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आगम सूत्र ११, अंगसूत्र-१, 'विपाकश्रुत'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/ सूत्रांक अध्ययन-४ - सुवासवकुमार सूत्र-४०
हे जम्बू ! विजयकुमार नगर था। नन्दनवन उद्यान था । अशोक यक्ष का यक्षायतन था । राजा वासवदत्त था । कृष्णादेवी रानीथी । सुवासकुमार राजकुमार था । भद्रा-प्रमुख ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं से विवाह हुआ । भगवान महावीर पधारे । सुवासवकुमार ने श्रावकधर्म स्वीकार किया । पूर्वभव-गौतम ! कौशाम्बी नगरी थी। धनपाल राजा था । उसने वैश्रमणभद्र अनगार को निर्दोष आहार का दान दिया, उसके प्रभाव से मनुष्य-आयुष्य का बन्ध हुआ यावत् यहाँ सुवासकुमार के रूप में जन्म लिया है, यावत् इसी भव में सिद्धि-गत को प्राप्त हुए ।
अध्ययन-४-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
अध्ययन-५ - जिनदास सूत्र - ४१
हे जम्बू ! सौगन्धिका नगरी थी । नीलाशोक उद्यान था । सुकाल यक्ष का यक्षायतन था । अप्रतिहत राजा थे । सुकृष्णा उनकी भार्या थी । पुत्र का नाम महाचन्द्रकुमार था । अर्हद्दता नाम की भार्या थी । जिनदास नाम का पुत्र था । भगवान महावीर का पदार्पण हुआ । जिनदास ने द्वादशविध गृहस्थ धर्म स्वीकार किया । पूर्वभव-हे गौतम ! माध्यमिका नगरी थी । महाराजा मेघरथ थे । सुधर्मा अनगार को महाराजा मेघरथ ने भावपूर्वक निर्दोष
आहार दान दिया, उससे मनुष्य भव के आयुष्य का बन्ध किया और यहाँ पर जन्म लेकर यावत् इसी जन्म में सिद्ध हुआ । निक्षेप-पूर्ववत् ।
अध्ययन-५-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (विपाकश्रुत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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