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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश/सूत्र सूत्र-३६४
भगवन् ! परमाणुपुद्गल क्या चरम है ? अचरम है ? अवक्तव्य है ? अथवा अनेक चरमरूप है ?, अनेक अचरमरूप है ?, बहुत अवक्तव्यरूप है ? अथवा चरम और अचरम है ? या एक चरम और अनेक अचरमरूप है ? अथवा अनेक चरमरूप और एक अचरम है ? या अनेक चरमरूप और अनेक अचरमरूप है ? यह प्रथम चतुर्भंगी हुई। अथवा चरम और अवक्तव्य है ? अथवा एक चरम और बहुत अवक्तव्यरूप है ? या अनेक चरमरूप और एक अवक्तव्यरूप है ? अथवा अनेक चरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है ? यह द्वितीय चतुर्भंगी हुई । अथवा अचरम और अवक्तव्य है ? अथवा एक अचरम और बहुअवक्तव्यरूप है ? या अनेक अचरमरूप और एक अवक्तव्यरूप है? अथवा अनेक अचरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है ? यह तृतीय चतुर्भंगी हुई । अथवा (परमाणुपुद्गल) एक चरम, एक अचरम और एक अवक्तव्य है ? या एक चरम, एक अचरम और बहुत अवक्तव्यरूप हैं ? अथवा एक चरम, अनेक अचरमरूप और एक अवक्तव्यरूप है ? अथवा एक चरम, अनेक अचरमरूप और अनेक अवक्तव्य हैं ? अथवा अनेक चरमरूप, एक अचरम और एक अवक्तव्य है ? अथवा अनेक चरमरूप, एक अचरम और अनेक अवक्तव्य है ? या अनेक चरमरूप, अनेक अचरमरूप और एक अवक्तव्य है ? अथवा अनेक चरमरूप, अनेक अचरमरूप और अनेक अवक्तव्य हैं ? इस प्रकार ये छब्बीस भंग हैं । हे गौतम ! परमाणुपुद्गल नियम से अवक्तव्य है सूत्र-३६५
भगवन ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध के विषय में प्रश्न-गौतम ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध कथंचित चरम और कथंचित अवक्तव्य है।
भगवन् ! त्रिप्रदेशिक स्कन्ध ? गौतम ! कथंचित् चरम है, कथंचित अवक्तव्य है, कथंचित अनेक चरमरूप और एक अचरम है और कथंचित् एक चरम और एक अवक्तव्य है।
भगवन् ! चतुष्पदेशिक स्कन्ध ? गौतम ! कथंचित् चरम है, कथंचित अवक्तव्य है । कथंचित् अनेक चरम रूप और एक अचरम है, कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अचरमरूप है, कथंचित् एक चरम और एक अवक्तव्य है, कथंचित् एक चरम और अनेक अवक्तव्यरूप है और कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और एक अवक्तव्य है।
भगवन् ! पंचप्रदेशिक स्कन्ध ? गौतम ! कथंचित् चरम है, कथंचित अवक्तव्य है, कथंचित् चरम और अचरम है, कथंचित् अनेक चरमरूप और एक अचरम है, कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अचरमरूप है, कथंचित् एक चरम और एक अवक्तव्य है, कथंचित् एक चरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, (तथा) कथंचित् अनेक चरमरूप और एक अवक्तव्य है, कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और एक अवक्तव्य है, कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप है तथा कथंचित् अनेक चरमरूप, अनेक अचरमरूप और एक अवक्तव्य है।।
भगवन् ! षट्प्रदेशिक स्कन्ध ? गौतम ! कथंचित् चरम है, कथंचित् अवक्तव्य है, कथंचित् चरम और अचरम है, कथंचित् एक चरम और अनेक अचरमरूप है, कथंचित् अनेक चरम और एक अचरम है, कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अचरमरूप है, कथंचित् एक चरम और अवक्तव्य है, कथंचित् एक चरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, कथंचित् अनेक चरमरूप और एक अवक्तव्य है, कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है, कथंचित् एक चरम, एक अचरम और एक अवक्तव्य है, कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और एक अवक्तव्य है, कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, कथंचित् अनेक चरमरूप, अनेक अचरमरूप और एक अवक्तव्य है और कथंचित् अनेक चरमरूप, अनेक अचरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है।
भगवन् ! सप्तप्रदेशिक स्कन्ध ? गौतम ! कथंचित् चरम है, कथंचित् अवक्तव्य है, कथंचित् चरम और अचरम है, कथंचित् एक चरम और अनेक अचरमरूप है, कथंचित् अनेक चरमरूप और एक अचरम है, कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अचरमरूप है, कथंचित् एक चरम और एक अवक्तव्य है, कथंचित् एक चरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, कथंचित् अनेक चरमरूप और एक अवक्तव्य है, कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है, कथंचित् एक चरम, एक अचरम और एक अवक्तव्य है, कथंचित् एक चरम, एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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