंजनावग्रह एवं अर्थावग्रह की भी वृद्धि कहना । चतुरिन्द्रिय जीवों के व्यञ्जनावग्रह तीन प्रकार के, अर्थावग्रह चार प्रकार के हैं । वैमानिकों तक शेष समस्त जीवों के अवग्रह नैरयिकों समान समझना। सूत्र-४३७
भगवन् ! इन्द्रियाँ कितने प्रकार की कही हैं ? गौतम ! दो प्रकार की, द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय । द्रव्येन्द्रियाँ आठ प्रकार की हैं-दो श्रोत्र, दो नेत्र, दो घ्राण, जिह्वा और स्पर्शन । नैरयिकों को ये ही आठ द्रव्येन्द्रियाँ हैं । इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक समझना । पृथ्वीकायिकों को एक स्पर्शनेन्द्रिय है । वनस्पतिकायिकों तक इसी प्रकार कहना । द्वीन्द्रिय को दो द्रव्येन्द्रियाँ हैं, स्पर्शनेन्द्रिय और जिह्वेन्द्रिय । त्रीन्द्रिय के चार द्रव्येन्द्रियाँ हैं, दो घ्राण, जिह्वा और स्पर्शन | चतुरिन्द्रिय जीवों के छह द्रव्येन्द्रियाँ हैं, दो नेत्र, दो घ्राण, जिह्वा और स्पर्शन | शेष सबके नैरयिकों की तरह आठ द्रव्येन्द्रियाँ कहना ।
भगवन् ! एक-एक नैरयिक की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! अनन्त । कितनी बद्ध हैं ? गौतम ! आठ । एक-एक नैरयिक की पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ आठ हैं, सोलह हैं, संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं । एकएक असुरकुमार के अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं । बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ आठ हैं । पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) आठ हैं, नौ हैं, संख्यात हैं, असंख्यात हैं, या अनन्त हैं । स्तनितकुमार तक इसी प्रकार कहना । पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक में भी इसी प्रकार कहना । विशेषतः इनकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ एक मात्र स्पर्शनेन्द्रिय है। तेजस्का-यिक
और वायुकायिक मैं भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि इनकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ नौ या दस होती हैं । द्वीन्द्रियों में भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि इनकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ दो हैं । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय में समझना । विशेष यह कि (इसकी) बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ ४ हैं । इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय में भी जानना । विशेष यह कि (इसकी) बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ छ हैं।
पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, मनुष्य, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और सौधर्म, ईशान देव की अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में असुरकुमार के समान समझना । विशेष यह कि पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी मनुष्य के होती हैं, किसी के नहीं होती । जिसके होती है, उसके आठ, नौ, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं । सनत्कुमार यावत् अच्युत और ग्रैवेयक देव की अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में नैरयिक के समान जानना । एक-एक विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं । विजयादि चारों में से प्रत्येक की बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ आठ हैं । और पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) आठ, सोलह, चौबीस या संख्यात होती हैं । सर्वार्थसिद्ध देव की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त, बद्ध आठ और पुरस्कृत भी आठ होती हैं।
भगवन् ! (बहुत-से) नारकों की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! अनन्त । बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं? असंख्यात हैं । पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! अनन्त हैं । इसी प्रकार यावत् (बहुत-से) ग्रैवेयक देवों में समझना । विशेष यह कि मनुष्यों की बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात होती हैं । (बहुत-से)
वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवों की अतीत (द्रव्येन्द्रियाँ) अनन्त हैं, बद्ध असंख्यात हैं (और) पुरस्कृत असंख्यात हैं । सर्वार्थसिद्ध देवों की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध संख्यात हैं (और) पुरस्कृत संख्यात हैं।
भगवन् ! एक-एक नैरयिक की नैरयिकपन में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! अनन्त हैं | बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ हैं । पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! किसी की होती हैं, किसी की नहीं
। होती हैं, उसकी आठ, सोलह, चौबीस, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं । एक-एक नैरयिक की असुरकुमार पर्याय में अतीत (द्रव्येन्द्रियाँ) अनन्त हैं । बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) नहीं हैं । पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती, जिसकी होती है, उसकी आठ, सोलह, चौबीस, संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं । इसी प्रकार एक-एक नैरयिक की यावत् स्तनितकुमारपर्याय में कहना । भगवन् ! एक-एक नैरयिक की पृथ्वीकायपन में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं । बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं । पुरस्कृत किसी की होती हैं, किसी की नहीं
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 99