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आगम सूत्र १२, उपांगसूत्र-१, 'औपपातिक' सूत्र-६६
सिद्ध शरीर रहित, जीवघन तथा दर्शनोपयोग एवं ज्ञानोपयोग में उपयुक्त हैं । यों साकार तथा अनाकारचेतना सिद्धों का लक्षण है। सूत्र-६७
वे केवल ज्ञानोपयोग द्वारा सभी पदार्थों के गुणों एवं पर्यायों को जानते हैं तथा अनन्त केवलदर्शन द्वारा सर्वतः समस्त भावों को देखते हैं। सूत्र-६८-/७०
सिद्धों को जो अव्याबाध, शाश्वत सुख प्राप्त है, वह न मनुष्यों को प्राप्त है और न समग्र देवताओं को ही तीन काल गुणित अनन्त देव-सुख, यदि अनन्त बार वर्गवर्गित किया जाए तो भी वह मोक्ष-सुख के समान नहीं हो सकता । एक सिद्ध के सुख को तीनों कालों से गुणित करने पर जो सुख-राशि निष्पन्न हो, उसे यदि अनन्त वर्ग से विभाजित किया जाए, जो सुख-राशि भागफल के रूप में प्राप्त हो, वह भी इतनी अधिक होती है कि सम्पूर्ण आकाश में समाहित नहीं हो सकती। सूत्र - ७१, ७२
जैसे कोई असभ्य वनवासी पुरुष नगर के अनेकविध गुणों को जानता हुआ भी वन में वैसी कोई उपमा नहीं पाता हुआ उस के गुणों का वर्णन नहीं कर सकता । उसी प्रकार सिद्धों का सुख अनुपम है । उसकी कोई उपमा नहीं है। फिर भी विशेष रूप से उपमा द्वारा उसे समझाया जा रहा है, सुनें । सूत्र-७३,७४
जैसे कोई पुरुष अपने द्वारा चाहे गए सभी गुणों-विशेषताओं से युक्त भोजन कर, भूख-प्यास से मुक्त होकर अपरिमित तृप्ति का अनुभव करता है, उसी प्रकार- सर्वकालतृप्त, अनुपम शान्तियुक्त सिद्ध शाश्वत तथा अव्याबाध परम सुख में निमग्न रहते हैं । सूत्र-७५
वे सिद्ध हैं, बुद्ध हैं, पारगत हैं, परंपरागत हैं, उत्मुक्त-कर्मकवच हैं, अजर हैं, अमर हैं तथा असंग हैं । सूत्र-७६
सिद्ध सब दुःखों को पार कर चुके हैं जन्म, बुढ़ापा तथा मृत्यु के बन्धन से मुक्त हैं । निर्बाध, शाश्वत सुख का अनुभव करते हैं। सूत्र-७७
अनुपम सुख-सागर में लीन, निर्बाध, अनुपम मुक्तावस्था प्राप्त किये हुए सिद्ध समग्र अनागत काल में सदा प्राप्तसुख, सुखयुक्त अवस्थित रहते हैं।
१२ औपपातिक-उपांगसूत्र-१-पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (औपपातिक)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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