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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र अनिष्ट यावत् अमणाम भूमिस्पर्श का अनुभव करते हैं । इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के जलस्पर्श का अनुभव करते हैं ? गौतम ! अनिष्ट यावत् अमणाम जलस्पर्श का अनुभव करते हैं । इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना चाहिए । इसी प्रकार तेजस्, वायु और वनस्पति के स्पर्श के विषय में जानना।
हे भगवन् ! क्या रत्नप्रभापृथ्वी दूसरी पृथ्वी की अपेक्षा बाहल्य में बड़ी और सर्वान्तों में लम्बाई-चौड़ाई में सबसे छोटी है ? हाँ, गौतम! है। भगवन् ! क्या दूसरी पृथ्वी तीसरी पृथ्वी से बाहल्यमें बड़ी, सर्वान्तोंमें छोटी है? हाँ, गौतम! है । इसी प्रकार यावत् छठी पृथ्वी, सातवीं पृथ्वी की अपेक्षा बाहल्य में बड़ी है, सर्वान्तों में लम्बाई-चौड़ाई में सबसे छोटी है ? हाँ, गौतम! है । भगवन् ! क्या दूसरी पृथ्वी तीसरी पृथ्वी से बाहल्य में बड़ी, सर्वान्तोंमें छोटी है ? हाँ, गौतम! है । इसी प्रकार यावत् छठी पृथ्वी सातवीं पृथ्वी की अपेक्षा बाहल्य में बड़ी, लम्बाई-चौड़ाईमें छोटी है। सूत्र-१०९
भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावासों के पर्यन्तवर्ती प्रदेशों में जो पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक जीव हैं, वे जीव महाकर्मवाले, महाक्रियावाले और महाआस्रववाले और महावेदनावाले हैं क्या? हाँ, गौतम! इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना। सूत्र-११०
हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से प्रत्येक में सब प्राणी, सब भूत, सब जीव और सब सत्त्व पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक रूप में और नैरयिक रूप में पूर्व में उत्पन्न हुए हैं क्या ? हाँ, गौतम ! उत्पन्न हुए हैं । इस प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना । विशेषता यह है-जिस पृथ्वी में जितने नरकावास हैं उनका उल्लेख वहाँ करना। सूत्र- १११-११६
इस उद्देशक में निम्न विषयों का प्रतिपादन हुआ है-पृथ्वीयों की संख्या, कितने क्षेत्र में नरकावास हैं, नारकों के संस्थान, तदनन्तर मोटाई, विष्कम्भ, परिक्षेप वर्ण, गन्ध, स्पर्श ।
नरकों की विस्तीर्णता बताने हेतु देव की उपमा, जीव और पुद्गलों की उनमें व्युत्क्रान्ति, शाश्वत-अशाश्वत प्ररूपणा | ..... उपपात एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं-अपहार, उच्चत्व, नारकों के संहनन, संस्थान, वर्ण, गन्ध, स्पर्श, उच्छ्वास, आहार | लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, योग, उपयोग, समुद्घात, भूख-प्यास, विकुर्वणा, वेदना, भय ।
पाँच महापुरुषों का सप्तम पृथ्वी में उपपात, द्विविध वेदना-उष्णवेदना, शीतवेदना, स्थिति, उद्वर्तना, पृथ्वी का स्पर्श और सर्वजीवों का उपपात । यह संग्रहणी गाथाएं हैं।
प्रतिपत्ति-३ - नैरयिक उद्देशक-३ सूत्र-११७
हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के पुद्गलों के परिणमन का अनुभव करते हैं ? गौतम ! अनिष्ट यावत् अमणाम पुद्गलों का । इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी के नैरयिकों तक कहना। सूत्र - ११८
इस सप्तमपृथ्वी में प्रायः करके नरवृषभ, वासुदेव, जलचर, मांडलिक राजा और महा आरम्भ वाले गृहस्थ उत्पन्न होते हैं। सूत्र-११९
नारकों में अन्तर्मुहूर्त, तिर्यक् और मनुष्य में चार अन्तर्मुहूर्त और देवों में पन्द्रह दिन का उत्तर विकुर्वणा का
मुनि दीपरत्नसागर कृत्- (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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