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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र गौतम ! धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय, ये दोनों प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य हैं और सबसे थोड़े हैं, जीवास्तिकाय प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुण हैं, पुद्गलास्तिकाय प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुण हैं, अद्धा-समय प्रदेशापेक्षया अनन्तगुण हैं; इससे आकाशास्तिकाय प्रदेशों की दृष्टि से अनन्तगुण हैं।
धर्मास्तिकाय सबसे अल्प द्रव्य की अपेक्षा से एक धर्मास्तिकाय (द्रव्य) हैं और वही प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणा हैं । इसी तरह अधर्मास्तिकाय से लेकर पुद्गलास्तिकाय के विषय में भी समझ लेना । काल (अद्धासमय) के सम्बन्ध में प्रश्न नहीं पूछा जाता, क्योंकि उसमें प्रदेशों का अभाव है।
भगवन् ! धर्मास्तिकाय, आदि द्रव्यों में द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन-किससे बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं? गौतम ! धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय, ये तीन तल्य हैं तथ से सबसे अल्प हैं, धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय ये दोनों प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य हैं तथा असंख्यात-गुणे हैं, जीवास्तिकाय, द्रव्य की अपेक्षा अनन्तगुण हैं, वह प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणा हैं, पुदगलास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा से अनन्तगुणा हैं, पुद्गलास्तिकाय प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुण हैं । अद्धा-समय द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणा हैं, इससे भी आकाशास्तिकाय प्रदेशों की अपेक्षा अनन्तगुणा हैं। सूत्र-२८४
भगवन् ! इन चरम और अचरम जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम! अचरम जीव सबसे थोडे हैं. (उनसे) चरम जीव अनन्तगुणे हैं। सूत्र- २८५
भगवन् ! इन जीवों, पुद्गलों, अद्धा-समयों, सर्वद्रव्यों, सर्वप्रदेशों और सर्वपर्यायों में प्रश्न-गौतम ! सबसे अल्प जीव हैं, पुद्गल अनन्तगुण हैं, अद्धा-समय अनन्तगुणे हैं, सर्वद्रव्य विशेषाधिक हैं, सर्वप्रदेश अनन्तगुणे हैं, सर्वपर्याय अनन्तगुणे हैं। सूत्र-२८६
क्षेत्र की अपेक्षा से सबसे कम जीव ऊर्ध्वलोक-तिर्यग्लोक में हैं, अधोलोक-तिर्यग्लोक में विशेषाधिक हैं, तिर्यग्लोक में असंख्यातगुणे हैं, त्रैलोक्य में असंख्यातगुणे हैं, ऊर्ध्वलोक में असंख्येयगुणे हैं, उनसे भी अधोलोक में विशेषाधिक हैं। सूत्र-२८७
क्षेत्र की अपेक्षा से सबसे थोड़े नैरयिकजीव त्रैलोक्य में हैं, अधोलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, उनसे भी अधोलोक में असंख्यातगुणे हैं । क्षेत्र की अपेक्षा से सबसे अल्प तिर्यंचयोनिक ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में हैं, विशेषाधिक अधोलोक-तिर्यक्लोक में हैं, तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, त्रैलोक्य में असंख्यातगुणे हैं, ऊर्ध्वलोक में असंख्यातगुणे हैं, उनसे भी अधोलोक में विशेषाधिक हैं । क्षेत्र के अनुसार सबसे कम तिर्यचिनी ऊर्ध्वलोक में हैं, ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, त्रैलोक्य में संख्यातगुणे हैं, अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यातगुणी हैं, अधोलोक में संख्यातगुणी हैं, उनसे भी तिर्यक्लोक में संख्यातगुणी हैं।
क्षेत्र के अनुसार सबसे थोड़े मनुष्य त्रैलोक्य में हैं, ऊर्ध्वलोक तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, अधोलोकतिर्यक्लोक में संख्यातगुणे हैं, ऊर्ध्वलोक में संख्यातगुणे हैं, अधोलोक में संख्यातगुणे हैं, उनसे भी तिर्यक्लोक में संख्यातगुणे हैं । क्षेत्र के अनुसार सबसे थोड़ी मनुष्यस्त्रियाँ त्रैलोक्य में हैं, ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में संख्यातगुणी हैं, अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यातगुणी हैं, ऊर्ध्वलोक में संख्यातगुणी हैं, अधोलोक में संख्यातगुणी हैं, उनसे भी तिर्यक्लोक में संख्यातगुणी हैं । क्षेत्र के अनुसार सबसे थोड़े देव ऊर्ध्वलोक में हैं, असंख्यातगुणे ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में हैं, त्रैलोक्य में संख्यातगुणे हैं, अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यातगुणे हैं, अधोलोक में संख्यातगुणे हैं, उनसे भी तिर्यक्लोक में संख्यातगुणे हैं । इसी तरह देवीओं के सम्बन्ध में भी समझ लेना ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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