________________
आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र है, कथंचित् एक चरम, अनेक चरमरूप और एक अवक्तव्य है, कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और एक अवक्तव्य है, कथंचित् अनेक चरमरूप एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, कथंचित् अनेक चरमरूप, अनेक अचरमरूप और एक अवक्तव्य है, कथंचित् अनेक चरमरूप, अनेक अचरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है।
भगवन् ! अष्टप्रदेशिक स्कन्ध ? गौतम ! १. कथंचित् चरम है, ३. कथंचित् अवक्तव्य है, ७. कथंचित् एक चरम और एक अचरम है, ८. कथंचित् एक चरम और अनेक अचरमरूप है, ९. कथंचित् अनेक चरमरूप और एक अचरम है, १०. कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अचरमरूप है, ११. कथंचित् चरम और अवक्तव्य है, १२. कथंचित् एक चरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, १३. कथंचित् अनेक चरमरूप और एक अवक्तव्यरूप है, १४. कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है, १९. कथंचित् चरम, अचरम और अवक्तव्यरूप है, २०. कथंचित् एक चरम, एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, २१. कथंचित् एक चरम, अनेक अचरमरूप और एक अवक्तव्य है, २२. कथंचित् एक चरम, अनेक अचरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है, २३. कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और एक अवक्तव्य है, २४. कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, २५. कथंचित् अनेक चरमरूप, अनेक अचरमरूप और एक अवक्तव्य है, और २६. कथंचित् अनेक चरमरूप, अनेक अचरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है। सूत्र-३६६
परमाणुपुद्गल में तृतीय भंग, द्विप्रदेशीस्कन्ध में प्रथम और तृतीय भंग, त्रिप्रदेशीस्कन्ध में प्रथम, तीसरा, नौवाँ और ग्यारहवाँ भंग होता है। सूत्र-३६७
चतुःप्रदेशीस्कन्ध में पहला, तीसरा, नौवाँ, दसवाँ, ग्यारहवाँ, बारहवाँ और तेईसवाँ भंग है। सूत्र-३६८
पंचप्रदेशीस्कन्ध में प्रथम, तृतीय, सप्तम, नवम, दशम, एकादश, द्वादश, त्रयोदश, तेईसवाँ, चौबीसवाँ और पच्चीसवाँ भंग जानना। सूत्र-३६९
षट्प्रदेशीस्कन्ध में द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, छठा, पन्द्रहवाँ, सोलहवाँ, सत्रहवाँ, अठारहवाँ, बीसवाँ, ईक्कीसवाँ और बाईसवाँ छोडकर, शेष भंग होते हैं। सूत्र-३७०
सप्तप्रदेशीस्कन्ध में दूसरे, चौथे, पाँचवे, छठे, पन्द्रहवे, सोलहवे, सत्रहवे, अठारहवे और बाईसवे भंग के सिवाय शेष भंग होते हैं। सूत्र-३७१
शेष सब स्कन्धों में दूसरा, चौथा, पाँचवां, छठा, पन्द्रहवाँ, सोलहवाँ, सत्रहवाँ, अठारहवाँ, इन भंगों को छोड़कर, शेष भंग होत हैं। सूत्र-३७२
भगवन् ! संस्थान कितने कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच - परिमण्डल, वृत्त, त्र्यस्र, चतुरस्र और आयत । भगवन् ! परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं ? गौतम ! अनन्त हैं । इसी प्रकार यावत् आयत तक समझना । भगवन् ! परिमण्डलसंस्थान संख्यातप्रदेशी है, असंख्यातप्रदेशी है अथवा अनन्तप्रदेशी है ? गौतम ! कदाचित् संख्यातप्रदेशी, कदाचित् असंख्यातप्रदेशी और कदाचित् अनन्तप्रदेशी है । इसी प्रकार आयत तक समझना
भगवन् ! संख्यातप्रदेशी परिमण्डलसंस्थान संख्यातप्रदेशों में, असंख्यात प्रदेशों में अथवा अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ होता है ? गौतम ! केवल संख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है । इसी प्रकार आयतसंस्थान तक समझना । भगवन ! असंख्यातप्रदेशी परिमण्डलसंस्थान संख्यात प्रदेशों में, असंख्यात प्रदेशों में अथवा अनन्त प्रदेशों में अवगाढ मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 79