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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश/सूत्र किन्तु औदारिकशरीर की जघन्य अवगाहना से विशेषाधिक है । (उससे) वैक्रियशरीर की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । (उससे) आहारकशरीर की असंख्यातगुणी है।
उत्कृष्ट अवगाहना से सबसे कम आहारक शरीर की अवगाहना है, उनसे औदारिक शरीर की संख्यात गुणी है, उनसे वैक्रिय शरीर की असंख्यातगुणी है, उनसे तैजस कार्मण शरीर की असंख्यातगुणी है । जघन्योत्कृष्ट अवगाहना से-सबसे अल्प औदारिकशरीरावगाहना है, तैजस कार्मण की उनसे विशेषाधिक है, वैक्रियशरीराव-गाहना असंख्यातगुणी है, आहारकशरीर की उससे असंख्यातगुणी है।
पद-२१-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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