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________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद-११- भाषा पद / उद्देश / सूत्र सूत्र - ३७५ भगवन् ! मैं ऐसा मानता हूँ कि भाषा अवधारिणी है; मैं ऐसा चिन्तन करता हूँ कि भाषा अवधारिणी है; भगवन् ! क्या मैं ऐसा मानूँ ? क्या ऐसा चिन्तन करूँ कि भाषा अवधारिणी है ? हाँ, गौतम ! यह सर्व सत्य है । भगवन्! अवधारिणी भाषा क्या सत्य है, मृषा है, सत्यामृषा है, अथवा असत्यामृषा है ? गौतम ! वह कदाचित् सत्य होती है, कदाचित् मृषा होती है, कदाचित् सत्यामृषा होती है और कदाचित् असत्याभाषा (भी) होती है। भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहते हैं ? गौतम! आराधनी (भाषा है, वह सत्य है, विराधनी भाषा) मृषा है, आराधनी-विराधनी सत्यामृषा है, और जो न आराधनी है, न विराधनी है और न ही आराधनी विराधनी है, वह असत्यामृषा भाषा है । हे गौतम ! इस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि अवधारिणी भाषा कदाचित् सत्य यावत् कदाचित् असत्यामृषा है । सूत्र - ३७६ भगवन् ! 'गायें', 'मृग', 'पशु', 'पक्षी' क्या यह भाषा प्रज्ञापनी हैं ? यह भाषा मृषा नहीं है ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है । भगवन् ! जो स्त्रीवचन, पुरुषवचन अथवा नपुंसकवचन है, क्या यह प्रज्ञापनी भाषा है ? यह भाषा मृषा नहीं है? हाँ, ऐसा ही है । - | भगवन् ! यह जो स्त्री- आज्ञापनी, पुरुष आज्ञापनी अथवा नपुंसक आज्ञापनी है, क्या यह प्रज्ञापनी भाषा है, यह भाषा मृषा नहीं है ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है जो स्त्री प्रज्ञापनी है और जो पुरुष प्रज्ञापनी है, अथवा जो नपुंसकप्रज्ञापनी है, यह प्रज्ञापनी भाषा है और यह भाषा मृषा नहीं है। जाति में स्त्रीवचन, जाति में पुरुषवचन, अथवा जाति में नपुंसकवचन, यह प्रज्ञापनी भाषा है और यह भाषा मृषा नहीं है । जाति में जो स्त्री- आज्ञापनी है, जाति में जो पुरुषआज्ञापनी है, या जाति में जो नपुंसक आज्ञापनी है, यह प्रज्ञापनी भाषा है और यह भाषा मृषा नहीं है। जाति में जो स्त्री- प्रज्ञापनी है, जाति में जो पुरुष प्रज्ञापनी है, अथवा जाति में जो नपुंसक - प्रज्ञापनी है, यह प्रज्ञापनी भाषा है और यह भाषा मृषा नहीं है । सूत्र - ३७७ भगवन् ! क्या मन्द कुमार अथवा मन्द कुमारिका बोलती हुई ऐसा जानती है कि मैं बोल रही हूँ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, सिवाय संज्ञी के भगवन् ! क्या मन्द कुमार अथवा मन्द कुमारिका आहार करती हुई जानती है कि मैं इस आहार को करता हूँ या करती हूँ ? गौतम ! संज्ञी को छोड़कर यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या मन्द कुमार अथवा मन्द कुमारिका यह जानते हैं कि ये मेरे माता-पिता है ? गौतम ! पूर्ववत् । भगवन् ! मन्द कुमार अथवा मन्द कुमारिका क्या यह जानते हैं कि यह मेरे स्वामी का घर है ? गौतम ! पूर्ववत् । भगवन् ! क्या मन्द कुमार या मन्द कुमारिका यह जानते हैं कि यह मेरे भर्ता का दारक है। गौतम पूर्ववत् । भगवन् ! ऊंट, बैल, गधा, घोड़ा, बकरा और भेड़ क्या बोलता हुआ यह जानता है कि यह मैं बोल रहा हूँ ? गौतम ! संज्ञी को छोड़कर यह अर्थ शक्य नहीं है । भगवन् ! उष्ट्र से एलक तक आहार करता हुआ यह जानता है कि में यह आहार कर रहा हूँ ? गौतम ! पूर्ववत् । भगवन् ! ऊंट यावत् एलक क्या यह जानता है कि यह मेरे स्वामी का पुत्र है ? गौतम संज्ञी को छोड़कर यह अर्थ समर्थ नहीं है। सूत्र - ३७८ भगवन् ! मनुष्य, महिष, अश्व, हाथी, सिंह, व्याघ्र, वृक, द्वीपिक, ऋक्ष, तरक्ष, पाराशर, रासभ, सियार, बिडाल, शुनक, कोलशुनक, लोमड़ी, शशक, चीता और चिल्ललक, ये और इसी प्रकार के जो अन्य जीव हैं, क्या वे सब एकवचन हैं ? हाँ, गौतम ! हैं । भगवन् ! मनुष्यों से लेकर बहुत चिल्ललक तथा इसी प्रकार के जो अन्य प्राणी हैं, वे सब क्या बहुवचन हैं ? हाँ, गौतम ! हैं । भगवन् ! मनुष्य की स्त्री यावत् चिल्ललक स्त्री और अन्य इसी प्रकार के जो भी (जीव) हैं, क्या वे सब स्त्रीवचन हैं ? हाँ, गौतम हैं। भगवन् ! मनुष्य से चिल्ललक तक तथा जो अन्य भी मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (प्रज्ञापना)" आगमसूत्र - हिन्द-अनुवाद” Page 82
SR No.034682
Book TitleAgam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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