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________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र प्रतिपत्ति-३-मनुष्य सूत्र-१४० हे भगवन् ! मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, सम्मूर्छिम मनुष्य और गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य । भगवन् ! सम्मूर्छिम मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! एक ही प्रकार के । भगवन् ! ये सम्मूर्छिम मनुष्य कहाँ पैदा होते हैं ? गौतम ! मनुष्यक्षेत्र में इत्यादि प्रज्ञापनासूत्र अनुसार यहाँ कहना । सूत्र - १४१ हे भगवन् ! गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! तीन प्रकार के-कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक और आन्तर्वीपिक। सूत्र-१४२ हे भगवन् ! आन्तर्दीपिक मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! अट्ठाईस प्रकार के-एकोरुक, आभाषिक, यावत् शुद्धदंत । सूत्र-१४३ हे भगवन् ! दक्षिण दिशा के एकोरुक मनुष्यों का एकोरुक नामक द्वीप कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के दक्षिण में चुल्ल हिमवंत नामक वर्षधर पर्वत के उत्तरपूर्व के चरमान्त से लवणसमुद्र में तीन सौ योजन जाने पर दक्षिण दिशा में एकोरुक द्वीप है। वह द्वीप तीन सौ योजन की लम्बाई-चौड़ाई वाला तथा नौ सौ उनचास योजन से कुछ अधिक परिधि वाला है। उसके चारों ओर एक पद्मवरवेदिका और एक वनखंड है । वह पद्मवरवेदिका आठ योजन ऊंची, पाँच सौ धनुष चौड़ाई वाली और एकोरुक द्वीप को सब तरफ से घेरे हुए है । उस पद्मवरवेदिका का वर्णन राजप्रश्नीयसूत्र की तरह कहना । सूत्र-१४४ वह पद्मवरवेदिका एक वनखण्ड से सब ओर से घिरी हुई है । वह वनखण्ड कुछ कम दो योजन गोलाकार विस्तार वाला और वेदिका के तुल्य परिधि वाला है । वह वनखण्ड बहत हरा-भरा और सघन होने से काला और कालीकान्ति वाला प्रतीत होता है, इस प्रकार राजप्रश्नीयसूत्र अनुसार वनखण्ड का वर्णन जानना । तृणों का वर्ण, गंध, स्पर्श, शब्द तथा वावड़ियाँ, उत्पातपर्वत, पृथ्वीशिलापट्टक आदि का भी वर्णन कहना । यावत् वहाँ बहुत से वाणव्यन्तर देव और देवियाँ उठते-बैठते हैं, यावत् सुखानुभव करते हुए विचरण करते हैं। सूत्र-१४५ हे भगवन् ! एकोरुकद्वीप की भूमि आदि का स्वरूप किस प्रकार का है ? गौतम ! एकोरुकद्वीप का भीतरी भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय है । मुरज के चर्मपुट समान समतल वहाँ का भूमिभाग है-आदि । इस प्रकार शय्या की मृदुता भी कहना यावत् पृथ्वीशिलापट्टक का भी वर्णन करना । उस शिलापट्टक पर बहुत से एको-रुकद्वीप के मनुष्य और स्त्रियाँ उठते-बैठते हैं यावत् पूर्वकृत् शुभ कर्मों के फल का अनुभव करते हुए विचरते हैं । हे आयुष्मन् श्रमण ! एकोरुक नामक द्वीप में स्थान-स्थान पर यहाँ-वहाँ बहुत से उद्दालक, कोद्दालक, कृतमाल, नतमाल, नृत्यमाल, शृंगमाल, शंखमाल, दंतमाल और शैलमाल नामक द्रुम हैं । वे द्रुम कुश और कांस से रहित मूल वाले हैं वे प्रशस्त मूलवाले, प्रशस्त कंदवाले यावत् प्रशस्त बीजवाले हैं और पत्रों तथा पुष्पों से आच्छन्न, प्रतिचन्न हैं और शोभा से अतीव-अतीव शोभायमान हैं । उस एकोरुकद्वीप में जगह-जगह बहुत से वृक्ष हैं । साथ ही हेरुतालवन, भेरुतालवन, मेरुतालवन, सेरुतालवन, सालवन, सरलवन, सप्तपर्णवन, सुपारी के वन, खजूर के वन और नारियल के वन हैं । ये वृक्ष और वन कुश और कांस से रहित यावत् शोभा से अतीव-अतीव शोभायमान हैं। उस एगोरुकद्वीप में स्थान-स्थान पर बहुत से तिलक, लवक, न्यग्रोध यावत् राजवृक्ष, नंदिवृक्ष हैं जो दर्भ और कांस से रहित हैं यावत श्री से अतीव शोभायमान हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 43
SR No.034681
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size4 MB
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