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________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र सूत्र-३७३ भगवन् ! जीव गतिचरम से चरम है अथवा अचरम ? गौतम ! कथंचित् चरम है, कथंचित् अचरम है । भगवन्! (एक) नैरयिक गतिचरम से चरम है या अचरम ? गौतम ! कथंचित् चरम और कथंचित् अचरम है । इसी प्रकार (एक) वैमानिक तक जानना । भगवन् ! (अनेक) नैरयिक गतिचरम से चरम हैं अथवा अचरम ? गौतम ! चरम भी हैं और अचरम भी । इसी प्रकार (अनेक) वैमानिक तक कहना । भगवन् ! (एक) नैरयिक स्थितिचरम की अपेक्षा से चरम है या अचरम? गौतम ! कथंचित् चरम है, कथंचित् अचरम है। (एक) वैमानिक देव-पर्यन्त इसी प्रकार कहना । भगवन! (अनेक) नैरयिक स्थितिचरम से चरम हैं अथवा अचरम? गौतम ! चरम भी हैं और अचरम भी। (अनेक) वैमानिक देवों तक इसी प्रकार कहना। भगवन् ! (एक) नैरयिक भवचरम से चरम है या अचरम ? गौतम ! कथंचित चरम है और कथंचित अचरम । (यों) लगातार (एक) वैमानिक तक इसी प्रकार कहना चाहिए । भगवन् ! (अनेक) नैरयिक भवचरम से चरम हैं या अचरम ? गौतम ! चरम भी हैं और अचरम भी । (अनेक) वैमानिक तक इसी प्रकार समझना। भगवन् ! भाषाचरम से (एक) नैरयिक चरम है या अचरम ? गौतम ! कथंचित् चरम है तथा कथंचित् अचरम । इसी तरह (एक) वैमानिक पर्यन्त कहना । भगवन् ! भाषाचरम से (अनेक) नैरयिक चरम हैं अथवा अचरम हैं ? गौतम ! चरम भी हैं और अचरम भी । एकेन्द्रिय जीवों को छोड़कर वैमानिक तक इसी प्रकार कहना। भगवन् ! (एक) नैरयिक आनापन चरम से चरम है या अचरम ? इसी प्रकार (एक) वैमानिक पर्यन्त कहना। भगवन् ! (अनेक) नैरयिक आनापानचरम से चरम हैं या अचरम ? गौतम ! चरम भी हैं और अचरम भी । इसी प्रकार (अनेक) वैमानिक तक कहना । आहारचरम से (एक) नैरयिक कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम । (एक) वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार कहना । (अनेक) नैरयिक आहारचरम से चरम भी हैं और अचरम भी । वैमानिक देवों तक इसी प्रकार कहना। (एक) नैरयिक भावचरम से कथंचित् चरम और कथंचित् अचरम हैं । इसी प्रकार (एक) वैमानिक पर्यन्त कहना । (अनेक) नैरयिक भावचरम से चरम भी हैं और अचरम भी । इसी प्रकार (अनेक) वैमानिकों तक कहना । (एक) नैरयिक वर्णचरम से कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम । इसी प्रकार (एक) वैमानिक पर्यन्त कहना । (अनेक) नैरयिक वर्णचरम से चरम भी हैं और अचरम भी । इसी प्रकार (अनेक) वैमानिक तक कहना। (एक) नैरयिक गंधचरम से कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम । (एक) वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार कहना । गन्धचरम से (अनेक) नैरयिक चरम भी हैं और अचरम भी । इसी प्रकार वैमानिक तक कहना। (एक) नैरयिक रसचरम से कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम । (एक) वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार कहना । (अनेक) नैरयिक रसचरम चरम भी हैं और अचरम भी । इसी प्रकार वैमानिक तक (कहना ।) (एक) नैरयिक स्पर्शचरम से कथंचित् चरम और कथंचित् अचरम । (एक) वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार कहना। (अनेक) नैरयिक स्पर्शचरम से चरम भी हैं और अचरम भी । इसी प्रकार अनेक वैमानिक तक कहना। सूत्र-३७४ गति, स्थिति, भव, भाषा, आनापान, आहार, भाव, वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से चरमादि जानना । पद-१०-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 81
SR No.034682
Book TitleAgam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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