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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश/सूत्र सूत्र-९५
जिस छाल के टूटने पर उसका भंग सम दिखाई दे, वह छाल भी अनन्तजीव वाली है । इसी प्रकार की अन्य छाल भी अनन्तजीव समझना। सूत्र-९६
जिस टूटी हुई शाखा का भंग समान दृष्टिगोचर हो, वह अनन्तजीव हैं । इसी प्रकार की अन्य (शाखाएं) (भी अनन्तजीव समझो)। सूत्र - ९७
___टूटे हुए जिस प्रवाल का भंग समान दीखे, वह अनन्तजीव हैं । इसी प्रकार के जितने भी अन्य (प्रवाल) हों, (उन्हें अनन्तजीव समझो)। सूत्र - ९८
टूटे हुए जिस पत्ते का भंग समान दिखाई दे, वह अनन्तजीव हैं । इसी प्रकार जितने भी अन्य पत्र हों, उन्हें अनन्तजीव वाले समझो। सूत्र- ९९
टूटे हुए जिस फूल का भंग समान दिखाई दे, वह भी अनन्तजीव हैं । इसी प्रकार के अन्य पुष्प को भी अनन्तजीव समझो।
सूत्र-१००
जिस टूटे हुए फल का भंग सम दिखाई दे, वह फल अनन्त जीव हैं । इसी प्रकार के अन्य फल को भी अनन्तजीव समझो। सूत्र-१०१
जिस टूटे हुए बीज का भंग समान दिखाई दे, वह अनन्तजीव हैं । इसी प्रकार के अन्य बीज को भी अनन्त जीव वाले समझो। सूत्र-१०२
टूटे हुए जिस मूल का भंग विषमभेद दिखाई दे, वह मूल प्रत्येक जीव वाला है । इसी प्रकार के अन्य मूल को भी प्रत्येकजीव समझो। सूत्र-१०३
टूटे हए जिस कन्द के भंग-प्रदेश में विषमछेद दिखाई दे, वह कन्द प्रत्येक जीव है। इसी प्रकार के अन्य कन्द को भी प्रत्येकजीव समझो। सूत्र-१०४
टूटे हुए जिस स्कन्ध के भंगप्रदेश में हीर दिखाई दे, वह स्कन्ध प्रत्येकजीव हैं । इसी प्रकार के और भी स्कन्ध को (भी प्रत्येकजीव समझो)। सूत्र-१०५
जिस छाल टूटने पर उनके भंग में हीर दिखाई दे, वह छाल प्रत्येक जीव है । इसी प्रकार की अन्य छाले को भी प्रत्येकजीव समझो। सूत्र-१०६
जिस शाखा के टूटने पर उनके भंग में विषमछेद दिखे, वह शाखा प्रत्येक जीव है । इसी प्रकार की अन्य शाखाएं को भी प्रत्येकजीव समझो।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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