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आगम सूत्र ११, अंगसूत्र-१, 'विपाकश्रुत'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/ सूत्रांक
अध्ययन-६- नंदिवर्धन सूत्र-२९
उत्क्षेप भगवन् ! यदि यावत् मुक्तिप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने पाँचवे अध्ययन का यह अर्थ कहा, तो षष्ठ अध्ययन का भगवान ने क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में मथुरा नगरी थी । वहाँ भण्डीर नाम का उद्यान था । सुदर्शनयक्ष का आयतन था । श्रीदाम राजा था, बन्धुश्री रानी थी । उनका सर्वाङ्गसम्पन्न युवराज पद से अलंकृत नन्दिवर्द्धन नामका सर्वाङ्गसुन्दर पुत्र था । श्रीदाम नरेश का सुबन्धु मन्त्री था, जो साम, दण्ड, भेद-उपप्रदान में कुशल था-उस मन्त्री के बहुमित्रापुत्र नामक सर्वाङ्गसम्पन्न व रूपवान् बालक था । श्रीदाम नरेश का, चित्र नामक अलंकारिक था । वह राजा का अनेकविध, क्षीरकर्म करता हुआ राजा की आज्ञा से सर्वस्थानों, सर्व-भूमिकाओं तथा अन्तःपुर में भी, बेरोक-टोक, आवागमन करता रहता था।
उस काल उस समय में मथुरा नगरी में भगवान महावीर पधारे । परिषद् व राजा भगवान की धर्मदेशना श्रवण करने नगर से नीकले, यावत् वापिस चले गए । उस समय भगवान महावीर के प्रधान शिष्य गौतम स्वामी भिक्षा के लिए नगरी में पधारे । वहाँ उन्होंने हाथियों, घोड़ों और पुरुषों को देखा, तथा उन पुरुषों के मध्य में यावत् बहत से नर-नारियों के वृन्द से घिरे हुए एक पुरुष को देखा । राजपुरुष उन पुरुष को चत्वर-स्थान में अग्नि के समान-सन्तप्त लोहमय सिंहासन पर बैठाते हैं । बैठाकर कोई-कोई राजपुरुष उसको अग्नि के समान उष्ण लोहे से परिपूर्ण, कोई ताम्रपूर्ण, कोई त्रपु-रांगा से पूर्ण, कोई सीसा से पूर्ण, कोई कलकल से पूर्ण, अथवा कलकल शब्द करते हुए अत्युष्ण पानी से परिपूर्ण, क्षारयुक्त तैल से पूर्ण, अग्नि के समान तपे कलशों के द्वारा महान् राज्याभिषेक से उसका अभिषेक करते हैं । तदनन्तर उसे, लोहमय संडासी से पकड़कर अग्नि के समान तपे हुए अयोमय, अर्द्धहार, यावत् पहनाते हैं । यावत् गौतमस्वामी उस पुरुष के पूर्वभव सम्बन्धी वृत्तान्त को भगवान से पूछते हैं ।
हे गौतम ! उस काल उस समय में इसी जम्बूद्वीप अन्तर्गत भारतवर्ष में सिंहपुर नामक एक ऋद्ध, स्तिमित व समृद्ध नगर था । वहाँ सिंहस्थ राजा था । दुर्योधन नाम का कारागाररक्षक था, जो अधर्मी यावत् कठिनाई से प्रसन्न होने वाला था । दुर्योधन नामक उस चारकपाल के निम्न चारकभाण्ड थे । अनेक प्रकार की लोहमय कुण्डियाँ थी, जिनमें से कई एक ताम्र से, कई एक त्रपुरांगा से, कई एक सीसे से, तो कितनीक चूर्णमिश्रित जल से भरी हुई थी और कितनीक क्षारयुक्त तैल से भरी थी, जो कि अग्नि पर रखी रहती थी। दुर्योधन चारकपाल के पास उष्ट्रिकाएं थे-उनमें से कईं एक अश्वमूत्र से, कितनेक हाथी के मूत्र से, कितनेक उष्ट्रमूत्र से, कितनेक गोमूत्र से, कितनेक महिषमूत्र से, कितनेक बकरे के मूत्र से तो कितनेक भेड़ों के मूत्र से भरे हुए थे।
धन चारकपाल के पास अनेक हस्तान्दुक, पादान्दुक, हडि और शृंखला तथा नीकर लगाए हए रखे थे । तथा उस दुर्योधन चारकपाल के पास वेणुलताओं, बेंत के चाबुकों, चिंता-इमली के चाबुकों, कोमल चर्म के चाबुकों, सामान्य चर्मयुक्त चाबुकों, वल्कलरश्मियों के पुंज व नीकर रखे रहते थे । उस दुर्योधन चारकपाल के पास अनेक शिलाओं, लकड़ियों, मुद्गरों और कनंगरों के पुंज व नीकर रखे रहते थे । उस दुर्योधन चारकपाल के पास चमड़े की रस्सियों, सामान्य रस्सियों, वल्कल रज्जुओं, छाल से निर्मित रस्सियों, केशरज्जुओं और सूत्र रज्जुओं के पुञ्ज व नीकर रखे रहते थे।
उस दुर्योधन चारकपाल के पास असिपत्र, करपत्र, क्षुरपत्र और कदम्बचीरपत्र के भी पुञ्ज व नीकर रखे रहते थे । उस दुर्योधन चारकपाल के पास लोहे की कीलों, बाँस की सलाइयों, चमड़े के पट्टों व अल्लपट्ट के पुञ्ज व नीकर रखे हुए थे । उस दुर्योधन चारकपाल के पास अनेक सूइयों, दम्भनों ऐसी सलाइयों तथा लघु मुद्गरों के पुञ्ज व नीकर रखे हुए थे । उस दुर्योधन के पास अनेक प्रकार के शस्त्र, पिप्पल, कुल्हाड़ों, नखच्छेदक एवं डाभ के अग्रभाग से तीक्ष्ण हथियारों के पुञ्ज व नीकर रखे हुए थे।
__ तदनन्तर वह दुर्योधन चारपालक सिंहरथ राजा के अनेक चोर, परस्त्रीलम्पट, ग्रन्थिभेदक, राजा के अपकारी-दुश्मनों, ऋणधारक, बालघातकों, विश्वासघातियों, जुआरियों और धूर्त पुरुषों को राजपुरुषों के द्वारा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (विपाकश्रुत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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