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आगम सूत्र १२, उपांगसूत्र-१, 'औपपातिक' कल्पता है, बिना दिया नहीं । वह भी स्नान के लिए कल्पता है, हाथ, पैर, चरु, चमच धोने के लिए या पीने के लिए नहीं । अर्हत् या अर्हत्-चैत्यों (जिनालय) अतिरिक्त अम्बड को अन्ययूथिक, उनके देव, उन द्वारा परिगृहीत चैत्यउन्हें वन्दन करना, नमस्कार करना, उनकी पर्युपासना करना नहीं कल्पता।
भगवन ! अम्बड परिव्राजक मृत्युकाल आने पर देह-त्याग कर कहाँ जाएगा? कहाँ उत्पन्न होगा? गौतम! अम्बड परिव्राजक उच्चावच शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान एवं पोषधोपवास द्वारा आत्मभावित होता हआ बहत वर्षों तक श्रमणोपासक-पर्याय का पालन करेगा। वैसा कर एक मास की संलेखना और एक मास का अनशन सम्पन्न कर, आलोचना, प्रतिक्रमण कर, मृत्यु-काल आने पर वह समाधिपूर्वक देह-त्याग करेगा । वह ब्रह्मलोक कल्प में देवरूप में उत्पन्न होगा । वहाँ अनेक देवों की आयु-स्थिति दस सागरोपम-प्रमाण बतलाई गई। अम्बड देव का भी आयुष्य दस सागरोपम-प्रमाण होगा । भगवन् ! अम्बड देव अपना आयु-क्षय, भव-क्षय, स्थितिक्षय होने पर उस देवलोक से च्यवन कर कहाँ जाएगा? कहाँ उत्पन्न होगा?
गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में ऐसे जो कुल हैं यथा-धनाढ्य, दीप्त, प्रभावशाली, सम्पन्न, भवन, शयन, आसन, यान, वाहन, विपुल साधन-सामग्री तथा सोना, चाँदी, सिक्के आदि प्रचुर धन के स्वामी होते हैं । वे आयोग-प्रयोग-संप्रवृत्त नीतिपूर्वक द्रव्य के उपार्जन में संलग्न होते हैं । उनके यहाँ भोजन कर चूकने के बाद भी खाने-पीने के बहुत पदार्थ बचते हैं । उनके घरों में बहुत से नौकर, नौकरानियाँ, गायें, भैंसें, बैल, पाड़े, भेड़बकरियाँ आदि होते हैं। वे लोगों द्वारा अपरिभूत होते हैं । अम्बड ऐसे कुलों में से किसी एक में पुरुषरूप उत्पन्न होगा । अम्बड शिशु के रूप में जब गर्भ में आयेगा, तब माता-पिता की धर्म में आस्था दृढ़ होगी।
नौ महीने साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर बच्चे का जन्म होगा । उसके हाथ-पैर सुकोमल होंगे । उसके शरीर की पाँचों इन्द्रियाँ अहीन-प्रतिपूर्ण होंगी । वह उत्तम लक्षण, व्यंजन होगा । दैहिक फैलाव, वजन, ऊंचाई आदि की दृष्टि से वह परिपूर्ण, श्रेष्ठ तथा सर्वांगसुन्दर होगा । उसका आकार चन्द्र के सदृश सौम्य होगा । वह कान्तिमान्, देखने में प्रिय एवं सुरूप होगा । तत्पश्चात् माता-पिता पहले दिन उस बालक का कुलक्रमागत पुत्रजन्मोचित अनुष्ठान करेंगे । दूसरे दिन चन्द्र-सूर्य-दर्शनिका नामक जन्मोत्सव करेंगे । छठे दिन जागरिका करेंगे । ग्यारहवें दिन वे अशुचि-शोधन-विधान से निवृत्त होंगे । इस बालक के गर्भ में आते ही हमारी धार्मिक आस्था दृढ़ हुई थी, अतः यह ‘दृढ़प्रतिज्ञ' नाम से संबोधित किया जाए, यह सोचकर माता-पिता बारहवे दिन उसका 'दृढ़प्रतिज्ञ'-यह गुणानुगत, गुणनिष्पन्न नाम रखेंगे । माता-पिता यह जानकर कि अब बालक आठ वर्ष से कुछ अधिक का हो गया है, उसे शुभतिथि, शुभ करण, शुभ दिवस, शुभ नक्षत्र एवं शुभ मुहूर्त में शिक्षण हेतु कलाचार्य के पास ले जायेंगे | तब कलाचार्य बालक दृढ़प्रतिज्ञ को खेल एवं गणित से लेकर पक्षिशब्दज्ञान तक बहत्तर कलाएं सूत्ररूप में-सैद्धान्तिक दृष्टि से, अर्थ रूप में व्याख्यात्मक दृष्टि से, करण रूप में-सधायेंगे, सिखायेंगेअभ्यास करायेंगे । वे बहत्तर कलाएं इस प्रकार हैं
१. लेख, २. गणित, ३. रूप, ४. नाट्य, ५. गीत, ६. वाद्य, ७. स्वरगत, ८. पुष्करगत, ९. समताल, १०. द्यूत, ११. जनवाद, १२. पाशक, १३. अष्टापद, १४. पौरस्कृत्य, १५. उदक-मृत्तिका, १६. अन्न-विधि, १७. पानविधि, १८. वस्त्र-विधि, १९. विलेपन-विधि, २०. शयन-विधि, २१. आर्या, २२. प्रहलिका, २३. मागधिका, २४. गाथा, अर्धमागधी, २५. गीतिका, २६. श्लोक, २७. हिरण्य-युक्ति, २८. सुवर्ण-युक्ति, २९. गन्ध-युक्ति, ३०. चूर्णयक्ति, ३१. आभरण-विधि, ३२. तरुणी-प्रतिकर्म, ३३. स्त्री-लक्षण, ३४. पुरुष-लक्षण, ३५. हय-लक्षण, ३६. गजलक्षण, ३७. गो-लक्षण, ३८. कुक्कुट-लक्षण, ३९. चक्र-लक्षण, ४०. छत्र-लक्षण, ४१. चर्म-लक्षण, ४२. दण्डलक्षण, ४३. असि-लक्षण, ४४. मणि-लक्षण, ४५. काकणी-लक्षण, ४६. वास्तु-विद्या, ४७. स्कन्धावार-मान, ४८. नगर-निर्माण, ४९. वास्तुनिवेशन, ५०. व्यूह, प्रतिव्यूह, ५१. चार-प्रतिचार, ५२. चक्रव्यूह, ५३. गरुड-व्यूह, ५४. शकट-व्यूह, ५५. युद्ध, ५६. नियुद्ध, ५७. युद्धातियुद्ध, ५८. मुष्टि-युद्ध, ५९. बाहु-युद्ध, ६०. लता-युद्ध, ६१. इषु शस्त्र, ६२. धनुर्वेद, ६३. हिरण्यपाक, ६४. सुवर्ण-पाक, ६५. वृत्त-खेल, ६६. सूत्र-खेल, ६७. नालिका-खेल, पत्रच्छेद्य, ६९. कटच्छेद्य, ७०. सजीव, ७१. निर्जीव, ७२. शकुत-रुत । ये बहत्तर कलाएं सधाकर, इनका शिक्षण देकर, अभ्यास करा कर कलाचार्य को माता-पिता को सौंप देंगे।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (औपपातिक)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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