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________________ आगम सूत्र ९, अंगसूत्र-९, 'अनुत्तरोपपातिकदशा' वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक वर्ग-३ सूत्र -७ हे भगवन् ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने अनुत्तरोपपातिक-दशा के द्वितीय वर्ग का उक्त अर्थ प्रतिपादन किया है, तो हे भगवन् ! अनुत्तरोपपातिक-दशा के तृतीय वर्ग का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? हे जम्ब ! मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान महावीर ने अनुत्तरोपपातिक-दशा के तृतीय वर्ग के दश अध्ययन प्रतिपादन किये हैं, जैसे सूत्र-८ धन्य, सुनक्षत्र, ऋषिदास, पेल्लक कुमार, रामपुत्र, चन्द्रिका और पृष्टिमातृका कुमार । सूत्र-९ पेढालपुत्र, पृष्टिमायी और वेहल्ल कुमार । ये तृतीय वर्ग के दश अध्ययन कहे गए हैं। वर्ग-३ अध्ययन-१ सूत्र-१० हे भगवन् ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने, अनुत्तरोपपातिक-दशा के तृतीय वर्ग के दश अध्ययन प्रतिपादन किए हैं तो फिर हे भगवन् ! प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में काकन्दी नगरी थी । वह सब तरह के ऐश्वर्य और धन-धान्य से परिपूर्ण थी । सहस्राम्रवन नाम का उद्यान था, जो सब ऋतुओं में फल और फूलों से भरा रहता था । जितशत्रु राजा था । भद्रा सार्थवाहिनी थी । वह अत्यन्त समृद्धिशालिनी और धन-धान्य में अपनी जाति और बराबरी के लोगों में किसी से किसी प्रकार भी परिभृत नहीं थी । उस भद्रा सार्थवाहिनी का धन्य नाम का एक सर्वाङ्ग-पूर्ण और रूपवान् पुत्र था । उसके पालन-पोषण करने के लिए पाँच धाईयाँ नियत थीं। शेष वर्णन महाबल कुमार समान जानना । इस प्रकार धन्य कुमार सब भोगों को भोगने में समर्थ हो गया। इसके अनन्तर भद्रा सार्थवाहिनी ने धन्य कुमार को बालकपन से मुक्त और सब तरह के भोगों को भोगने में समर्थ जानकर बत्तीस बड़े-बड़े अत्यन्त ऊंचे और श्रेष्ठ भवन बनवाए । उनके मध्य में एक सैकड़ों स्तम्भों से युक्त भवन बनवाया । फिर बत्तीस श्रेष्ठ कुलों की कन्याओं से एक ही दिन उसका पाणि-ग्रहण कराया । उनके साथ बत्तीस (दास, दासी और धन-धान्य से युक्त) प्रीतिदान मिला । तदनन्तर धन्य कुमार अनेक प्रकार के मृदङ्ग आदि वाद्यों की ध्वनि से गुञ्जित प्रासादों के ऊपर पञ्चविध सांसारिक सुखों का अनुभव करते हुए विचरण करने लगा। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी वहाँ विराजमान हुए । नगरी की परिषद् वन्दना के लिए गई । कोणिक राजा के समान जितशत्रु राजा भी गया । धन्य कुमार भी जमालि कुमार की तरह गया । विशेषता यही कि धन्य कुमार पैदल ही गया । उसने कहा कि हे भगवन् ! मैं अपनी माता भद्रा सार्थवाहिनी को पूछ कर आता हूँ । इसके अनन्तर मैं आपकी सेवा में उपस्थित होकर दीक्षित हो जाऊंगा । उसने अपनी माता से जमालि की तरह ही पूछा । माता यह सूनकर मूर्छित हो गई । माता-पुत्र में इस विषय में प्रश्नोत्तर हुए । जब वह भद्रा महाबल के समान पुत्र को रोकने के लिए समर्थ न हो सकी तो उसने थावच्चा पुत्र के समान जितशत्रु राजा से पूछा और दीक्षा के लिए छत्र और चामर की याचना की । जितशत्रु राजा ने स्वयं उपस्थित होकर कृष्ण वासुदेव के समान धन्य कुमार का दीक्षा-महोत्सव किया । धन्य कुमार दीक्षित हो गया और ईर्या-समिति, ब्रह्मचर्य आदि सम्पूर्ण गुणों से युक्त होकर विचरने लगा। तत्पश्चात् वह धन्य अनगार जिस दिन मुण्डित हुआ, उसी दिन श्रमण भगवान महावीर की वन्दना और नमस्कार कर कहने लगा कि हे भगवन् ! आपकी आज्ञा से मैं जीवन-पर्यन्त षष्ठ-षष्ठ तप और आचाम्लग्रहण-रूप तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरना चाहता हूँ | और षष्ठ के पारण के दिन भी शुद्धौदनादि ग्रहण मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (अनुत्तरोपपातिकदशा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 8
SR No.034676
Book TitleAgam 09 Anuttaropapatik Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages13
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 09, & agam_anuttaropapatikdasha
File Size2 MB
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