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________________ आगम सूत्र-८, अंगसूत्र-८, 'अंतकृत् दशा' वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक वर्ग सूत्र-४६, ४७ "भगवन् ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त भगवान महावीर ने अंतगडदशा के आठवें वर्ग का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ?" "हे जंबू ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त प्रभु महावीर ने आठवें अंग अंतगडदशा के आठवें वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं |काली, सुकाली, महाकाली, कृष्णा, सुकृष्णा, महाकृष्णा, वीरकृष्णा, रामकृष्णा, पितृसेनकृष्णा और महासेनकृष्णा । वर्ग-८ अध्ययन-१ सूत्र-४८ "भगवन् ! यदि आठवें वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त महावीर ने क्या अर्थ कहा है ?'' ''हे जंबू ! उस काल और उस समय चम्पा नामकी नगरी थी । वहाँ पूर्णभद्र चैत्य था । वहाँ कोणिक राजा था । श्रेणिक राजा की रानी और महाराजा कोणिक की छोटी माता काली देवी थी। (वर्णन) । नन्दा देवी के समान काली रानी ने भी प्रभु महावीर के समीप श्रमणीदीक्षा ग्रहण करके सामायिक से लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया एवं बहुत से उपवास, बेले, तेले आदि तपस्या से अपनी आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। __एक दिन वह काली आर्या, आर्या चन्दना के समीप आई और हाथ जोड़कर विनयपूर्वक बोली-''हे आर्ये ! आपकी आज्ञा प्राप्त हो तो मैं रत्नावली तप को अंगीकार करके विचरना चाहती हूँ।" "देवानुप्रिये ! जैसे सुख हो वैसा करो, प्रमाद मत करो ।' तब काली आर्या, आर्या चन्दना की आज्ञा पाकर रत्नावली तप को अंगीकार करके विचरने लगी, उपवास किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारण किया, पारणा करके बेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारण किया, फिर तेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर आठ बेले किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर उपवास किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर बेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर तेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर दशम चोला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर पंचोला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर छह उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर सात उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर आठ उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर नौ उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर दश उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया। पारणा करके ग्यारह उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर बारह उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर तेरह उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर चौदह उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर पन्द्रह उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर सोलह उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर चौंतीस बेले किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर सोलह उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर पन्द्रह उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर चौदह उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर तेरह उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर बारह उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर ग्यारह उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर दस उपवास किये, करके सर्वकाम-गुणयुक्त पारणा किया। फिर नौ उपवास किये, सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर आठ उपवास किये, सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर सात उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके छह उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके पंचोला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके चोला किया, करके सर्व-कामगुणयुक्त पारणा किया, करके, तेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके बेला किया, मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अंतकृद्दशा) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 28
SR No.034675
Book TitleAgam 08 Antkruddasha Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 08, & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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