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________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र पिंड़, हरिद्रा, लोहारी, स्निहु, स्तिभु, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सिकुण्डी, मुषण्डी और अन्य भी इस प्रकार के साधारण वनस्पतिकायिक-अंवक, पलक, सेवाल आदि जानना । ये संक्षेप से दो प्रकार के हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त । भगवन् ! इन जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन-औदारिक, तैजस और कार्मण । इस प्रकार सब कथन बादर पृथ्वीकायिकों की तरह जानना । विशेषता यह है कि इनके शरीर की अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट से एक हजार योजन से कुछ अधिक है । इनके शरीर के संस्थान अनियत हैं, स्थिति जघन्य से अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की है । यावत् ये दो गति में जाते हैं और तीन गति से आते हैं । प्रत्येकवनस्पति जीव असंख्यात हैं और साधारणवनस्पति के जीव अनन्त कहे गए हैं। सूत्र-३० त्रसों का स्वरूप क्या है ? त्रस तीन प्रकार के हैं, यथा-तेजस्काय, वायुकाय और उदारत्रस । सूत्र - ३१ तेजस्काय क्या है ? तेजस्काय दो प्रकार के हैं-सूक्ष्मतेजस्काय और बादरतेजस्काय । सूत्र-३२ सूक्ष्म तेजस्काय क्या हैं ? सूक्ष्म तेजस्काय सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों की तरह समझना । विशेषता यह है कि इनके शरीर का संस्थान सूइयों के समुदाय के आकार का जानना । ये जीव तिर्यंचगति में ही जाते हैं और मनुष्यों से आते हैं । ये जीव प्रत्येकशरीर वाले हैं और असंख्यात हैं। सूत्र-३३ बादर तेजस्कायिकों का स्वरूप क्या है ? बादर तेजस्कायिक अनेक प्रकार के हैं, कोयले की अग्नि, ज्वाला की अग्नि, मुर्मूर की अग्नि यावत् सूर्यकान्त मणि से निकली हुई अग्नि और भी अन्य इसी प्रकार की अग्नि । ये बादर तेजस्कायिक जीव संक्षेप से दो प्रकार के हैं पर्याप्त और अपर्याप्त । भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ? गौतम ! तीन-औदारिक, तैजस और कार्मण । शेष बादर पृथ्वीकाय की तरह समझना । अन्तर यह है कि उनके शरीर सूइयों के समुदाय के आकार के हैं, उनमें तीन लेश्याएं हैं, जघन्य स्थिति अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट तीन रात-दिन की है । तिर्यंच और मनुष्यों से वे आते हैं और केवल एक तिर्यंचगति में ही जाते हैं । वे प्रत्येकशरीर वाले हैं और असंख्यात कहे गये हैं। सूत्र-३४ वायुकायिकों का स्वरूप क्या है ? वायुकायिक दो प्रकार के हैं, सूक्ष्म वायुकायिक और बादर वायुकायिक। सूक्ष्म वायुकायिक तेजस्कायिक की तरह जानना । विशेषता यह है कि उनके शरीर पताका आकार के हैं । ये एक गति में जानेवाले और दो गतियों से आने वाले हैं । ये प्रत्येकशरीरी और असंख्यात लोकाकाशप्रदेश प्रमाण हैं। बादर वायुकायिकों का स्वरूप क्या है ? बादर वायुकायिक जीव अनेक प्रकार के हैं, पूर्वी वायु, पश्चिमी वायु और इस प्रकार के अन्य वायुकाय । वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं पर्याप्त और अपर्याप्त । भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! चार-औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण । उनके शरीर ध्वजा के आकार के हैं । उनके चार समुद्घात होते हैं-वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात और वैक्रियसमुद्घात । उनका आहार व्याघात न हो तो छहों दिशाओं के पुद्गलों का होता है और व्याघात होने पर कभी तीन दिशा, कभी चार दिशा और कभी पाँच दिशाओं के पुदगलों के ग्रहण का होता है। वे जीव देवगति, मनुष्यगति और नरकगति में उत्पन्न नहीं होते । उनकी स्थिति जघन्य से अंतमुहूर्त और उत्कृष्ट से तीन हजार वर्ष की है। शेष पूर्ववत् । एक गति वाले, दो आगति वाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात कहे गये हैं। सूत्र - ३५ औदारिक त्रस प्राणी किसे कहते हैं ? औदारिक त्रस प्राणी चार प्रकार के हैं-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 10
SR No.034681
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size4 MB
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