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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र
सूत्र-२८८
क्षेत्रानुसार सब से थोड़े भवनवासी देव ऊर्ध्वलोकमें हैं, ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोकमें असंख्यातगुणे हैं, त्रैलोक्य में संख्यातगुणे हैं, अधोलोक-तिर्यक्लोकमें असंख्यातगुणे हैं, तिर्यक्लोकमें असंख्यातगुणे हैं, (उन से भी) अधोलोक में असंख्यातगुणे हैं । भवनवासिनी देवी के सम्बन्ध में यही समझना । क्षेत्रानुसार सबसे अल्प वाणव्यन्तर देव ऊर्ध्वलोक में हैं, ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोकमें असंख्यातगुणे हैं, त्रैलोक्य में संख्यातगुणे हैं, अधोलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, अधोलोक में संख्यातगुणे, (उनसे) तिर्यक्लोक में संख्यातगुणे हैं । वाणव्यन्तर देवी के विषय में भी यहीं समझना ।
क्षेत्र के अनुसार सबसे कम ज्योतिष्क देव ऊर्ध्वलोक में हैं, ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, त्रैलोक्य में संख्यातगुणे हैं, अधोलोक-तिर्यकलोक में असंख्यातगुणे हैं, अधोलोक में संख्यातगुणे हैं, (उनसे भी) तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं । ज्योतिष्कदेवी के सम्बन्ध में भी यहीं समझ लेना । क्षेत्र के अनुसार सबसे कम वैमानिक देव ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में हैं, त्रैलोक्य में संख्यातगुणे हैं, अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यातगुणे हैं, अधोलोक में संख्यातगुणे हैं, तिर्यक्लोक में संख्यातगुणे हैं, (उनसे भी) ऊर्ध्वलोक में असंख्यातगुणे हैं । वैमानिक देवी के सम्बन्ध में भी यहीं समझना ।
सूत्र - २८९
क्षेत्र के अनुसार सबसे थोड़े एकेन्द्रिय जीव ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में हैं, अधोलोक-तिर्यक्लोक में विशेषाधिक हैं, तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, त्रैलोक्य में असंख्यातगुणे हैं, ऊर्ध्वलोक में असंख्यातगुणे हैं (उनसे भी) अधोलोक में विशेषाधिक हैं। - एकेन्द्रिय अपर्याप्तक और पर्याप्तक के सम्बन्ध में भी इसी तरह समझ लेना। सूत्र - २९०
क्षेत्र की अपेक्षा सब से कम द्वीन्द्रिय जीव ऊर्ध्वलोक में हैं, (उन से) ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यात-गुणे हैं, (उन से) त्रैलोक्यमें असंख्यातगुणे हैं, (उन से) अधोलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, (उन से) अधोलोकमें संख्यातगुणे हैं, (और उनसे) तिर्यक्लोक में संख्यातगुणे हैं । द्वीन्द्रिय अपर्याप्तक और पर्याप्तक के सम्बन्धमें भी यही समझना । त्रीइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय जीवों तथा उन के अपर्याप्तक-पर्याप्तक के सम्बन्ध में भी यहीं अल्पबहुत्व जानना। सूत्र-२९१
क्षेत्र अपेक्षा से सबसे अल्प पंचेन्द्रिय त्रैलोक्य में हैं, (उनसे) ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में संख्यातगुणे हैं, (उनसे) अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यातगुणे हैं, (उनसे) ऊर्ध्वलोक में संख्यातगुणे हैं, (उनसे) अधोलोक में संख्यातगुणे हैं और उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं । -पंचेन्द्रिय के अपर्याप्तक और पर्याप्तक के सम्बन्ध में यहीं समझ लेना । सूत्र - २९२
क्षेत्र के अनुसार सबसे थोड़े पृथ्वीकायिक जीव ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में हैं, अधोलोक-तिर्यक्लोक में विशेषाधिक हैं, (उनसे) तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) त्रैलोक्य में असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) ऊर्ध्वलोक में असंख्यातगुणे हैं, और (उनसे) अधोलोक में विशेषाधिक हैं | - ऐसा ही अपर्याप्तक और पर्याप्तक के विषय में जानना । अप्कायिक से वनस्पतिकायिक के सम्बन्ध में भी इसी तरह समझ लेना। सूत्र-२९३
क्षेत्र अपेक्षा से सब से थोड़े त्रसकायिक जीव त्रैलोक्यमें हैं, ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोकमें संख्यातगुणे हैं, उन से संख्यातगुणे अधोलोक-तिर्यक्लोकमें हैं, ऊर्ध्वलोकमें (उनसे) संख्यातगुणे हैं, अधोलोक में उनसे संख्यात-गुणे हैं, और (उनसे) तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं । इसी तरह त्रसकायिक अपर्याप्तक और पर्याप्तकों के सम्बन्ध में समझना । सूत्र - २९४
भगवन् ! इन आयुष्यकर्म के बन्धकों और अबन्धकों, पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों, सुप्त और जागृत जीवों, समुद्घात करने वालों और न करने वालों, सातावेदकों और असातावेदकों, इन्द्रियोपयुक्तों और नो-इन्द्रियो-पयुक्तों, साकारोपयोग में उपयुक्तों और अनाकारोपयोग में उपयुक्त जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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