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________________ आगम सूत्र-८, अंगसूत्र-८, 'अंतकृत् दशा' वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक वर्ग-४ सूत्र-१५ 'भगवन् ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त प्रभु ने आठवें अंग अंतकृत्दशा के तीसरे वर्ग का जो वर्णन किया वह सूना । अंतगडदशा के चौथे वर्ग के हे पूज्य ! श्रमण भगवान ने क्या भाव दर्शाये हैं ?'' ''हे जंबू ! यावत् मुक्तिप्राप्त प्रभु ने अंतगडदशा के चौथे वर्ग में दश अध्ययन कहे हैं, जो इस प्रकार हैंसूत्र-१६ जालि कुमार, मयालि कुमार, उवयालि कुमार, पुरुषसेन कुमार, वारिषेण कुमार, प्रद्युम्न कुमार, शाम्ब कुमार, अनिरुद्ध कुमार, सत्यनेमि कुमार और दृढ़नेमि कुमार | सूत्र-१७ जंबू स्वामी ने कहा-भगवन् ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त प्रभु ने चौथे वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं, तो प्रथम अध्ययन का श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त प्रभु ने क्या अर्थ बताया है ?'' हे जंबू ! उस काल और उस समय में द्वारका नगरी थी, श्रीकृष्ण वासुदेव वहाँ राज्य कर रहे थे । उस द्वारका नगरी में महाराज 'वासुदेव' और रानी 'धारिणी' निवास करते थे । जालि कुमार का वर्णन गौतम कुमार के समान जानना । विशेष यह कि जालि कुमार ने युवावस्था प्राप्त कर पचास कन्याओं से विवाह किया तथा पचास-पचास वस्तुओं का दहेज मिला । दीक्षित होकर जालि मुनि ने बारह अंगों का ज्ञान प्राप्त किया, सोलह वर्ष दीक्षापर्याय का पालन किया, यावत् शत्रुजय पर्वत पर जाकर सिद्ध हुए। इसी प्रकार मयालि कुमार, उवयालि कुमार और वारिषेण का वर्णन जानना चाहिए । इसी प्रकार प्रद्युम्न कुमार का वर्णन भी जानना । विशेष-कृष्ण उनके पिता और रुक्मिणी देवी माता थी। इसी प्रकार साम्ब कुमार भी; विशेष-उनकी माता जाम्बवती थी । इसी प्रकार अनिरुद्ध कुमार का भी, विशेष यह है कि प्रद्युम्न पिता और वैदर्भी उसकी माता थी । इसी प्रकार सत्यनेमि कुमार भी, विशेष, समुद्रविजय पिता और शिवा देवी माता थी। इसी प्रकार दृढ़नेमि कुमार का भी । ये सभी अध्ययन एक समान हैं । इस प्रकार हे जंबू ! दश अध्ययनों वाले इस चौथे वर्ग का श्रमण यावत् मोक्षप्राप्त प्रभु ने यह अर्थ कहा है। वर्ग-४-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अंतकृद्दशा) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 16
SR No.034675
Book TitleAgam 08 Antkruddasha Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 08, & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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