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________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र किया हुआ है, तत्काल नीतारा हुआ है तथा जो श्रेष्ठ वर्ण-गंध-रस-स्पर्श से युक्त है । इससे भी अधिक इष्ट घृतोदसमुद्र का जल है । भगवन् ! क्षोदोदसमुद्र का जल स्वाद में कैसा है ? गौतम ! जैसे भेरुण्ड देश में उत्पन्न जातिवंत उन्नत पौण्ड्रक जाति का ईख होता है जो पकने पर हरिताल के समान पीला हो जाता है, जिसके पर्व काले हैं, ऊपर और नीचे के भाग को छोड़कर केवल बीचले त्रिभाग को ही बलिष्ठ बैलों द्वारा चलाये गये यंत्र से रस नीकाला गया हो, जो वस्त्र से छना गया हो, जिसमें चतुर्जातक मिलाये जाने से सुगन्धित हो, जो बहुत पथ्य, पाचक और शुभ वर्णादि से युक्त हो-ऐसे इक्षुरस भी अधिक इष्ट क्षोदोदसमुद्र का जल है। इसी प्रकार स्वयंभूरमणसमुद्र पर्यन्त शेष समुद्रों के जल का आस्वाद जानना चाहिए । विशेषता यह है कि वह जल वैसा ही स्वच्छ, जातिवंत और पथ्य है जैसा कि पुष्करोद का जल है । भगवन् ! कितने समुद्र प्रत्येक रस वाले कहे गये हैं ? गौतम ! चार-लवण, वरुणोद, क्षीरोद और घृतोद । भगवन् ! कितने समुद्र प्रकृति से उदगरस वाले हैं? गौतम ! तीन-कालोद, पुष्करोद और स्वयंभूरमण समुद्र । आयुष्मन् श्रमण ! शेष सब समुद्र प्रायः क्षोदरस (इक्षुरस) वाले हैं। सूत्र- ३०३ भगवन् ! कितने समुद्र बहुत मत्स्य-कच्छपों वाले हैं ? गौतम ! तीन-लवण, कालोद और स्वयंभूरमण समुद्र | आयुष्मन् श्रमण ! शेष सब समुद्र अल्प मत्स्य-कच्छपोंवाले कहे गये हैं । भगवन् ! कालोदसमुद्र में मत्स्यों की कितनी लाख जातिप्रधान कुलकोड़ियों की योनियाँ हैं ? गौतम ! नव लाख | भगवन् ! स्वयंभूरमणसमुद्र में मत्स्यों की कितनी लाख जातिप्रधान कुलकोड़ियों की योनियाँ हैं ? गौतम ! साढ़े बारह लाख | भगवन् ! लवण-समुद्र में मत्स्यों के शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी है ? गौतम ! जघन्य से अंगुल का असंख्यात भाग और उत्कृष्ट पाँच सौ योजन । इसी तरह कालोदसमुद्र में उत्कृष्ट सात सौ योजन की, स्वयंभूरमणसमुद्र में उत्कृष्ट एक हजार योजन प्रमाण सूत्र-३०४ ___ भन्ते ! नामों की अपेक्षा द्वीप और समुद्र कितने नामवाले हैं ? गौतम ! लोक में जितने शुभ नाम हैं, शुभ वर्ण यावत् शुभ स्पर्श हैं, उतने ही नामों वाले द्वीप और समुद्र हैं । भन्ते ! उद्धारसमयों की अपेक्षा से द्वीप-समुद्र कितने हैं ? गौतम ! अढाई सागरोपम के जितने उद्धारसमय हैं, उतने द्वीप और सागर हैं । सूत्र-३०५ भगवन् ! द्वीप-समुद्र पृथ्वी के परिमाण हैं इत्यादि प्रश्न-गौतम ! द्वीप-समुद्र पृथ्वीपरिणाम भी हैं, जलपरिणाम भी हैं, जीवपरिणाम भी हैं और पुद्गलपरिणाम भी हैं । भगवन् ! इन द्वीप-समुद्रों में सब प्राणी, सब भूत, सब जीव और सब सत्व पृथ्वीकाय यावत् त्रसकाय के रूप में पहले उत्पन्न हुए हैं क्या ? गौतम ! हाँ, कईं बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हो चूके हैं। प्रतिपत्ति-३-'देव उद्देशक' का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण प्रतिपत्ति-३-इन्द्रियविषयाधिकार सूत्र - ३०६ भगवन् ! इन्द्रियों का विषयभूत पुद्गलपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का-श्रोत्रेन्द्रिय का विषय यावत् स्पर्शनेन्द्रिय का विषय । श्रोत्रेन्द्रिय का विषयभूत पुद्गलपरिणाम दो प्रकार का है-शुभ शब्दपरिणाम और अशुभ शब्दपरिणाम । इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय आदि के विषयभूत पुद्गलपरिणाम भी दो-दो प्रकार के हैं-यथा सुरूपपरिणाम और कुरूपपरिणाम, सुरभिगंधपरिणाम और दुरभिगंधपरिणाम, सुरसपरिणाम एवं दुरस मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 102
SR No.034681
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size4 MB
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