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________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश/सूत्र क्रिया होती है, क्या उस के आरम्भिकीक्रिया होती है ? गौतम ! जिस जीव के आरम्भिकीक्रिया होती है, उस के पारिग्रहिकी क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं, जिसके पारिग्रहिकी क्रिया होती है, उस के आरम्भिकी क्रिया नियम से होती है । जिस जीव को आरम्भिकीक्रिया होती है, उसको मायाप्रत्ययाक्रिया तथा जिसके माया-प्रत्ययाक्रिया होती है उसके आरम्भिकीक्रिया होती है ? गौतम ! जिस जीव के आरम्भिकीक्रिया होती है, उसको नियम से मायाप्रत्ययाक्रिया होती है, जिसको मायाप्रत्ययाक्रिया होती है, उसके आरम्भिकीक्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं। जिस जीव को आरम्भिकीक्रिया होती है, उसको अप्रत्याख्यानक्रिया तथा जिसको अप्रत्याख्यानकीक्रिया होती है, उसको आरम्भिकीक्रिया होती है ? गौतम ! जिस जीव को आरम्भिकीक्रिया होती है, उसको अप्रत्याख्यानिकीक्रिया कदाचित होती है, कदाचित नहीं: जिस जीव को अप्रत्याख्यानिकीक्रिया होती है, उस नियम से होती है। इसी प्रकार मिथ्यादर्शनप्रत्यया भी जानना । इसी प्रकार पारिग्रहिकी का आगे की तीन क्रियाओं के साथ सहभाव समझ लेना । जिसके मायाप्रत्ययाक्रिया होती है, उसके आगे की दो क्रियाएं कदाचित होती है, कदाचित नहीं, जिसके आगे की दो क्रियाएं होती हैं, उसके मायाप्रत्ययाक्रिया नियम से होती है। जिसको अप्रत्याख्यानक्रिया होती है, उसको मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया कदाचित होती है, कदाचित नहीं, जिसको मिथ्या-दर्शनप्रत्ययाक्रिया होती है, उसके अप्रत्याख्यानक्रिया नियम से होती है। नारक को प्रारम्भ की चार क्रियाएं नियम से होती है । जिसके ये चार क्रियाएं होती हैं, उसको मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया भजना से होती है, जिसके मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया होती है, उसको ये चारों क्रियाएं नियम से होती हैं। इसी प्रकार स्तनितकुमार तक में भी समझना । पृथ्वीकायिक से चतुरिन्द्रिय तक पाँचों ही क्रियाएं परस्पर नियम से होती हैं । पंचेन्द्रिय-तिर्यंचयोनिक को प्रारम्भ की तीन क्रियाएं परस्पर नियम से होती हैं । जिसको ये तीनों होती हैं, उसको आगे की दो विकल्प से होती हैं । जिसको, आगे की दोनों क्रियाएं होती हैं, उसको ये तीनों नियम से होती हैं। जिसको अप्रत्याख्यानक्रिया होती है, उसको मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया विकल्प से होती है, जिसमो मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया होती है, उसको अप्रत्याख्यानक्रिया अवश्यमेव होती है । मनुष्य में भी सामान्य जीव के समान समझना । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव में नैरयिक के समान समझना । जिस समय जीव के आर-म्भिकीक्रिया होती है, उस समय पारिग्रहिकीक्रिया होती है ? क्रियाओं के परस्पर सहभाव के इस प्रकार-जिस जीव के, जिस समय में, जिस देश में और जिस प्रदेश में यों चार दण्डकों के आलापक कहना । नैरयिकों के समान वैमानिकों तक समस्त देवों के विषय में कहना। सूत्र-५३१ भगवन् ! क्या जीवों का प्राणातिपात से विरमण होता है ? हाँ, होता है । किस (विषय) में प्राणातिपातविरमण होता है ? गौतम ! षड् जीवनिकायों में होता है । भगवन् ! क्या नैरयिकों का प्राणातिपात से विरमण होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना । विशेष यह कि मनुष्यों का प्राणातिपातविरमण (सामान्य) जीवों के समान कहना । जीवों का मिथ्यादर्शनशल्य से विरमण होता है ? हाँ, होता है । मिथ्यादर्शनशल्य से विरमण गौतम ! सर्वद्रव्यों में होता है । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक मिथ्यादर्शनशल्य से विरमण का कथन करना । विशेष यह कि एकेन्द्रियों और विकलेन्द्रियों में यह नहीं होता। सूत्र-५३२ भगवन् ! प्राणातिपात से विरत (एक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है ? गौतम ! सप्तविध, अष्टविध, षड्विध अथवा एकविधबन्धक या अबन्धक होता है । इसी प्रकार मनुष्य में भी कहना । भगवन् ! प्राणातिपात से विरत (अनेक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधते हैं ? गौतम ! (१) समस्त जीव सप्तविध और एकविधबन्धक होते हैं । अथवा (१) अनेक सप्तविध-बन्धक अनेक एकविधबन्धक होते हैं और एक अष्टविध-बन्धक, (२) अनेक सप्तविधबन्धक, अनेक एकविधबन्धक और अनेक अष्टविधबन्धक, (३) अथवा अनेक सप्त-विधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं और एक षड्विधबन्धक, (४) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविध-बन्धक तथा षड् मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 140
SR No.034682
Book TitleAgam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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