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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र घ्राणेन्द्रियोपचय, जिह्वेन्द्रियोपचय और स्पर्शनेन्द्रियोपचय । भगवन् ! नैरयिकों के इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का है? गौतम ! पाँच प्रकार का, श्रोत्रेन्द्रियोपचय यावत् स्पर्शनेन्द्रियोपचय । इसी प्रकार यावत् वैमानिकों के इन्द्रियो-पचय के विषय में कहना । जिसके जितनी इन्द्रियाँ होती हैं, उसके उतने ही प्रकार का इन्द्रियोपचय कहना चाहिए।
भगवन् ! इन्द्रियनिवर्त्तना कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की, श्रोत्रेन्द्रियनिवर्त्तना यावत् स्पर्शनेन्द्रियनिर्वर्त्तना । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना । विशेष यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ होती हैं, उसकी उतनी ही इन्द्रियनिवर्त्तना कहना । भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रियनिर्वर्तना कितने समय की है ? गौतम ! असंख्यात समयों के अन्तमुहर्त की है । इसी प्रकार स्पर्शनेन्द्रियनिर्वर्तना-काल तक कहना । इसी प्रकार नैरयिकों यावत् वैमानिकों की इन्द्रियनिर्वर्तना के काल में कहना।
भगवन् ! इन्द्रियलब्धि कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की-श्रोत्रेन्द्रियलब्धि यावत् स्पर्शनेन्द्रियलब्धि । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना । विशेष यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतनी ही इन्द्रियलब्धि कहनी चाहिए । इन्द्रियों का उपयोगकाल पाँच प्रकार का है, श्रोत्रेन्द्रिय-उपयोगकाल यावत् स्पर्शने-न्द्रियउपयोगकाल । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक समझना । विशेष यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतने ही इन्द्रियोपयोगकाल कहने चाहिए।
भगवन् ! इन श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय के जघन्य उपयोगाद्धा, उत्कृष्ट उपयोगाद्धा और जघन्योत्कृष्ट उपयोगाद्धा में कौन, किससे अल्प, बहत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! जघन्य उपयोगाद्धा चक्षुरिन्द्रिय का सबसे कम है, उससे श्रोत्रेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे घ्राणेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे जिह्वेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे स्पर्शेन्द्रिय का विशेषाधिक है । उत्कृष्ट उपयोगाद्धा में चक्षुरिन्द्रिय का सबसे कम है, उससे श्रोत्रेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे घ्राणेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे जिह्वेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे स्पर्शेन्द्रिय का विशेषाधिक है । जघन्योत्कृष्ट उपयोगाद्धा से सबसे कम चक्षु-रिन्द्रिय का जघन्य उपयोगाद्धा है, उससे श्रोत्रेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे घ्राणेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे जिह्वेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे स्पर्शेन्द्रिय का विशेषाधिक है, स्पर्शेन्द्रिय के जघन्य उपयोगाद्धा से चक्षुरिन्द्रिय का उत्कृष्ट उपयोगाद्धा विशेषाधिक है, उससे श्रोत्रेन्द्रिय का उत्कृष्ट उपयोगाद्धा विशेषाधिक है, उससे घ्राणेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे जिह्वेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे स्पर्शेन्द्रिय का विशेषाधिक है।
भगवन ! इन्द्रिय-अवग्रहण कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, श्रोत्रेन्द्रिय-अवग्रहण यावत स्पर्शेन्द्रिय-अवग्रहण । इसी प्रकार नारकों से वैमानिकों तक कहना । विशेष यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतने अवग्रहण समझना। सूत्र-४३६
भगवन् ! इन्द्रिय-अवाय कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का, श्रोत्रेन्द्रिय अवाय यावत् स्पर्शेन्द्रिय अवाय । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना । विशेष यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतने
कहना । भगवन् ! ईहा कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की-श्रोत्रेन्द्रिय-ईहा यावत् स्पर्शेन्द्रिय-ईहा। इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना । विशेष यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतनी ईहा कहना।।
भगवन् ! अवग्रह कितने प्रकार का है ? अवग्रह दो प्रकार का है, अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह । भगवन् ! व्यंजनावग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ? व्यञ्जनावग्रह चार प्रकार का है, श्रोत्रेन्द्रियावग्रह, घ्राणेन्द्रियावग्रह, जिह्वेन्द्रियावग्रह और स्पर्शेन्द्रियावग्रह | भगवन् ! अर्थावग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ? अर्थावग्रह छह प्रकार का है, श्रोत्रेन्द्रिय-अर्थावग्रह यावत् स्पर्शेन्द्रिय-अर्थावग्रह और नोइन्द्रिय अर्थावग्रह ।
भगवन् ! नैरयिकों के कितने अवग्रह हैं ? गौतम ! दो-अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह । इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक कहना । पृथ्वीकायिकों के दो अवग्रह हैं । अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह । पृथ्वी-कायिकों को एक स्पर्शेन्द्रिय-व्यंजनावग्रह ही है । पृथ्वीकायिकों को एक स्पर्शेन्द्रिय-अर्थावग्रह ही है । इसी प्रकार वनस्पति
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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