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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र पद-२२-क्रिया सूत्र-५२५
भगवन ! क्रियाएं कितनी हैं ? गौतम ! पाँच-कायिकी, आधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपातक्रिया । कायिकीक्रिया ? गौतम ! दो प्रकार की । अनुपरतकायिकी और दुष्प्रयुक्तकायिकी । आधिकरणीकीक्रिया ? गौतम ! दो प्रकार की है, संयोजनाधिकरणिकी और निर्वर्तनाधिकरणिकी । प्राद्वेषिकीक्रिया ? गौतम! तीन प्रकार की है, स्व का, पर का अथवा दोनों का मन अशुभ किया जाता है । पारितापनिकीक्रिया ? गौतम ! तीन प्रकार की है, जिस प्रकार से स्व के लिए, पर के लिए या स्व-पर दोनों के लिए असाता वेदना उत्पन्न की जाती है । प्राणातिपातिक्रिया ? गौतम ! तीन प्रकार की है, जिससे स्वयं को, दूसरे को, अथवा स्व-पर दोनों को जीवन से रहित कर दिया जाता है। सूत्र-५२६
भगवन् ! जीव सक्रिय होते हैं, अथवा अक्रिय ? गौतम ! दोनों । क्योंकि-गौतम ! जीव दो प्रकार के हैं, संसारसमापन्नक और असंसारसमापन्नक | जो असंसारसमापन्नक हैं, वे सिद्ध जीव हैं । सिद्ध अक्रिय हैं और जो संसारसमापन्नक हैं, वे दो प्रकार के हैं-शैलेशीप्रतिपन्नक और अशैलेशीप्रतिपन्नक । जो शैलेशी-प्रतिपन्नक होते हैं, वे अक्रिय हैं और जो अशैलेशी-प्रतिपन्नक हैं, वे सक्रिय होते हैं । क्या जीवों को प्राणातिपात से प्राणातिपातक्रिया लगती है ? हाँ, गौतम ! लगती है । गौतम ! छह जीवनिकायों के विषय में ये क्रिया लगती है । भगवन् ! क्या नारकों को प्राणातिपात से प्राणातिपात क्रिया लगती है ? (हाँ) गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार निरन्तर वैमानिकों तक का कहना।
क्या जीवों को मृषावाद से मृषावाद क्रिया लगती है ? हाँ, गौतम ! होती है । गौतम ! सर्वद्रव्यों के विषय में मृषावाद क्रिया लगती है । इसी प्रकार नैरयिकों से लगातार वैमानिकों तक जानना । जीवों को अदत्तादान से अदत्तादानक्रिया लगती है ? हाँ, गौतम ! होती है । गौतम ! ग्रहण और धारण करने योग्य द्रव्यों के विषय में यह क्रिया होती है । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक समझना । जीवों को मैथुन से (मैथुन-) क्रिया लगती है ? हाँ, होती है। गौतम ! रूपों अथवा रूपसहगत द्रव्यों के विषय में यह क्रिया लगती है । इसी प्रकार नैरयिकों से निरन्तर वैमानिकों तक कहना । जीवों के परिग्रह से (परिग्रह) क्रिया लगती है ? हाँ, गौतम ! होती है । गौतम ! समस्त द्रव्यों के विषय में यह क्रिया लगती है । इसी तरह नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना । इसी प्रकार क्रोध, यावत् लोभ से, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद, अरति-रति, मायामृषा एवं मिथ्यादर्शनशल्य से समस्त जीवों, नारकों यावत् वैमानिकों तक कहना । ये अठारह दण्डक हुए। सूत्र-५२७
भगवन् ! (एक) जीव प्राणातिपात से कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है ? गौतम ! सात अथवा आठ । इसी प्रकार एक नैरयिक से एक वैमानिक देव तक कहना । भगवन् ! (अनेक) जीव प्राणातिपात से कितनी कर्मप्र-कृतियाँ बाँधते हैं ? गौतम ! सप्तविध या अष्टविध । भगवन् ! (अनेक) नारक प्राणातिपात से कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधते हैं ? गौतम ! सप्तविध अथवा (अनेक नारक) सप्तविध और (एक नारक) अष्टविध, अथवा (अनेक नारक) सप्तविध और (अनेक) अष्टविध कर्मबन्धक होते हैं । इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमार तक कहना । पृथ्वी यावत् वनस्पतिकायिक के विषय में औधिक जीवों के समान कहना । अवशिष्ट समस्त जीवों में नैरयिकों के समान कहना। इस प्रकार समुच्चय जीवों और एकेन्द्रियों को छोड़कर तीन-तीन भंग सर्वत्र मिथ्यादर्शनशल्य तक कहना। इस प्रकार एकत्व और पृथक्त्व को लेकर छत्तीस दण्डक होते हैं। सूत्र-५२८
भगवन् ! एक जीव ज्ञानावरणीय कर्म को बाँधता हुआ कितनी क्रियाओं वाला होता है ? गौतम ! कदाचित् तीन, कदाचित् चार और कदाचित् पाँच । इसी प्रकार एक नैरयिक से एक वैमानिक तक कहना । (अनेक) जीव ज्ञानावरणीय कर्म को बाँधते हए, कितनी क्रियाओं वाले होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् समस्त कथन कहना । इस प्रकार मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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