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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र प्रतिपत्ति-६-सप्तविध सूत्र-३६५
जो ऐसा कहते हैं कि संसारसमापन्नक जीव सात प्रकार के हैं, उनके अनुसार नैरयिक, तिर्यंच, तिरश्ची, मनुष्य, मानुषी, देव और देवी ये सात भेद हैं । नैरयिक की स्थिति जघन्य १०००० वर्ष और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की है। तिर्यक्योनिक की जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम है।
तिर्यक्स्त्री , मनुष्य और मनुष्यस्त्री की भी यही स्थिति है । देवों की स्थिति नैरयिक की तरह जानना और देवियों की स्थिति जघन्य १०००० और उत्कृष्ट ५५ पल्योपम है।
नैरयिक और देवों की तथा देवियों की जो भवस्थिति है, वही उनकी संचिटणा है । तिर्यंचों की जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अनन्तकाल है । तिर्यस्त्रियों की संचिट्ठणा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम है । इसी प्रकार मनुष्यों और मनुष्यस्त्रियों की भी संचिट्ठणा जानना ।
नैरयिकों का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । तिर्यक्योनिकों को छोड़कर सबका अन्तर उक्त प्रमाण ही कहना चाहिए । तिर्यक्योनिकों का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपम शत-पृथक्त्व है।
प्रतिपत्ति-६-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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