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________________ आगम सूत्र १०, अंगसूत्र-१०, 'प्रश्नव्याकरण' द्वार/अध्ययन/ सूत्रांक करने से जो अतिशय भयावना एवं अस्मरणीय हो रहा है और जो तीव्र दुर्गन्ध से व्याप्त एवं घिनौना होने के कारण देखने से भीषण जान पड़ता है। ऐसे श्मशान-स्थानों के अतिरिक्त बनों में, सूने घरों में, लयनों में, मार्ग में, बनी हुई दुकानों, पर्वतों की गुफाओं, विषम स्थानों और हिंस्र प्राणियों से व्याप्त स्थानों में क्लेश भोगते हुए मारे-मारे फिरते हैं । उनके शरीर की चमड़ी शीत और उष्ण से शुष्क हो जाती है, जल जाती है या चेहरे की कान्ति मंद पड़ जाती है। वे नरकभव में और तिर्यंच भव रूपी गहन वन में होने वाले निरन्तर दुःखों की अधिकता द्वारा भोगने योग्य पापकर्मों का संचय करते हैं । ऐसे घोर पापकर्मों का वे संचय करते हैं। उन्हें खाने योग्य अन्न और जल भी दुर्लभ होता है । कभी प्यासे, कभी भूखे, थके और कभी माँस, शब-मुर्दा, कभी कन्दमूल आदि जो कुछ भी मिला जाता है, उसी को खा लेते हैं । वे निरन्तर उद्विग्न रहते हैं, सदैव उत्कंठित रहते हैं। उनका कोई शरण नहीं होता । इस प्रकार वे अटवीवास करते हैं, जिसमें सैकड़ों सर्पो आदि का भय बना रहता है। वे अकीर्तिकर काम करने वाले और भयंकर तस्कर, ऐसी गुप्त विचारणा करते रहते हैं कि आज किसके द्रव्य का अपहरण करें; वे बहुत-से मनुष्यों के कार्य करने में विघ्नकारी होते हैं । वे नशा के कारण बेभान, प्रमत्त और विश्वास रखने वाले लोगों का अवसर देखकर घात कर देते हैं । विपत्ति और अभ्युदय के प्रसंगों में चोरी करने की बुद्धि वाले होते हैं । भेड़ियों की तरह रुधिर-पिपासु होकर इधर-उधर भटकते रहते हैं । वे राजाओं की मर्यादाओं का अतिक्रमण करने वाले, सज्जन पुरुषों द्वारा निन्दित एवं पापकर्म करने वाले अपनी ही करतूतों के कारण अशुभ परिणाम वाले और दुःख के भागी होते हैं । सदैव मलिन, दुःखमय अशान्तियुक्त चित्तवाले ये परकीय द्रव्य को हरण करने वाले इसी भव में सैकड़ों कष्टों से घिर कर क्लेश पाते हैं। सूत्र-१६ इसी प्रकार परकीय धन द्रव्य की खोज में फिरते हुए कईं चोर पकड़े जाते हैं और उन्हें मारा-पीटा जाता है, बाँधा जाता है और कैद किया जाता है । उन्हें वेग के साथ घूमाया जाता है । तत्पश्चात् चोरों को पकड़ने वाले, चौकीदार, गुप्तचर उन्हें कारागार में ट्रंस देते । कपड़े के चाबुकों के प्रहारों से, कठोर-हृदय सिपाहियों के तीक्ष्ण एवं कठोर वचनों की डाट-डपट से तथा गर्दन पकड़कर धक्के देने से उनका चित्त खेदखिन्न होता है । उन चोरों को नारकावास सरीखे कारागार में जबरदस्ती घुसेड़ दिया जाता है। वहाँ भी वे कारागार के अधिकारियों द्वारा प्रहारों, यातनाओं, तर्जनाओं, कटुवचनों एवं भयोत्पादक वचनों से भयभीत होकर दुःखी बने रहते हैं । उनके वस्त्र छीन लिये जाते हैं । वहाँ उनको मैले फटे वस्त्र मिलते हैं । बार-बार उन कैदियों से लाँच माँगने में तत्पर कारागार के रक्षकों द्वारा अनेक प्रकार के बन्धनों में बाँध दिये जाते हैं । चोरों को जिन विविध बन्धनों से बाँधा जाता है, वे बन्धन कौन-से हैं ? हड्डि या काष्ठमय बेड़ी, लोहमय बेड़ी, बालों से बनी हुई रस्सी, एक विशेष प्रकार का काष्ठ, चर्मनिर्मित मोटे रस्से, लोहे की सांकल, हथकड़ी, चमड़े का पट्टा, पैर बाँधने की रस्सी तथा निष्कोडन, इन सब तथा इसी प्रकार के अन्य-अन्य दुःखों को समुत्पन्न करने वाले कारागार के साधनों द्वारा बाँधे जाते हैं; इतना ही नहीं उन पापी चोर कैदियों के शरीर को सिकोड़ कर, मोड़ कर जकड़ दिया जाता है । कैदकोठरी में डाल कर किवाड़ बंद कर देना, लोहे के पींजरे में डालना, भूमिगृहमें बंद करना, कूपमें उतारना, बंदीघर के सींखचों से बाँध देना, अंगोंमें कीलें ठोकना, जूवा उनके कँधे पर रखना, गाड़ी के पहिये के साथ बाँध देना, बाहों जाँघों और सिर को कस कर बाँधना, खंभे से चिपटाना, पैरों को ऊपर और मस्तक को नीचे करके बाँधना, इत्यादि बन्धन से बाँधकर अधर्मी जेल-अधिकारीयों द्वारा चोर बाँधे जाते हैं । गर्दन नीची करके, छाती और सिर कस कर बाँध दिया जाता है तब वे निश्वास छोड़ते हैं । उनकी छाती धक् धक् करती है। उनके अंग मोड़े जाते हैं । ठंडी श्वासें छोड़ते हैं चमड़े की रस्सी से उनके मस्तक बाँध देते हैं, दोनों जंघाओं को चीर देते हैं, जोड़ों को काष्ठमय यन्त्र से बाँधा जाता है । तपाई हर्ड लोही की सलाइयाँ एवं सइयाँ शरीर में चुभोई जाती हैं । शरीर छीला जाता है। मर्मस्थलों को पीड़ित किया जाता है । क्षार कटक और तीखे पदार्थ उनके कोमल अंगों पर छिड़के जाते हैं । इस प्रकार पीड़ा पहुँचाने के सैकड़ों कारण वे प्राप्त करते हैं । छाती पर काष्ठ रखकर जोर से दबाने से उनकी हड्डियाँ मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (प्रश्नव्याकरण) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 19
SR No.034677
Book TitleAgam 10 Prashnavyakaran Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 10, & agam_prashnavyakaran
File Size3 MB
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