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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश/सूत्र मोटाईवाली रत्नप्रभापृथ्वी के मध्य में १७८००० योजन में, रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावास हैं । वे नरक अन्दर से गोल, बाहर से चौकोर यावत् अशुभ नरक हैं । नरकों में अशुभ वेदनाएं हैं । इनमें रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के स्थान हैं । इत्यादि सामान्य नारकों के समान समझना।
भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी के पर्याप्त और अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! १,३२,००० योजन मोटी शर्कराप्रभा पृथ्वी के मध्य में १,३०,००० योजन में, शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के पच्चीस लाख नारकावास हैं। यावत् सब वर्णन सामान्य नारकों के समान जानना | भगवन् ! वालुकाप्रभापृथ्वी के पर्याप्त और अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! १,२८,००० योजन मोटी वालुकाप्रभापृथ्वी के बीच में १,२६,००० योजन प्रदेश में, वालुकाप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के पन्द्रह लाख नारकावास हैं । यावत् समस्त वर्णन सामान्य नारकों के समान समझना । भगवन ! पंकप्रभापथ्वी के पर्याप्त एवं अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! १,२०,००० योजन मोटी पंकप्रभापथ्वी के बीच के १,१८,००० योजन प्रदेश में, पंकप्रभापथ्वी के नैरयिकों के दस लाख नारकावास हैं। यावत् समस्त वर्णन पूर्ववत् जानना । भगवन् ! धूमप्रभापृथ्वी के पर्याप्त और अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! १,१८,००० योजन मोटी धूमप्रभापृथ्वी के बीच के १,१६,००० योजन प्रदेश में, धूमप्रभापृथ्वी के नारकों के तीन लाख नारकावास हैं । यावत् समस्त नि पूर्ववत् । भगवन् ! तमःप्रभापृथ्वी के पर्याप्त और अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! १,१६,००० योजन मोटी तमःप्रभापृथ्वी के मध्य में १,१४,००० योजन में, वहाँ तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के पाँच कम एक लाख नारकावास हैं । यावत् समस्त वर्णन पूर्ववत् । भगवन् ! तमस्तमापृथ्वी के पर्याप्त और अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! १,०८,००० योजन मोटी तमस्तमापृथ्वी के ऊपर के साढ़े बावन तथा नीचे के भी साढ़े बावन हजार योजन को छोड़कर बीच के तीन हजार योजन में, तमस्तमापृथ्वी के पर्याप्त और अपर्याप्त नारकों के पाँच दिशाओं में पाँच अनुत्तर, अत्यन्त विस्तृत महान् महानिरय हैं। काल, महाकाल, रौरव, महारौरव और अप्रतिष्ठान । यावत् समस्त वर्णन पूर्ववत् । सूत्र-१९७
(नरकपृथ्वीयों की क्रमशः मोटाई एक लाख से ऊपर की संख्या में)-अस्सी, बत्तीस, अट्राईस, बीस, अठारह, सोलह और आठ हजार योजन' है। सूत्र - १९८
(नारकावासों का भूमिभाग-) छठी नरक तक; एक लाख से ऊपर-अठहत्तर, तीस, छब्बीस, अठारह और छठी नरकपृथ्वी में-चौदह हजार योजन हैं। सूत्र - १९९
सातवीं तमस्तमा नरकपृथ्वी में ऊपर और नीचे साढ़े बावन-साढ़े बावन हजार छोड़कर मध्य में तीन हजार योजनों में नारकावास होते हैं। सूत्र - २००
(नारकावासों की संख्या) (छठी नरक तक लाख की संख्या में) तीस, पच्चीस, पन्द्रह, दस, तीन तथा पाँच कम एक और सातवीं नरकपृथ्वी में केवल पाँच ही अनुत्तर नरक हैं। सूत्र-२०१
भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त पंचेन्द्रियतिर्यंचों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! ऊर्ध्वलोक और अधोलोक में उसके एकदेशभाग में, तिर्यग्लोक में कूओं में, तालाबों में, नदियों में, वापियों में, द्रहों में, पुष्करिणियों में, दीर्घिकाओं में, गुंजालिकाओं में, सरोवरों में, पंक्तिबद्ध सरोवरों में, सर-सर-पंक्तियों में, बिलों में, पंक्तिबद्ध बिलों में, पर्वतीय जलस्रोतो में, झरनों में, छोटे गड्ढों में, पोखरों में, क्यारियों अथवा खेतों में, द्वीपों में, समुद्रों में तथा सभी जलाशयों एवं जल के स्थानों में; उपपात, समुदघात और स्वस्थान की अपेक्षा से वे लोक के असंख्यातवें भाग में हैं
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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