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________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र विदूषकों, कथाकारों, उछलकूद करने वालों, शुभाशुभ फल कहने वालों, रास गाने वालों, बाँस पर चढ़कर नाचने वालों, चित्रफलक हाथ में लेकर माँगने वालों, तूणा बजाने वालों, वीणावादकों, कावड लेकर घूमने वालों, स्तुतिपाठकों का मेला लगता है क्या ? हे आयुष्मन् श्रमण ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । वे मनुष्य कौतूहल से रहित होत हैं । हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में गाड़ी, रथ, यान, युग्य, गिल्ली, थिल्ली, पिपिल्ली, प्रवहण, शिबिका, स्यन्द-मानिक आदि वाहन हैं क्या ? हे आयुष्मन् श्रमण ! वहाँ उक्त वाहन नहीं हैं । वे मनुष्य पैदल चलने वाले हैं। हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में घोड़ा, हाथी, ऊंट, बैल, भैंस-भैंसा, गधा, टु, बकरा-बकरी और भेड़ होते हैं क्या ? हाँ, गौतम ! होते तो हैं परन्तु उन मनुष्यों के उपभोग के लिए नहीं होते । हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में सिंह, व्याघ्र, भेडिया, चीता, रीछ, गेंडा, तरक्ष बिल्ली, सियाल, कुत्ता, सूअर, लोमड़ी, खरगोश, चित्तल और चिल्लक हैं क्या? हे आयुष्मन श्रमण ! वे पश हैं परन्त वे परस्पर या वहाँ के मनुष्यों को पीडा या बाधा नहीं देते हैं और स्वभाव से भद्रिक होते हैं । हे भगवन ! एकोरुक द्वीप में शालि, व्रीहि, गेहं, जौ, तिल और इक्ष होते हैं क्या ? हाँ, गौतम ! होते हैं किन्तु उन पुरुषों के उपभोग में नहीं आते । हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में गड़े, बिल, दरारें, भृगु, अवपात, विषमस्थान, कीचड, धूल, रज, पंक-कीचड कादव और चलनी आदि हैं क्या? हे आयुष्मन श्रमण ! नहीं है । भूभाग बहुत समतल और रमणीय है । हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में स्थाणु, काँटे, हीरक, कंकर, तृण का कचरा, पत्तों का कचरा, अशुचि, सडांध, दुर्गन्ध और अपवित्र पदार्थ हैं क्या ? हे आयुष्मन् श्रमण ! नहीं हैं। हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में डांस, मच्छर, पिस्सू, जू, लीख, माकण आदि हैं क्या? हे आयुष्मन् श्रमण ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में सर्प, अजगर और महोरग हैं क्या? हे आयुष्मन् श्रमण ! वे हैं तो सही परन्तु परस्पर या वहाँ के लोगों को बाधा-पीड़ा नहीं पहुंचाते हैं, वे स्वभाव से ही भद्रिक होते हैं । हे भगवन्! एकोरुक द्वीप में (अनिष्टसूचक) दण्डाकार ग्रहसमुदाय, मूसलाकार ग्रहसमुदाय, ग्रहों के संचार की ध्वनि, ग्रहयुद्ध, ग्रहसंघाटक, ग्रहापसव, मेघों का उत्पन्न होना, वृक्षाकार मेघों का होना, सध्यालाल-नीले बादलों का परिणमन, गन्धर्वनगर, गर्जना, बिजली चमकना, उल्कापात, दिग्दाह, निर्घात, धूलि बरसना, यूपक, यक्षादीप्त, धूमिका, महिका, रज-उद्घात, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण चन्द्र आसपास मण्डल का होना, सूर्य के आसपास मण्डल का होना, दो चन्द्रों का दिखना, दो सूर्यों का दिखना, इन्द्रधनुष, उदकमत्स्य, अमोघ, कपिहसित, पूर्ववात, पश्चिम वात यावत् शुद्धवात, ग्रामदाह, नगरदाह यावत् सन्निवेशदाह, (इनसे होने वाले) प्राणियों का क्षय, जनक्षय, कुलक्षय, धनक्षय आदि दुःख और अनार्य-उत्पात आदि वहाँ होते हैं क्या? हे गौतम ! उक्त सब उपद्रव वहाँ नहीं होते हैं। हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में डिंभ, डमर, कलह, आर्तनाद, मात्सर्य, वैर, विरोधीराज्य आदि हैं क्या ? हे आयुष्मन श्रमण ! ये सब नहीं हैं । हे भगवन ! एकोरुक द्वीप में महायुद्ध महासंग्राम महाशस्त्रों का निपात, महापुरुषों के बाण, महारुधिरबाण, नागबाण, आकाशबाण, तामस बाण आदि हैं क्या ? हे आयुष्मन् श्रमण ! ये सब वहाँ नहीं हैं । क्योंकि वहाँ के मनुष्य वैरानुबंध से रहित होते हैं । हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में दुर्भूतिक, कुलक्रमागतरोग, ग्रामरोग, नगररोग, मंडल रोग, शिरोवेदना, आंखवेदना, कानवेदना, नाकवेदना, दांतवेदना, नखवेदना, खांसी, श्वास, ज्वर, दाह, खुजली, दाद, कोढ़, डमरुवात, जलोदर, अर्श, अजीर्ण, भगंदर, इन्द्र के आवेश से होने वाला रोग, स्कन्दग्रह, कुमारग्रह, नागग्रह, यक्षग्रह, भूतग्रह, उद्वेगग्रह, धनुग्रह, एकान्तर ज्वर, यावत् चार दिन छोड़कर आने वाला ज्वर, हृदयशूल, मस्तकशूल, पार्श्वशूल, कुक्षिशूल, योनिशूल ग्राममारी यावत् सन्निवेशमारी और इनसे होनेवाला प्राणों का क्षय यावत् दुःखरूप उपद्रवादि हैं क्या ? हे आयुष्मन् श्रमण ! ये सब उपद्रव वहाँ नहीं हैं। हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में अतिवृष्टि, अल्पवृष्टि, सुवृष्टि, दुर्तुष्टि, उद्वाह, प्रवाह, उदकभेद, उदकपीड़ा, गाँव को बहा ले जाने वाली वर्षा यावत् सन्निवेश को बहा ले जाने वाली वर्षा और उससे होने वाला प्राणक्षय यावत् दुःखरूप उपद्रवादि होते हैं क्या ? हे आयुष्मन् श्रमण ! ऐसा नहीं होता । हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में लोहे-तांबेसीसे-सोने-रत्नों और वज्र-हीरों की खान, वसुधारा, सोने की वृष्टि, चाँदी की वृष्टि, रत्नों की वृष्टि, वज्रों-हीरों की वृष्टि, आभरणों की वृष्टि, पत्र-पुष्प-फल-बीज-माल्य-गन्ध-वर्ण-चूर्ण की वृष्टि, दूध की वृष्टि, रत्नों की वर्षा, हिरण्य मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 50
SR No.034681
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size4 MB
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