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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र के अनन्तगुणे हैं, (और उनसे) चक्षुरिन्द्रिय के मृदु-लघुगुण अनन्तगुणे हैं। सूत्र-४२३
भगवन् ! नैरयिकों के कितनी इन्द्रियाँ हैं ? गौतम ! पाँच-श्रोत्रेन्द्रिय से स्पर्शनेन्द्रिय तक । भगवन् ! नारकों की श्रोत्रेन्द्रिय किस आकार की होती है ? गौतम ! कदम्बपुष्प के आकार की । इसी प्रकार समुच्चय जीवों में पंचेन्द्रियों के समान नारकों की भी वक्तव्यता कहना । विशेष यह कि नैरयिकों की स्पर्शनेन्द्रिय दो प्रकार की है, यथाभवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । वे दोनों हुण्डकसंस्थान की है।
भगवन् ! असुरकुमारों के कितनी इन्द्रियाँ हैं ? गौतम ! पाँच, समुच्चय जीवों के समान असुरकुमारों की इन्द्रियसम्बन्धी वक्तव्यता कहना । विशेष यह कि (इनकी) स्पर्शनेन्द्रिय दो प्रकार की है, यथा-भवधारणीय समचतुरस्रसंस्थान वाली है और उत्तरवैक्रिय नाना संस्थान वाली होती है। इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक समझना।
भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के कितनी इन्द्रियाँ हैं ? गौतम ! एक स्पर्शनेन्द्रिय (ही) है । भगवन् ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय किस आकार की है ? गौतम ! मसूर-चन्द्र के आकार की है । पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय का बाहल्य अंगुल से असंख्यातवें भाग है । उनका पृथुत्व उनके शरीरप्रमाणमात्र है । पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय अनन्तप्रदेशी है । और वे असंख्यातप्रदेशों में अवगाढ़ है।
भगवन् ! इन पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय, अवगाहना की अपेक्षा और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? गौतम ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा सबसे कम है, प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणी (अधिक) है । भगवन् ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश-गुरु-गुण कितने
नन्त । इसी प्रकार मद-लघगणों के विषय में भी समझना । भगवन ! इन पथ्वी-कायिकों की
के कर्कश-गरुगणों और मदलघगणों में से कौन, किससे अल्प, बहत, तल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! कर्कश और गुरु गुण सबसे कम हैं, उनसे मृदु तथा लघु गुण अनन्तगुणे हैं । पृथ्वी-कायिकों के समान अप्कायिकों से वनस्पतिकायिकों तक समझ लेना, किन्तु इनके संस्थान में विशेषता है-अप्कायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय बिन्दु के आकार की है, तेजस्कायिकों की सूचीकलाप के आकार की, वायुकायिकों की पताका आकार की तथा वनस्पतिकायिकों का आकार नाना प्रकार का है।
भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों को कितनी इन्द्रियाँ हैं ? गौतम ! दो, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय । दोनों इन्द्रियों के संस्थान, बाहल्य, पृथुत्व, प्रदेश और अवगाहना के विषय में औधिक के समान कहना । विशेषता यह कि स्पर्श-नेन्द्रिय हुण्डकसंस्थान वाली होती है । भगवन् ! इन द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय में से अवगाहना की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से तथा अवगाहना और प्रदेशों (दोनों) की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? गौतम ! अवगाहना की अपेक्षा से-द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय सबसे कम है, (उससे) संख्यात गुणी स्पर्शनेन्द्रिय है । प्रदेशों से सबसे कम द्वीन्द्रिय की जिह्वेन्द्रिय है, (उससे) स्पर्शनेन्द्रिय संख्यात गुणी है । अवगाहना
और प्रदेशों से-द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय अवगाहना से सबसे कम है, (उससे) स्पर्शनेन्द्रिय संख्यातगुणी अधिक है, स्पर्शनेन्द्रिय की अवगाहनार्थता से जिह्वेन्द्रिय प्रदशों से अनन्तगुणी है । (उससे) स्पर्शनेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणी है । भगवन् ! द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय के कितने कर्कश-गुरुगुण हैं ? गौतम ! अनन्त । इसी प्रकार इनकी स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश-गुरुगुण और मृदु-लघुगुण भी समझना । भगवन् ! इन द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश-गुरुगुणों तथा मृदु-लघुगुणों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है? गौतम ! सबसे थोड़े द्वीन्द्रियों के जिह्वेन्द्रिय के कर्कश-गुरुगुण हैं, (उनसे) स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश-गुरुगुण अनन्तगुणे हैं । (इन्द्रिय) के मृदु-लघुगुण अनन्तगुणे हैं (और उनसे) जिह्वेन्द्रिय के मृदु-लघुगुण अनन्तगुणे हैं।
इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय में कहना । विशेष यह है कि इन्द्रिय की परिवृद्धि करना । त्रीन्द्रिय जीवों की घ्राणेन्द्रिय थोड़ी होती है, चतुरिन्द्रिय जीवों की चक्षुरिन्द्रिय थोड़ी होती है । पंचेन्द्रियतिर्यंचों और मनुष्यों के इन्द्रियों के संस्थानादि नारकों की इन्द्रिय-संस्थानादि के समान समझना । विशेषता यह कि उनकी स्पर्शनेन्द्रिय छह प्रकार के
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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