________________
आगम सूत्र ११, अंगसूत्र-१, 'विपाकश्रुत'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/ सूत्रांक हुआ जीवन व्यतीत करेगा । किसी समय वह शकटकुमार स्वयमेव कूटग्राहित्व को प्राप्त कर विचरण करेगा। वह कूटग्राह बना हुआ वह महाअधर्मी एवं दुष्प्रत्यानन्द होगा । इन अधर्म-प्रधान कर्मों से बहुत से पापकर्मों को उपार्जित कर मृत्युसमय में मरकर रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक में नारकी रूप से उत्पन्न होगा । उसका संसारभ्रमण भी पूर्ववत् जानना यावत् वह पृथ्वीकाय आदि में लाखों-लाखों बार उत्पन्न होगा । वहाँ से वाराणसी नगरी में मत्सय के रूप में जन्म लेगा । वहाँ पर मत्स्यघातकों के द्वारा वध को प्राप्त होकर यह फिर उसी वाराणसी नगरी में एक श्रेष्ठिकुल में पुत्ररूप से उत्पन्न होगा । वहाँ सम्यक्त्व एवं अनगार धर्म को प्राप्त करके सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में देव होगा । वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा । वहाँ साधुवृत्ति का सम्यक्तया पालन करके सिद्ध, बुद्ध होगा, समस्त कर्मों और दुःखों का अन्त करेगा।
अध्ययन-४-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (विपाकश्रुत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 24