________________
आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र में भी उत्पन्न होते हैं। यदि वे देवों में उत्पन्न हों तो वानव्यन्तर देवों तक उत्पन्न होते हैं । ये जीव चार गति में जाने वाले, दो गतियों से आने वाले, प्रत्येक शरीर वाले और असंख्यात कहे गये हैं। सूत्र-४४
स्थलचर संमूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कौन हैं ? स्थलचर संमूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक दो प्रकार के हैं-चतुष्पद स्थलचर और परिसर्प स्थलचर | चतुष्पद स्थलचर० तिर्यंच कौन हैं ? चतुष्पद स्थलचर० चार प्रकार के हैं, एक खुर वाले, दो खुर वाले, गंडीपद और सनखपद । यावत् जो इसी प्रकार के अन्य भी चतुष्पद स्थलचर हैं वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त । उनके तीन शरीर, अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवाँ भाग
और उत्कृष्ट दो कोस से नौ कोस तक । स्थिति जघन्य से अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट चौरासी हजार वर्ष की होती है । शेष सब जलचरों के समान समझना । यावत् ये चार गति में जाने वाले और दो गति में आनेवाले हैं, प्रत्येक-शरीरी और असंख्यात हैं।
परिसर्प स्थलचर० तिर्यंचयोनिक क्या हैं ? परिसर्प स्थलचर० तिर्यंचयोनिक दो प्रकार के हैं, यथा-उरग परिसर्प० और भुजग परिसर्प० । उरग परिसर्प० क्या है ? उरग परिसर्प० चार प्रकार के हैं-अहि, अजगर, असालिया
और महोरग । अहि कौन हैं ? अहि दो प्रकार के हैं-दर्वीकर और मुकुली । दर्वीकर कौन हैं ? दर्वीकर अनेक प्रकार के हैं, जैसे-आशीविष आदि यावत् दर्वीकर का पूरा कथन । मुकुली क्या है ? मुकुली अनेक प्रकार के हैं, जैसेदिव्य, गोनस यावत् मुकुली का पूरा कथन ।
अजगर क्या हैं ? अजगर एक ही प्रकार के हैं | आसालिक क्या हैं ? प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार जानना । महोरग क्या है ? प्रज्ञापना के अनुसार जानना । इस प्रकार के अन्य जो उरपरिसर्प जाति के हैं वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त, अपर्याप्त । विशेषता इस प्रकार-इनकी शरीर अवगाहना जघन्य से अंगुल के असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट योजन पृथक्त्व । स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट तिरपन हजार वर्ष । शेष द्वार जलचरों के समान जानना यावत् ये जीव चार गति में जाने वाले दो गति में आने वाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं।
भुजग परिसर्प संमूर्छिम स्थलचर क्या है ? भुजग परिसर्प संमूर्छिम स्थलचर अनेक प्रकार के हैं, यथागोह, नेवला यावत् अन्य इसी प्रकार के भुजग परिसर्प । ये संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त । शरीरा वगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व स्थिति उत्कृष्ट से ४२००० वर्ष । शेष जलचरों की भाँति कहना यावत् ये चार गतिमें जानेवाले, दो गति से आनेवाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं
खेचर का क्या स्वरूप है ? खेचर चार प्रकार के हैं-चर्मपक्षी, रोमपक्षी, समुद्गकपक्षी और विततपक्षी । चर्मपक्षी क्या हैं ? चर्मपक्षी अनेक प्रकार के हैं, जैसे-वल्गुली यावत् इसी प्रकार के अन्य चर्मपक्षी । रोमपक्षी क्या हैं ? रोमपक्षी अनेक प्रकार के हैं, यथा-ढंक, कंक यावत् अन्य इसी प्रकार के रोमपक्षी । समुदगकपक्षी एक ही प्रकार के हैं । जैसा प्रज्ञापना में कहा वैसा जानना । इसी तरह विततपक्षी भी जानना । ये खेचर संक्षेप से दो प्रकार के कहे गये हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त इत्यादि पूर्ववत् । विशेषता यह है कि इनकी शरीरावगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व है। स्थिति उत्कृष्ट बहत्तर हजार वर्ष की है । यावत् ये खेचर चार गतियों में जानेवाले, दो गतियों से आनेवाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं। सूत्र - ४५
गर्भव्युत्क्रान्तिक पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक क्या हैं? यह तीन प्रकार के हैं-जलचर, स्थलचर और खेचर । सूत्र - ४६
(गर्भज) जलचर क्या हैं ? ये जलचर पाँच प्रकार के हैं-मत्स्य, कच्छप, मगर, ग्राह और सुंसुमार । इन सब के भेद प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार कहना यावत् इस प्रकार के गर्भज जलचर संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त । हे भगवन् ! इन जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ? गौतम ! औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण ।
इनकी शरीरावगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट से हजार योजन की है । इन जीवों मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 13