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________________ आगम सूत्र ७, अंगसूत्र-७, 'उपासकदशा' अध्ययन/ सूत्रांक अध्ययन-४ - सुरादेव सूत्र-३२ उपोद्घातपूर्वक चतुर्थ अध्ययन का प्रारम्भ यों है । जम्बू ! उस काल-उस समय-वाराणसी नामक नगरी थी । कोष्ठक नामक चैत्य था । राजा का नाम जितशत्रु था । वहाँ सुरादेव गाथापति था । वह अन्यन्त समृद्ध था । छह करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं स्थायी पूंजी के रूप में उसके खजाने में थीं, यावत् उसके छह गोकुल थे । प्रत्येक गोकुल में दस-दस हजार गायें थीं । उसकी पत्नी का नाम धन्या था । भगवान महावीर पधारे । आनन्द की तरह सुरादेव ने भी श्रावक-धर्म स्वीकार किया । कामदेव की तरह वह भगवान महावीर के पास अंगीकृत धर्म-प्रज्ञप्ति-के अनुरूप उपासना-रत हुआ। एकदा आधी रात के समय श्रमणोपासक सुरादेव के समक्ष एक देव प्रकट हुआ । उसने तलवार नीकालकर श्रमणोपासक सुरादेव से कहा-मृत्यु को चाहने वाले श्रमणोपासक सुरादेव ! यदि तुम आज शील, व्रत आदि का भंग नहीं करते हो तो मैं तुम्हारे बड़े बेटे को घर से उठा लाऊंगा । तुम्हारे सामने उसे मार डालूँगा । उसके पाँच मांस-खण्ड करूँगा, उबलते पानी से भरी कढाही में खौलाऊंगा, उसके मांस और रक्त से तुम्हारे शरीर को सींचंगा, जिससे तुम असमय में ही जीवन से हाथ धो बैठोगे । इसी प्रकार उसने मझले और छोटे लड़के को भी मार डालने, उनको पाँच-पाँच मांस-खंड़ों में काट डालने की धमकी दी । चुलनीपिता के समान ही उसने किया, विशेषता यह कि यहाँ पाँच-पाँच खंड-किए । तब उस देव ने श्रमणोपासक सुरादेव को चौथी बार भी कहा-मृत्यु को चाहनेवाले श्रमणोपासक सुरादेव ! यदि अपने व्रतों का त्याग नहीं करोगे तो आज मैं तुम्हारे शरीरमें एक ही साथ श्वास-कासयावत् कोढ़, ये सोलह भयानक रोग उत्पन्न कर दूंगा, जिससे तुम आर्त्तध्यान से यावत् जीवन से हाथ धो बैठोगे । तब भी श्रमणोपासक सुरादेव धर्म-ध्यान में लगा रहा तो उस देव ने दूसरी बार, तीसरी बार फिर वैसा ही कहा। सूत्र - ३३ उस देव द्वारा दूसरी बार, तीसरी बार यों कहे जाने पर श्रमणोपासक सुरादेव के मन में ऐसा विचार आया, यह अधम पुरुष यावत् अनार्यकृत्य करता है । मेरे शरीर में सोलह भयानक रोग उत्पन्न कर देना चाहता है । अतः मेरे लिए यही श्रेयस्कर है, मैं इस पुरुष को पकड़ लूँ । यों सोचकर वह पकड़ने के लिए उठा । इतने में वह देव आकाश में उड़ गया । सुरादेव के पकड़ने को फैलाए हाथों में खम्भा आ गया । वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा। सुरादेव की पत्नी धन्या ने जब यह कोलाहल सूना तो जहाँ सुरादेव था, वह वहाँ आई । आकर पति से बोलीदेवानुप्रिय ! आप जोर-जोर से क्यों चिल्लाए? श्रमणोपासक सरादेव ने चलनीपिता के समान पत्नी धन्या से सारी घटना बताई। धन्या बोली-देवानप्रिय ! किसी ने तुम्हारे बड़े, मझले और छोटे लड़के को नहीं मारा । न कोई पुरुष तुम्हारे शरीर में एक ही साथ सोलह भयानक रोग ही उत्पन्न कर रहा है । यह तो तुम्हारे लिए किसी ने उपसर्ग किया है । चुलनीपिता के समान यहाँ भी सब कथन समझना । अन्त में सुरादेव देह-त्याग कर सौधर्मकल्प में अरुणकान्त विमान में उत्पन्न हुआ। उसकी आयु-स्थिति चार पल्योपम की बतलाई गई है । महाविदेह-क्षेत्र में वह सिद्ध होगा-मोक्ष प्राप्त करेगा। अध्ययन-४ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (उपासकदशा) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 18
SR No.034674
Book TitleAgam 07 Upasakdasha Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages33
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 07, & agam_upasakdasha
File Size2 MB
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