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________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र नागकुमार देवों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपमों की है । अपर्याप्त नागकुमारों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्त नागकुमारों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम देशोन दो पल्योपम है । नागकुमार देवियों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट देशोन पल्योपम है । अपर्याप्त नागकुमार देवियों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्त नागकुमारदेवियों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट देशोन पल्योपम में अन्त-मुहूर्त कम है। -सूपर्णकुमार से स्तनितकुमार के देव-देवी के विषय में नागकुमार के समान ही समस्त प्रश्नोत्तर समझना । सूत्र - ३०० भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों की कितने काल तक की स्थिति है ? जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष । अपर्याप्त पृथ्वीकायिक की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्त पृथ्वीकायिक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बाईस हजार वर्ष है । सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । इसी तरह सूक्ष्म पृथ्वीकायिक अपर्याप्तक और पर्याप्तक की स्थिति भी समझना । बादर पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष है । बादर पृथ्वी-कायिक अपर्याप्तक की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्तक बादर पृथ्वीकायिक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बाईस हजार वर्ष की है। भगवन ! अप्कायिक जीवों की कितने काल तक की स्थिति कही गई है? गौतम ! जघन्य अन्तर्महर्त्त और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष है । अपर्याप्त अप्कायिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्तक अप्कायिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्महर्त्त तथा उत्कष्ट अन्तर्महर्त कम सात हजार वर्ष है । सक्षम अप्कायिकों के औधिक, अपर्याप्तकों और पर्याप्तकों की स्थिति सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के समान जानना । बादर अप्कायिक जीवों की स्थिति सामान्य अप्कायिक समान ही जानना । केवल पर्याप्तकों की उत्कृष्ट स्थिति में अन्तर्मुहूर्त कम समझना। भगवन् ! तेजस्कायिक की स्थिति ? जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन रात्रि-दिन हैं । तेजस्कायिक अपर्याप्तकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्त तेजस्कायिक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त कम तीन रात्रि-दिन की है । सूक्ष्म तेजस्कायिकों के औधिक, अपर्याप्त और पर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहुर्त है । बादर तेजस्कायिक की स्थिति सामान्य तेजस्कायिक समान है । विशेष यह कि उत्कृष्ट पर्याप्तक में अन्तर्महर्त कम करना । वायुकायिक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन हजार वर्ष है । अपर्याप्तक वायुकायिक जीवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्तक वायुकायिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन हजार वर्ष है । सूक्ष्म वायुकायिक की औधिक, अपर्याप्तक और पर्याप्तक तीनों स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है । बादर वायुकायिक को सामान्य वायुकायिक के समान जानना । विशेष यह कि पर्याप्तकों की उत्कृष्ट स्थिति में अन्तर्मुहर्त कम करना। वनस्पतिकायिककी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट १०००० वर्ष है । अपर्याप्त वनस्पतिकायिक की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? गौतम ! उनकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है । पर्याप्तक वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष है। सूक्ष्म वनस्पतिकायिकों के औघिक, अपर्याप्तकों और पर्याप्तकों की स्थिति जघन्यतः और उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त है । बादर वनस्पतिकायिक को औधिक की तरह ही जानना । विशेष यह कि उन के पर्याप्तकमें अन्तर्मुहूर्त कम करना । सूत्र-३०१ भगवन् ! द्वीन्द्रिय की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बारह वर्ष । अपर्याप्त द्वीन्द्रिय स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्त द्वीन्द्रिय की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 50
SR No.034682
Book TitleAgam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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