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________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र अन्तर्मुहूर्त कम बारह वर्ष है । त्रीन्द्रिय की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट उनचास रात्रि दिन है । अपर्याप्त त्रीन्द्रिय की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्तक त्रीन्द्रिय की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम उनचार रात्रि-दिन है । चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट स्थिति छह मास है। अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्त चतुरिन्द्रिय की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम छह मास है। सूत्र-३०२ भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम है । इनके अपर्याप्त की जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त है । इनके पर्याप्त की जघन्य अन्त-र्मुहर्त्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम है । सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि है । इनके अपर्याप्त की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । इनके पर्याप्त की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटि। गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति औषिक पंचेन्द्रियतिर्यंच के समान जानना । जलचर पंचे-न्द्रय तिर्यंचयोनिक के समान जानना । सम्मूर्छिम तथा गर्भज ये दोनों जलचर पंचेन्द्रिय की औधिक अपर्याप्त और पर्याप्त की स्थिति सम्मूर्छिम पंचेन्द्रियतिर्यंच योनिक जीवों के समान जानना । चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक की स्थिति संबंधि प्रश्न-इनकी औधिक-अपर्याप्तक-पर्याप्तक ये तीनों की स्थिति औधिक पंचेन्द्रिय तिर्यंच के समान जानना । सम्मर्छिम चतष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्महर्त्त एवं उत्कष्ट चौरासी हजार वर्ष है। इनके अपर्याप्त की जघन्य स्थिति और उत्कष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त है । इनके पर्याप्त की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त कम चौरासी हजार वर्ष है। - गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक की स्थिति औधिक तिर्यंच पंचेन्द्रिय के समान जानना। भगवन ! उर:परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की है । इनके अपर्याप्त जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त है । इनके पर्याप्त जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटि है । सामान्य सम्मूर्छिम उर:परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट तिरेपन हजार वर्ष है । इनके अपर्याप्तक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अन्त-मुहूर्त है । इनके पर्याप्तक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त कम तिरेपन हजार वर्ष की है। गर्भज उरःपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों के समान जानना । भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति भी सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय-तिर्यंच योनिक जीवों के समान जानना । सम्मूर्छिम भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट स्थिति बयालीस हजार वर्ष की है । इनके अपर्याप्तक जीवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है । इनके पर्याप्तक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बयालीस हजार वर्ष की है। गर्भज भजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति सम्मर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों के समान जानना। भगवन् ! खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहर्त की है, उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्येयभाग की है। इनके अपर्याप्त जीवों की स्थिति और उत्कृष्ट भी अन्त-र्मुहर्त्त की है । इनके पर्याप्त जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के असंख्यातवें भाग की है। भगवन् ! सम्मूर्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट बहत्तर हजार वर्ष की है । इनके अपर्याप्त जीवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 51
SR No.034682
Book TitleAgam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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