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आगम सूत्र १०, अंगसूत्र-१०, 'प्रश्नव्याकरण'
द्वार/अध्ययन/ सूत्रांक दूसरे-युद्धभूमि में लड़कर विजय प्राप्त करने वाले, कमर कसे हुए, कवच धारण किये हुए और विशेष प्रकार के चिह्नपट्ट मस्तक पर बाँधे हुए, अस्त्र-शस्त्रों को धारण किए हुए, प्रतिपक्ष के प्रहार से बचने के लिए ढाल से और उत्तम कवच से शरीर को वेष्टित किए हुए, लोहे की जाली पहने हुए, कवच पर लोहे के काँटे लगाए हुए, वक्षःस्थल के साथ ऊर्ध्वमुखी बाणों की तूणीर बाँधे हुए, हाथों में पाश लिए हुए, सैन्यदल की रणोचित रचना किए हुए, कठोर धनुष को हाथों में पकड़े हुए, हर्षयुक्त, हाथों से खींच कर की जाने वाली प्रचण्ड वेग से बरसती हुई मूसलधार वर्षा के गिरने से जहाँ मार्ग अवरुद्ध गया है, ऐसे युद्ध में अनेक धनुषों, दुधारी तलवारों, त्रिशूलों, बाणों, बाएं हाथों में पकड़ी हुई ढालों, म्यान से निकाली हुई चमकती तलवारों, प्रहार करते हुए भालों, तोमर नामक शस्त्रों, चक्रों, गदाओं, कुल्हाड़ियों, मूसलों, हलों, शूलों, लाठियों, भिंडमालों, शब्बलों, पट्टिस, पत्थरों, द्रुघणों, मौष्टिकों, मदगरों, प्रबल आगलों, गोफणों, द्रहणों, बाणों के तणीरों, कवेणियों और चमचमाते शस्त्रों को आकाश में फेंकने से आकाशतल बिजली के समान उज्ज्वल प्रभावाला हो जाता है । उस संग्राम में प्रकट शस्त्र-प्रहार होता है। महायुद्ध में बजाये जाने वाले शंखों, भेरियों, उत्तम वाद्यों, अत्यन्त स्पष्ट ध्वनिवाले ढोलों के बजने के गंभीर आघोष से वीर पुरुष हर्षित होते हैं और कायर पुरुषों को क्षोभ होता है। वे काँपने लगते हैं । इस कारण युद्धभूमि में होहल्ला होता है । घोड़े, हाथी, रथ और पैदल सेनाओं के शीघ्रतापूर्वक चलने से चारों ओर फैली- धूल के कारण वहाँ सघन अंधकार व्याप्त रहता है । वह युद्ध कायर नरों के नेत्रों एवं हृदयों को आकुल-व्याकुल बना देता है।
ढीला होने के कारण चंचल एवं उन्नत उत्तम मुकुटों, तिरीटों-ताजों, कुण्डलों तथा नक्षत्र नामक आभूषणों की उस युद्ध में जगमगाहट होती है । पताकाओं, ध्वजाओं, वैजयन्ती पताकाओं तथा चामरों और छत्रों के कारण होने वाले अन्धकार के कारण वह गंभीर प्रतीत होता है । अश्वों की हिनहिनाहट से, हाथियों की चिंघाड़ से, रथों की घनघनाहट से, पैदल सैनिकों की हर-हराहट से, तालियों की गड़गड़ाहट से, सिंहनाद की ध्वनियों से, सीटी बजाने की सी आवाजों से, जोर-जोर की चिल्लाहट से, जोर की किलकारियों से और एक साथ उत्पन्न होनेवाली हजारों कंठो की ध्वनि से वहाँ भयंकर गर्जनाएं होती हैं । उसमें एक साथ हँसने, रोने और कराहने के कारण कलकल ध्वनि होती रहती है । वह रौद्र होता है । उस युद्ध में भयानक दाँतों से होठों को जोर से काटने वाले योद्धाओं के हाथ अचूक प्रहार करने के लिए उद्यत रहते हैं । योद्धाओं के नेत्र रक्तवर्ण होते हैं। उनकी भौंहें तनी रहती हैं, उनके ललाट पर तीन साल पड़े हुए होते हैं । उस युद्ध में, मार-काट करते हुए हजारों योद्धाओं के पराक्रम को देखकर सैनिकों के पौरुष-पराक्रम की वद्धि हो जाती है। हिनहिनाते हए अश्वों और रथों द्वारा इधर-उधर भाग वीरों तथा शस्त्र चलाने में कुशल और सधे हए हाथों वाले सैनिक हर्ष-विभोर होकर, दोनों भुजाएं ऊप खिलखिलाक हँस रहे होते हैं । किलकारियाँ मारते हैं | चमकती हई ढालें एवं कवच धारण किए हाथियों पर आरूढ़ प्रस्थान करते हुए योद्धा, शत्रुयोद्धाओं के साथ परस्पर जूझते हैं तथा युद्धकला में कुशलता के कारण अहंकारी योद्धा अपनी-अपनी तलवारें म्यानों में से नीकाल कर, फुर्ती के साथ रोषपूर्वक परस्पर प्रहार करते हैं । हाथियों की सूंड़ें काट रहे होते हैं।
ऐसे भयावह युद्ध में मुद्गर आदि द्वारा मारे गए, काटे गए या फाड़े गए हाथी आदि पशुओं और मनुष्यों के युद्धभूमि में बहते हुए रुधिर के कीचड़ से मार्ग लथपथ हो रहे होते हैं । कूख के फट जाने से भूमि पर बिखरी हुई एवं बाहर नीकलती हुई आंतों से रक्त प्रवाहित होता रहता है । तथा तड़फड़ाते हुए, विकल, मर्माहत, बूरी तरह से कटे हुए, प्रगाढ प्रहार से बेहोश हुए, इधर-उधर लुढ़कते हुए, विह्वल मनुष्यों के विलाप के कारण वह युद्ध बड़ा ही करुणाजनक होता है । उस युद्ध में मारे गए योद्धाओं के इधर-उधर भटकते घोड़े, मदोन्मत्त हाथी और भयभीत मनुष्य, मूल से कटी हुई ध्वजाओं वाले टूटे-फूटे रथ, मस्तक कटे हुए हाथियों के धड़-कलेवर, विनष्ट हुए शस्त्रास्त्र
और बिखरे हुए आभूषण इधर-उधर पड़े होते हैं । नाचते हुए बहुसंख्यक कलेवरों पर काक और गीध मंडराते रहते हैं । तब उनकी छाया के अन्धकार के कारण वह युद्ध गंभीर बन जाता है । ऐसे संग्राम में स्वयं प्रवेश करते हैंकेवल सेना को ही युद्ध में नहीं झोंकते । पृथ्वी को विकसित करते हुए, परकीय धन की कामना करने वाले वे राजा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (प्रश्नव्याकरण) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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