________________
आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र पद-२८-आहारपद
उद्देशक-१ सूत्र-५५०,५५१
इस उद्देशक में इन ग्यारह पदों हैं-सचित्ताहार, आहारार्थी, कितने काल से ?, क्या आहार ? सब प्रदेशों से, कितना भाग? सभी आहार (करते हैं ?) (सतैव) परिणत करते हैं ? तथा-एकेन्द्रियशरीरादि, लोमाहार एवं मनोभक्षी। सूत्र-५५२
भगवन् ! क्या नैरयिक सचित्ताहारी होते हैं, अचित्ताहारी होते हैं या मिश्राहारी ? गौतम ! वे केवल अचित्ताहारी होते हैं। इसी प्रकार असुरकुमारों से वैमानिकों पर्यन्त जानना । औदारिकशरीरी यावत् मनुष्य सचित्ताहारी भी हैं, अचित्ताहारी भी हैं और मिश्राहारी भी हैं । भगवन ! क्या नैरयिक आहारार्थी होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं। भगवन् ! नैरयिकों को कितने काल के पश्चात् आहार की ईच्छा होती है ? गौतम ! नैरयिकों का आहार दो प्रकार का है। आभोगनिर्वर्तित और अनाभोगनिर्वर्तित । जो अनाभोगनिर्वर्तित है, उसकी अभिलाषा प्रति समय निरन्तर उत्पन्न होती रहती है, जो आभोगनिर्वर्तित है, उसकी अभिलाषा असंख्यातसमय के अन्तर्मुहूर्त में उत्पन्न होती है।
भगवन् ! नैरयिक कौन-सा आहार ग्रहण करते हैं ? गौतम ! द्रव्यतः-अनन्तप्रदेशी पुद्गलों का आहार ग्रहण करते हैं, क्षेत्रतः-असंख्यातप्रदेशों में अवगाढ़, कालतः-किसी भी कालस्थिति वाले और भावतः-वर्णवान्, गन्धवान्, रसवान और स्पर्शवान् पुद्गलों का आहार करते हैं । भगवन् ! भाव से जिन पुद्गलों का आहार करत हैं, क्या वे एक वर्ण वाले यावत् क्या वे पंच वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं ? गौतम ! वे स्थानमार्गणा से एक वर्ण वाले यावत् पाँच वर्ण वाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं तथा विधान मार्गणा से काले यावत् शुक्ल वर्णवाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं । भगवन् ! वे वर्ण से जिन काले वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं, क्या वे एक गुण यावत् दस गुण काले, संख्यातगुण काले, असंख्यातगुण काले या अनन्तगुण काले वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं ? गौतम! वे एक गुण यावत् अनन्तगुण काले पुद्गलों का भी आहार करते हैं । इसी प्रकार यावत् शुक्लवर्ण में जानना । इसी प्रकार गन्ध और रस की अपेक्षा से भी कहना । जो जीव भाव से स्पर्शवाले पुद्गलों का आहार करते हैं, वे चतुःस्पर्शी यावत् अष्टस्पर्शी पुद्गलों का आहार करते हैं । विधान मार्गणा से कर्कश यावत् रूक्ष पुदगलों का भी आहार करते हैं । वे जिन कर्कशस्पर्शवाले पुद्गलों का आहार करते हैं, क्या वे एकगुण यावत् अनन्तगुण कर्कशपुद् गलों का आहार करते हैं ? गौतम ! ऐसा ही है । इसी प्रकार आठों ही स्पर्शों के विषय में जानना ।
भगवन् ! वे जिन अनन्तगुण रूक्षपुद्गलों का आहार करते हैं, क्या वे स्पृष्ट पुद्गलों का आहार करते हैं या अस्पृष्ट पुद्गलों का ? गौतम ! वे स्पृष्ट पुद्गलों का ही आहार करते हैं । भाषा-उद्देशक के समान यावत् नियम से छहों दिशाओं में से आहार करते हैं । बहुल कारण की अपेक्षा से जो वर्ण से काले-नीले, गन्ध से दुर्गन्धवाले, रस से तिक्त
और कटुक रसवाले और स्पर्श से कर्कश, गुरु, शीत और रूक्ष स्पर्श हैं, उनके पुराने वर्णगुण, गन्धगुण, रसगुण और स्पर्शगुण का विपरिणन कर, परिपीडन परिशाटन और परिविध्वस्त करके अन्य अपूर्व वर्णगुण, गन्ध गुण, रसगुण और स्पर्शगुण को उत्पन्न करके अपने शरीरक्षेत्र में अवगाहना किये हुए पुद्गलों का पूर्णरूपेण आहार करते हैं।
भगवन् ! क्या नैरयिक सर्वतः आहार करते हैं ? पूर्णरूप से परिणत करते हैं ? सर्वतः उच्छवास तथा सर्वतः निःश्वास लेते हैं ? बार-बार आहार करते हैं ? बार-बार परिणत करते हैं ? बार-बार उच्छवास एवं निःश्वास लेते हैं ? अथवा कभी-कभी आहार करते हैं ? यावत् उच्छ्वास एवं निःश्वास लेते हैं? हाँ, गौतम ! नैरयिक सर्वतः आहार करते हैं, इसी प्रकार वही पूर्वोक्तवत् यावत् कभी-कभी निःश्वास लेते हैं । नैरयिक जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं, उन पुद्गलों का आगामी काल में असंख्यातवें भाग का आहार करते हैं और अनन्तवें भाग का आस्वादन करते हैं । भगवन् ! नैरयिक जिन पुद्गलों क आहार के रूप में ग्रहण करते हैं, क्या उन सबका आहार कर लेते हैं अथवा सबका नहीं करते ? गौतम ! शेष बचाये बिना उन सबका आहार कर लेते हैं । भगवन् ! नैरयिक जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं, वे उन पुद्गलों को बार-बार किस रूप में परिणत करते हैं ? गौतम ! उन पुद्गलों मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 156