________________
आगम सूत्र १०, अंगसूत्र-१०, 'प्रश्नव्याकरण'
द्वार/अध्ययन/सूत्रांक भग्न हो जाती हैं । मछली पकड़ने के काँटे के समान घातक काले लोहे के नोकदार डंडे छाती, पेट, गुदा और पीठ में भोंक देने से वे अत्यन्त पीड़ा अनुभव करते हैं । ऐसी-ऐसी यातनाओं से अदत्तादान करने वालों का हृदय मथ दिया जाता है और उनके अंग-प्रत्यंग चूर-चूर हो जाते हैं । कोई-कोई अपराध किये बिना ही वैरी बने हुए कर्मचारी यमदूतों के समान मार-पीट करते हैं । वे अभागे कारागार में थप्पड़ों, मुक्कों, चर्मपट्टों, लोहे के कुशों, लोहमय तीक्ष्ण शस्त्रों, चाबुकों, लातों, मोटे रस्सों और बेतों के सैकड़ों प्रहारों से अंग-अंग को ताड़ना देकर पीड़ित किये जाते हैं । लटकती हुई चमड़ी पर हुए घावों की वेदना से उन बेचारे चोरों का मन उदास हो जाता है । बेड़ियों को पहनाये रखने के कारण उनके अंग सिकुड़ जाते हैं और शिथिल पड़ जाते हैं । यहाँ तक कि उनका मल-मूत्रत्याग भी रोक दिया जाता है, उनका बोलना बंद कर दिया जाता है । वे इधर-उधर संचरण नहीं कर पाते । ये और इसी प्रकार की अन्यान्य वेदनाएं वे अदत्तादान का पाप करने वाले पापी प्राप्त करते हैं।
जिन्होंने अपनी इन्द्रियों का दमन नहीं किया है-वशीभूत हो रहे हैं, जो तीव्र आसक्ति के कारण मूढ-बन गए हैं, परकीय धनमें लुब्ध हैं, जो स्पर्शनेन्द्रिय विषयमें तीव्र रूप से गद्ध-हैं, स्त्री सम्बन्धी रूप, शब्द, रस और गंध में इष्ट रति तथा इष्ट भोग की तृष्णा से व्याकुल बने हुए हैं, जो केवल धन में ही सन्तोष मानते हैं, ऐसे मनुष्य-गण फिर भी पापकर्म के परिणाम को नहीं समझते । वे आरक्षक-वधशास्त्र के पाठक होते हैं । चोरों को गिरफ्तार करने में चतुर होते हैं । सैकड़ों बार लांच-लेते हैं । झूठ, कपट, माया, निकृति करके वेषपरिवर्तन आदि करके चोर को पकड़ने तथा उससे अपराध स्वीकार कराने में अत्यन्त कुशल होते हैं वे नरकगतिगामी, परलोक से विमुख एवं सैकड़ों असत्य भाषण करने वाले, ऐसे राजकिंकरों के समक्ष उपस्थित कर दिये जाते हैं । प्राणदण्ड की सजा पाए हुए चोरों को पुरवर-में शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, महापथ और पथ आदि स्थानों में जनसाधारण के सामने-लाया जाता है । तत्पश्चात् बेतों, डंडों, लाठियों, लकड़ियों, ढेलों, पत्थरों, लम्बे लठों, पणोल्लि, मुक्कों, लताओं, लातों, घुटनों और कोहनियों से, उनके अंग-अंग भंग कर दिए जाते हैं, उनके शरीर को मथ दिया जाता है। अठारह प्रकार के चोरों एवं चोरी के प्रकारों के कारण उनके अंग-अंग पीड़ित कर दिये जाते हैं, करुणाजनक दशा होती है।
उनके ओष्ठ, कण्ठ, गला, तालु और जीभ सूख जाती है, जीवन की आशा नष्ट हो जाती है । पानी भी नसीब नहीं होता । उन्हें धकेले या घसीटे जाते हैं । अत्यन्त कर्कश पटह-बजाते हुए, धकियाए जाते हुए तथा तीव्र क्रोध से भरे हुए राजपुरुषों के द्वारा फाँसी पर चढ़ाने के लिए दृढ़तापूर्वक पकड़े हुए वे अत्यन्त ही अपमानित होते हैं । उन्हें दो वस्त्र और लाल कनेर की माला पहनायी जाती है, जो वध्यभूत सी प्रतीत होती है, पुरुष को शीघ्र ही मरणभीति से उनके शरीर से पसीना छूटता है, उनके सारे अंग भीग जाते हैं। कोयले आदि से उनका शरीर पोता है। हवा से उड़कर चिपटी हुई धूल से उनके केश रूखे एवं धूल भरे हो जाते हैं । उनके मस्तक के केशों को कुसुंभी से रंग दिया जाता है । उनकी जीवन-आशा छिन्न हो जाती है । अतीव भयभीत होने के कारण वे डगमगाते हुए चलते हैं और वे वधकों से भयभीत बने रहते हैं । उनके शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े कर दिए जाते हैं। उन्हीं के शरीर में से काटे हए और रुधिर से लिप्त माँस के टुकड़े उन्हें खिलाए जाते हैं । कठोर एवं कर्कश स्पर्श वाले पत्थर आदि से उन्हें पीटा जाता है । इस भयावह दृश्य को देखने के लिए उत्कंठित, पागलों जैसी नर-नारियों की भीड़ से वे घिर जाते हैं । नागरिक जन उन्हें देखते हैं । मृत्युदण्डप्राप्त कैदी की पोशाक पहनाई जाती है और नगर के बीचों-बीच हो कर ले जाया जाता है । उस समय वे अत्यन्त दयनीय दिखाई देते हैं । त्राणरहित, अशरण, अनाथ, बन्धुबान्धवविहीन, स्वजन द्वारा परित्यक्त वे इधर-उधर नजर डालते हैं और मौत के भय से अत्यन्त घबराए हुए होते हैं । उन्हें वधस्थल पर पहुंचा दिया जाता है और उन अभागों को शूली पर चढ़ा दिया जाता है, जिससे उनका शरीर चिर जाता है।
वहाँ वध्यभूमि में उनके अंग-प्रत्यंग काट डाले जाते हैं । वृक्ष की शाखाओं पर टांग दिया जाता है । चार अंगों-को कस कर बाँध दिया जाता है । किन्हीं को पर्वत की चोटी से गिराया जाता है। उससे पत्थरों की चोट
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (प्रश्नव्याकरण) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 20