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________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र अनन्त वर्गों से वर्गित किया जाए तो भी वह मुक्ति-सुख को नहीं पा सकता। सूत्र-२५० एक सिद्ध के (प्रतिसमय के) सुखों की राशि, यदि सर्वकाल से पिण्डित की जाए, और उसे अनन्तवर्गमूलों से भाग दिया जाए, तो वह सुख भी सम्पूर्ण आकाश में नहीं समाएगा। सूत्र-२५१,२५२ __ जैसे कोई म्लेच्छ अनेक प्रकार के नगर-गुणों को जानता हुआ भी उसके सामने कोई उपमा न होने से कहने में समर्थ नहीं होता। इसी प्रकार सिद्धों का सुख अनुपम है । फिर भी कुछ विशेष रूप से इसकी उपमा बताऊंगा, इसे सूनो । सूत्र-२५३ जैसे कोई पुरुष सर्वकामगुणित भोजन का उपभोग करके प्यास और भूख से विमुक्त होकर ऐसा हो जाता है, जैसे कोई अमृत से तृप्त हो। सूत्र - २५४ वैसे ही सर्वकाल में तृप्त अतुल, शाश्वत, एवं अव्याबाध निर्वाण-सुख को प्राप्त सिद्ध भगवान् सुखी रहते हैं। सूत्र-२५५ वे मुक्त जीव सिद्ध हैं, बुद्ध हैं, पारगत हैं, परम्परागत हैं, कर्मरूपी कवच से उन्मुक्त हैं, अजर, अमर और असंग हैं । उन्होंने सर्वःदुःखों को पार कर दिया है। सूत्र - २५६ वे जन्म, जरा, मरण के बन्धन से सर्वथा मुक्त, सिद्ध (होकर) अव्याबाध एवं शाश्वत सुख का अनुभव करते हैं पद-२-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 36
SR No.034682
Book TitleAgam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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