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________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र प्रतिपत्ति-७-अष्टविध सूत्र-३६६ जो आचार्यादि ऐसा कहते हैं कि संसारसमापन्नक जीव आठ प्रकार के हैं, उनके अनुसार-१. प्रथमसमयनैरयिक, २. अप्रथमसमयनैरयिक, ३. प्रथमसमयतिर्यग्योनिक, ४. अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक, ५. प्रथमसमय मनुष्य ६. अप्रथमसमयमनुष्य, ७. प्रथमसमयदेव और ८. अप्रथमसमयदेव । स्थिति-भगवन् ! प्रथमसमयनैरयिक की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट से एक समय । अप्रथमसमयनैरयिक की जघन्यस्थिति एक समय कम दस हजार वर्ष और उत्कर्ष से एक समय कम तेंतीस सागरोपम की है । प्रथमसमयतिर्यग्योनिक की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी एक समय है । अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक की जघन्य स्थिति एक समय कम क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कृष्ट स्थिति एक समय कम तीन पल्योपम । इसी प्रकार मनुष्यों की स्थिति तिर्यग्योनिकों के समान और देवों की स्थिति नैरयिकों के समान है । नैरयिक और देवों की जो स्थिति है, वही दोनों प्रकार के नैरयिकों और देवों की कायस्थिति है। भगवन् ! प्रथमसमयतिर्यग्योनिक उसी रूप में कितने समय तक रह सकता है ? गौतम ! जघन्य और उत्कर्ष से भी एक समय | अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक जघन्य से एक समय कम क्षुल्लकभव और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल तक । प्रथमसमयमनुष्य जघन्य और उत्कृष्ट से एक समय तक और अप्रथमसमयमनुष्य जघन्य से एक समय कम क्षुल्लकभवग्रहण पर्यन्त और उत्कर्ष से एक समय कम पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक रह सकता है। अन्तरद्वार-प्रथमसमयनैरयिक का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहर्त्त अधिक दस हजार वर्ष है, उत्कृष्ट अन्तर वनस्पतिकाल है। अप्रथमसमयनैरयिक का जघन्य अन्तर्मुहर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल । प्रथमसमयतिर्यक्योनिक का जघन्य एक समय कम दो क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल | अप्रथमसमयतिर्यक्योनिक का जघन्य समयाधिक एक क्षुल्लकभवग्रहण है और उत्कृष्ट सागरोपम शतपृथक्त्व से कुछ अधिक । प्रथमसमय-मनुष्य का जघन्य एक समय कम दो क्षुल्लकभव है, उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । अप्रथमसमयमनुष्य का जघन्य समयाधिक क्षुल्लकभव है और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । देवों के सम्बन्ध में नैरयिकों की तरह कहना । सबसे थोड़े प्रथमसमयमनुष्य, उनसे प्रथमसमयनैरयिक असंख्येयगुण, उनसे प्रथमसमयदेव असंख्येयगुण, उनसे प्रथमसमयतिर्यक्योनिक असंख्येयगुण । अप्रथमसमयनैरयिकों यावत् अप्रथमसमयदेवों का अल्पबहुत्व उक्त क्रम से ही है, किन्तु अप्रथमसमयतिर्यक्योनिक अनन्तगुण कहना । भगवन् ! प्रथमसमयनैरयिकों और अप्रथमसमयनैरयिकों में? सबसे थोड़े प्रथमसमयनैरयिक, उनसे अप्रथमसमयनैरयिक असंख्येयगुण हैं । इसी प्रकार तिर्यक्योनिक, मनुष्य और देवों का अल्पबहुत्व कहना । भगवन् ! प्रथमसमयनैरयिकों यावत् अप्रथमसमयदेवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े प्रथमसमयमनुष्य, उनसे अप्रथमसमयमनुष्य असंख्येयगुण, उनसे प्रथमसमयनैरयिक असंख्येयगुण, उनसे प्रथमसमयदेव असंख्येयगुण, उनसे प्रथमसमयतिर्यक्योनिक असंख्येयगुण, उनसे अप्रथमसमयनैरयिक असंख्येयगुण, उनसे अप्रथमसमयदेव असंख्येयगुण, उनसे अप्रथमसमय तिर्यक्योनिक अनन्तगुण हैं। प्रतिपत्ति-७-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 123
SR No.034681
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size4 MB
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