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आगम सूत्र १०, अंगसूत्र-१०, 'प्रश्नव्याकरण'
द्वार/अध्ययन/सूत्रांक नृशंस, महाभय, प्रतिभय, अतिभय, भापनक, त्रासनक, अन्याय, उद्वेगजनक, निरपेक्ष, निर्धर्म, निष्पिपास, निष्करुण, नरकवास गमन-निधन, मोहमहाभय प्रवर्तक और मरणवैमनस्य यह प्रथम अधर्मद्वार है। सूत्र-६
प्राणवधरूप हिंसा के गुणवाचक तीस नाम हैं । यथा-प्राणवध, शरीर से (प्राणों का) उन्मूलन, अविश्वास, हिंस्यविहिंसा, अकृत्य, घात, मारण, वधना, उपद्रव, अतिपातना, आरम्भ-समारंभ, आयुकर्म का उपद्रव-भेदनिष्ठापन-गालना-संवर्तक और संक्षेप, मृत्यु, असंयम, कटकमर्दन, व्युपरमण, परभवसंक्रामणकारक, दुर्गतिप्रपात, पापकोप, पापलोभ, छविच्छेद, जीवित-अंतकरण, भयंकर, ऋणकर, वज्र, परितापन आस्रव, विनाश, निर्यापना, लुंपना और गुणों की विराधना । इत्यादि प्राणवध के कलुष फल के निर्देशक ये तीस नाम हैं। सूत्र-७
कितने ही पातकी, संयमविहीन, तपश्चर्या के अनुष्ठान से रहित, अनुपशान्त परिणाम वाले एवं जिनके मन, वचन और काम का व्यापार दुष्ट है, जो अन्य प्राणियों को पीड़ा पहुँचाने में आसक्त रहते हैं तथा त्रस और स्थावर जीवों की प्रति द्वेषभाव वाले हैं, वे अनेक प्रकारों से हिंसा किया करते हैं । वे कैसे हिंसा करते हैं ?
मछली, बड़े मत्स्य, महामत्स्य, अनेक प्रकार की मछलियाँ, अनेक प्रकार के मेंढक, दो प्रकार के कच्छप दो प्रकार के मगर, ग्राह, मंडूक, सीमाकार, पुलक आदि ग्राह के प्रकार, सुंसुमार इत्यादि अनेकानेक प्रकार के जलचर जीवों का घात करते हैं।
कुरंग और रुरु जाति के हिरण, सरभ, चमर, संबर, उरभ्र, शशक, पसय, बैल, रोहित, घोड़ा, हाथी, गधा, ऊंट, गेंडा, वानर, रोझ, भेड़िया, शृंगाल, गीदड़, शूकर, बिल्ली, कोलशुनक, श्रीकंदलक एवं आवर्त नामक खुर वाले पशु, लोमड़ी, गोकर्ण, मृग, भैंसा, व्याघ्र, बकरा, द्वीपिक, श्वान, तरक्ष, रीछ, सिंह, केसरीसिंह, चित्तल, इत्यादि चतुष्पद प्राणी हैं, जिनकी पूर्वोक्त पापी हिंसा करते हैं । अजगर, गोणस, दृष्टिविष सर्प-फेन वाला साँप, काकोदरसामान्य सर्प, दर्वीकर सर्प, आसालिक, महोरग, इन सब और इस प्रकार के अन्य उरपरिसर्प जीवों का पापी वध करते हैं । क्षीरल, शरम्ब, सेही, शल्यक, गोह, उंदर, नकुल, गिरगिट, जाहक, गिलहरी, छडूंदर, गिल्लोरी, वातोत्पत्तिका, छिपकली, इत्यादि अनेक प्रकार के भुजपरिसर्प जीवों का वध करते हैं।
हंस, बगला, बलाका, सारस, आडा, सेतीय, कलल, वंजल, परिप्लव, तोता, तीतर, दीपिका, श्वेत हंस, धार्तराष्ट्र, भासक, कुटीक्रोश, क्रौंच, दकतुंडक, ढेलियाणक, सुघरी, कपिल, पिंगलाक्ष, कारंडक, चक्रवाक, उक्कोस, गरुड़, पिंगुल, शुक, मयूर, मैना, नन्दीमुख, नन्दमानक, कोरंग, भंगारक, कुणालक, चातक, तित्तिर, वर्तक, लावक, कपिंजल, कबूतर, पारावत, परेवा, चिड़िया, ढिंक, कुकड़ा, वेसर, मयूर, चकोर, हृदपुण्डरीक, करक, चील, बाज, वायस, विहग, श्वेत चास, वल्गुली, चमगादड़, विततपक्षी, समुद्गपक्षी, इत्यादि पक्षियों की अनेकानेक जातियाँ हैं, हिंसक जीव इनकी हिंसा करते हैं।
जल, स्थल और आकाश में विचरण करने वाले पंचेन्द्रिय प्राणी तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय अथवा चतुरिन्द्रिय प्राणी अनेकानेक प्रकार के हैं । इन सभी प्राणियों को जीवित रहना प्रिय है । मरण का दुःख अप्रिय है। फिर भी अत्यन्त संक्लिष्टकर्मा-पापी पुरुष इन बेचारे दीन-हीन प्राणियों का वध करते हैं । चमड़ा, चर्बी, माँस, मेद, रक्त, यकृत, फेफड़ा, भेजा, हृदय, आंत, पित्ताशय, फोफस, दाँत, अस्थि, मज्जा, नाखून, नेत्र, कान, स्नायु, नाक, धमनी, सींग, दाढ़, पिच्छ, विष, विषाण और बालों के लिए (हिंसक प्राणी जीवों की हिंसा करते हैं) । रसासक्त मनुष्य मधु के लिए-मधुमक्खियों का हनन करते हैं, शारीरिक सुख या दुःखनिवारण करने के लिए खटमल आदि त्रीन्द्रियों का वध करते हैं, वस्त्रों के लिए अनेक द्वीन्द्रिय कीड़ों आदि का घात करते हैं।
अन्य अनेकानेक प्रयोजनों से त्रस-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय-जीवों का घात करते हैं तथा बहुत-से एकेन्द्रिय जीवों का उनके आश्रय से रहे हुए अन्य सूक्ष्म शरीर वाले त्रस जीवों का समारंभ करते हैं । ये प्राणी त्राणरहित हैं-अशरण हैं-अनाथ हैं, बान्धवों रहित हैं और बेचारे अपने कृत कर्मों की बेड़ियों से जकड़े हुए
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (प्रश्नव्याकरण) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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